Acn18.com/75 दिनों तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा इस साल 107 दिनों तक चलेगा। 17 जुलाई को पाट जात्रा विधान के साथ दशहरा पर्व शुरू हो जाएगा। दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों की मानें तो इस साल अधिकमास पड़ने और 28 अक्टूबर को चंद्रग्रहण होने के कारण दिन आगे बढ़ गए हैं। इससे पहले साल 2020 में भी अधिकमास के चलते दशहरा पर्व 104 दिनों का था।
मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि, 17 जुलाई को पाट जात्रा विधान संपन्न किया जाएगा। संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से करीब 10 से 12 किलोमीटर दूर स्थित बिल्लोरी गांव से साल की लकड़ी लाई जाएगी। मंदिर समिति के सदस्य, राजस्व अमला लकड़ी लेने के लिए जाएंगे। फिर लकड़ी को लाकर सिरहसार भवन के पास रखा जाएगा। पूजा-अर्चना की जाएगी। पाट जात्रा विधान संपन्न होगा और यहीं से बस्तर दशहरा शुरू हो जाएगा।
जानिए किस दिन होंगे कौन से विधान
- 17 जुलाई को पाट जात्रा विधान।
- 27 सितंबर को डेरी गड़ाई रस्म।
- 14 अक्टूबर को काछनगादी पूजा।
- 15 अक्टूबर को कलश स्थापना और जोगी बिठाई पूजा विधान।
- 21 अक्टूबर बेल पूजा विधान, रथ परिक्रमा विधान।
- 22 अक्टूबर को निशा यात्रा विधान, महालक्ष्मी पूजा विधान।
- 23 अक्टूबर को कुंवारी पूजा विधान, जोगी उठाई और मावली प्रभाव पूजा विधान।
- 24 अक्टूबर भीतर रैनी पूजा विधान, रथ परिक्रमा।
- 26 अक्टूबर को काछन जात्रा।
- 27 अक्टूबर को कुटुंब जात्रा।
यह है मान्यता
तत्कालीन राजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल में उन दिनों चक्रकोट की राजधानी बड़े डोंगर थी। चक्रकोट एक स्वतंत्र राज्य था। राजा पुरूषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। बस्तर इतिहास के अनुसार वर्ष 1408 के कुछ समय पश्चात राजा पुरषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी की पदयात्रा की थी। वहां भगवान जगन्नााथ की कृपा से उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी। उपाधि के साथ उन्हें 16 पहियों वाला विशाल रथ भी भेंट किया गया था। उन दिनों बस्तर के किसी भी इलाके की सड़कों में इन्हें चलाना मुश्किल था।
तीन हिस्सों में बांटा गया था रथ
16 पहियों वाले विशाल रथ को तीन हिस्सों में बांटा गया था। चार पहियों वाला रथ भगवान जगन्नााथ के लिए बनाया गया। वहीं बस्तर दशहरा के लिए दो रथ बनाए गए। जिनमें से एक फूल रथ और दूसरा विजय रथ है। फूलरथ तिथि अनुसार 5-6 दिनों तक चलता है। इसमें चार पहिए होते हैं, वहीं दशहरा और दूसरे दिन चलने वाले आठ पहिए के विशाल रथ को विजय रथ कहते हैं। इस रथ संचलन को भीतर रैनी और बाहर रैनी कहते हैं। बस्तर दशहरा में कई रस्में होती हैं जो अपने आप में अनूठी हैं।