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छत्तीसगढ़ के जिस स्थान पर पड़े थे नानकदेव के कदम, जानें क्यों कहा जाता इसे गुलाबी गांव?

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Acn18.com/महासमुंद, गुरु नानक देव (Guru Nanak Dev) को सिख धर्म का संस्थापक माना जाता है. उनका जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था. वहीं 22 सितंबर, 1539 को गुरु नानक की मृत्यु हो गई थी. हालांकि आज के ही दिन 1539 में करतारपुर में गुरु नानक देव जी की दिव्य ज्योति जोत में समाई थी, जिसे ज्योति- ज्योत गुरपुरब के रूप में सिख समुदाय हर्षोल्लास के साथ मनाता है.

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बता दें कि नानक देव सिखों के प्रथम गुरु हैं. इनके अनुयायी इन्हें नानक या नानक देव जी या बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं. नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु जैसे गुणों को अपने अंदर समेटे हुए थे. ऐसे में ज्योति- ज्योत गुरपुरब के मौके पर

अपनी यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के इस स्थान पर 2 दिन रुके थे गुरुनानक देव

दरअसल, सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देव 1506 ई में अमरकंटक से जगन्नाथपुरी यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के बसना के समीप गढ़फुलझर गांव (महासमुंद) में दो दिन विश्राम किया था. वहीं बीते साल इस गांव में नानक सागर साहिब गुरुद्वारा के नाम से भव्य तीर्थस्थल बनाये जाने की घोषणा की गई. बता दें कि यात्रा के दौरान गुरुनानक देव जिस गांव में रुके थे उस गांव का नाम नानकसागर रखा गया है और नानक सागर में जिस स्थान पर गुरुनानक देव रुके थे उस स्थान का नाम नानक डेरा रखा गया है.

इस गांव के करीब पांच एकड़ भूमि गुरुनानक देव के नाम पर रिकॉर्ड

छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले के बसना पदमपुर मार्ग से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर नानकसागर गांव बसा हुआ है. हालांकि इस गांव के नाम से ऐसा प्रतीत होता था कि इसका संबंध सिक्खों के प्रथम गुरु से है. हालांकि क्षेत्र के कुछ जानकर लोगों ने इसकी जांच पड़ताल की, जिसमें ये पता चला कि नानक सागर में करीब पांच एकड़ भूमि राजस्व रिकॉर्ड में गुरुनानक देव के नाम से दर्ज है. बता दें कि इस गांव के लोग इन्हें गुरु खाब के नाम से जानते है.

नानक सागर को गुलाबी गांव के नाम से जानते लोग

इधर, गढ़फुलझर से सटे नानक सागर गांव में एक चबूतरा है. जहां लोग अपने सर को ढककर बैठते हैं. लोगों के अनुसार,  यहां बैठने के बाद काफी सुकून का ऐहसास होता है. ऐसी मान्यता है कि अमरकंटक से जगन्नाथपुरी यात्रा के दौरान गढ़फुलझर में रुकने के दौरान गुरुनानक देव इसी जगह बैठे थे. इस गांव की एक खासियत ये भी है कि यहां लोगों में काफी एकता है, यहां के लोगों में ऊंच नीच की भावना नहीं है. आज तक इस गांव में कभी किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई. जब कभी भी विवाद की स्थिति होती है, गांव के पंच-सरपंच और लोग उसी चबूतरे पर बैठकर हल निकालते हैं, जहां गुरुनानक देव ने विश्राम किया था.

यही नहीं, इस गांव के सारे घर एक ही रंग के देखने के लिए मिलते हैं. दरअसल, यहां के सभी घरों का रंग गुलाबी होता है और सही वजह है कि इसे लोग गुलाबी गांव के नाम से भी जानते हैं. ये गांव साफ सफाई के मामले में  एक मिसाल पेश करता है. दरअसल, यहां आपको दूर दूर तक कचरा भी देखने को नहीं मिलेगा.

सेवा का केंद्र बनेगा गढ़फुलझर

गुरुनानक देव के आगमन की पुष्टि होने के बाद गढ़फुलझर को वैश्विक पहचान मिलने लगी है और इस ऐतिहासिक स्थान पर विशाल गुरुद्वारे के साथ लंगर हॉल, धर्मशाला, मल्टी स्पेशिलिटी हॉस्पिटल और स्कूल का निर्माण भी कराया जाएगा

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