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‘छत्तीसगढ़ियों की औकात गोबर बिनने वाली ही रहे’:आरक्षण विवाद पर पूर्व मंत्री चंद्राकर बोले- कांग्रेस नहीं चाहती यहां के लोग पढ़े-लिखें

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acn18.com रायपुर/आरक्षण पर सियासी बवाल जारी है। राजभवन में आरक्षण का विधेयक अटका हुआ है। राज्यपाल ने अब तक 10 दिन बीतने के बाद भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं। मगर नेताओं के इस मामले पर बयान और आपस में तीखी नोंक-झोंक सामने आ रही है। इस बार जो बयान अजय चंद्राकर ने दिया है, उसे कांग्रेस स्तरहीन बता रही है।

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अजय चंद्राकर ने रायपुर में मीडिया से चर्चा में कहा- ये विषय आम जनता से जुड़ा विषय है। कांग्रेस पार्टी ने बिना अध्ययन के आरक्षण लागू करने का प्रयास किया है। विधानसभा में हमारी सभी आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गयाा। सिर्फ और सिर्फ भानुप्रतापपुर उप चुनाव की वजह से जानबूझकर ऐसा कदम उठाया गया। आज छत्तीसगढ़ का ST,SC,OBC हर वर्ग का युवा छला हुआ महसूस कर रहा है।

चंद्राकर ने आगे अपने बयान में कहा कि कांग्रेस नहीं चाहती की यहां के लोगों को नौकरी मिले, ये नहीं चाहती कि यहां के लोग पढ़ें लिखें। नौकरियां न देनी पड़ें, प्रवेश न मिले, बस यहां के लोग गोबर बेचें और गोबर एकत्र करें इसी औकात के लाेग छत्तीसगढ़ के रहें ये कांग्रेस चाहती है।

कांग्रेसियों के हाथ फेवीकोल से जुड़े हैं
हाथ जोड़ो यात्रा पर तंज कसते हुए अजय चंद्राकर ने कहा कांग्रेसियों के हाथ गांधी परिवार के सामने फेवीकोल से जुड़े हैं और क्या हाथ जोड़ेंगे। जनता के सामने हाथ जोड़ना है तो ये बताएं कि पूरी तरह से शराबबंदी कब होगी, बुजर्गों को पेंशन देना था, बेरोजगारों भत्ता उसका क्या हुआ। फिर जनता के पास जाएं, उपचुनाव तो हर जगह सरकार के अनुकूल चलता है ये कोई पैरामीटर नहीं है। असली चुनाव अब शुरू होगा, असली रण तैयार होगा तो पता चलेगा कांग्रेस को।

सुशील आनंद शुक्ला
सुशील आनंद शुक्ला

 

कांग्रेस बोली- चंद्राकर में ज्ञान का ओवर फ्लो
कांग्रेस संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने अजय चंद्राकर के बयानों की आलोचना की है। उन्होंने कहा- अजय चंद्राकर के अंदर ज्ञान का ओवर फ्लो हो रहा है। वो भाजपा के बड़बोले नेता हैं। भाजपा के नेताओं में फ्रस्टेशन है, इसलिए इस प्रकार का बयान दे रहे हैं । यहां इनके पास कुछ करने को है नहीं, यहां शून्य की स्थिति में हैं। इसलिए इस तरह के बयान देते हैं।

शुक्ला ने कहा- अजय चंद्राकर का बयान बेहद स्तरहीन है, सरकार की मंशा स्पष्ट है। इसलिए आबादी के आधार पर आरक्षण का प्रावधान सभी वर्गों के लिए किया जा रहा है। भाजपा नहीं चाहती है कि आरक्षण लागू हो, यदि अजय चंद्राकर में साहस है तो राज्यपाल से कहिए हस्ताक्षर करें, भाजपा की वजह से प्रदेश का युवा परेशान हुआ, इनकी अक्रमण्यता की वजह से कोर्ट में आरक्षण कम हुआ अब इनके विद्वेष की वजह से आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं हो पा रहे हैं।

आरक्षण पर राज्यपाल क्या सोच रहीं
2 दिन पहले राज्यपाल अनुसूईया आरक्षण पर उनके मन में क्या चल रहा है ये मीडिया को बताया। उइके अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC वर्ग को दिये गये 27% आरक्षण की वजह से आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर करने से हिचक रही हैं। राज्यपाल ने शनिवार को मीडिया से बातचीत में कहा, मैंने केवल आदिवासी वर्ग का आरक्षण बढ़ाने के लिए सरकार को विशेष सत्र बुलाने का सुझाव दिया था। उन्होंने सबका बढ़ा दिया। अब जब कोर्ट ने 58% आरक्षण को अवैधानिक कह दिया है तो 76% आरक्षण का बचाव कैसे करेगी सरकार।

धमतरी पहुंची राज्यपाल अनुसूईया उइके ने रेस्ट हाउस में मीडिया से बात की। आरक्षण विधेयक को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, हाईकोर्ट ने 2012 के विधेयक में 58% आरक्षण के प्रावधान को अवैधानिक कर दिया था। इससे प्रदेश में असंतोष का वातावरण था। आदिवासियों का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया। सर्व आदिवासी समाज ने पूरे प्रदेश में जन आंदोलन शुरू कर दिया। सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों ने आवेदन दिया। तब मैंने सीएम साहब को एक पत्र लिखा था। मैं व्यक्तिगत तौर पर भी जानकारी ले रही थी। मैंने केवल जनजातीय समाज के लिए ही सत्र बुलाने की मांग की थी।

विधेयक पारित होने के बाद राज्य सरकार के मंत्रियों ने राज्यपाल से मुलाकात की थी।
विधेयक पारित होने के बाद राज्य सरकार के मंत्रियों ने राज्यपाल से मुलाकात की थी।

 

आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है

  • 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है।
  • शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा।
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है।
  • आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए।
  • लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
  • सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं।
  • राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए।
  • सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई।
  • 24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई।
  • 2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई।
  • 2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही
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