Acn18.com/छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में शिवनाथ नदी में सगनी घाट पर बन रहे ब्रिज की सेंटरिंग बहने के मामले में ठेकेदार ने अपनी सफाई दे दी है। पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों और ठेकेदार ने इस घटना को सामान्य बताया है। जब सिविल गुरुजी टीम के एक्सपर्ट से इस ब्रिज को स्कैन कराया तो कई बड़ी खामियां सामने आई। विशेषज्ञ ने बताया कि नदी में ब्रिज बनाने से पहले कॉफर डैम बनाया जाता है। ठेकेदार ने इसका निर्माण नहीं किया, इसी के चलते सेंटरिंग बहा है।
धमधा ब्लॉक के सगनी गांव में नदी के तेज बहाव के बीच से होकर उस जगह पहुंची, जहां ब्रिज का स्लैब बहा था। उनके साथ सिविल गुरुजी के ब्रिज एक्सपर्ट इंजीनियर विवेक कुमार भी थे। विवेक कुमार ने पूरे ब्रिज को बारीकी से देखा। इसके बाद उन्होंने बताया कि निर्माण में कई खामियां है। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ने इन गलतियों को क्यों नहीं पकड़ा ये समझ से परे है।
इंजीनियर विवेक कुमार ने बताया कि नदी नाले में जब भी कोई ब्रिज बनाया जाता है तो वहां कॉफर डैम का निर्माण किया जाता है। इसका निर्माण करके इंजीनियर नदी या नाले के पानी को डायवर्ट करता है। इससे निर्माण वाला भाग सूखा रहता है और सही से स्लैब ढलाई या अन्य निर्माण हो जाते हैं। इतने बड़े ब्रिज के निर्माण में ठेकेदार ने कॉफर डैम न बनाकर पैसा बचाने का काम किया है और इसी के चलते उसका स्लैब हल्की बारिश में ही बह गया है।
स्टेजिंग में नहीं की गई क्रॉस कनेक्टिविट
इंजीनियर विवेक कुमार ने बताया कि जब ब्रिज का स्लैब ढालने के लिए सेंटरिंग की जाती है तो उसमें स्टेजिंग करनी पड़ती है। स्टेजिंग काफी मजबूत होनी चाहिए। सगनी घाट के ब्रिज में स्टेजिंग तो की गई है, लेकिन ठेकेदार ने उसमें क्रॉस कनेक्टिविटी नहीं दिया है। उसने केवल हॉरिजेंटली कनेक्टिविटी देकर काम चलाया है। उसने क्रॉस कनेक्टिविटी दी होती तो ये पूरी स्टेजिंग को एक दूसरे से पकड़ कर रखता और सेंटरिंग नहीं बहती।
बाढ़ के पानी का दोगुना हो जाता है प्रेशर
ब्रिज एक्सपर्ट ने कहा कि ये बात 10वीं, 12वीं में ही पढ़ाई जाती है कि डेस्क स्लैब की स्टेजिंग में रेजिस्ट करने की क्षमता वर्टिकल लोड में होता है, न कि हारिजेंटल लोड को। यहां जो पानी का प्रेशर आया है वो हॉरिजेंटली आया है। सामान्य पानी के डेंसिटी की अपेक्षा बारिश के पानी की डेंसिटी दोगुनी हो जाती है। इसके साथ ही बारिश के पानी का वेग भी अधिक रहता है। इसलिए बारिश के मौसम में काम करने के लिए पानी का डायवर्जन बनना बहुत जरूरी होता है।
सगनी घाट में जो ब्रिज बन रहा है, उसमें शिवनाथ नदी के साथ-साथ खैरागढ़ से आने वाली एक अन्य नदी भी मिलती है। इसलिए जहां पर दो या तीन नदियों का संगम हो वहां ब्रिज बनाते समय और अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। इसलिए ठेकेदार और अधिकारियों को इस पर और अधिक ध्यान देना चाहिए। ठेकेदार बिना डायवर्जन के काम कैसे कर रहा है यह समझ से परे है।
रेलवे या पीडब्ल्यूडी नदी में ब्रिज वाले कार्यों को लिए 15 जून से पहले ही ठेकेदार को नोटिस जारी कर देता है कि बारिश के दिनों में वहां कोई निर्माण नहीं करना है। सवाल यही है कि नोटिस जारी होने के बाद भी ठेकेदार मनमाने तरीके से कैसे निर्माण कार्य कर रहा था। ग्रामीणों ने बताया कि ठेकेदार बारिश के बीच स्लैब ढलाई करने वाला था। ये एक बड़ी लापरवाही, इसमें किसी की जान भी जा सकती थी।
कॉफर डैम ऐसा स्थाई ढांचा होता है, जिसे पानी वाली जगह में काफी बड़े क्षेत्र में निर्माण के लिए पानी हटाने के लिए किया जाता है। यह पानी के भीतर बनाया गया एक घेरा होता है। इस घेरे के भीतर जो भी पानी आता है उसे पंप करके बाहर निकाल दिया जाता है। इससे अंदर का भाग सूखा हो जाता है और बाहर आने वाला पानी दूसरी तरफ से निकाल जाता है। इससे ब्रिज या अन्य निर्माण करने से परेशानी नहीं होती है। कॉफ़र डैम का उपयोग आमतौर पर पानी के भीतर बने स्थायी बांधों, तेल प्लेटफार्मों, पुल और खंभों के निर्माण या मरम्मत के लिए किया जाता है।
ब्रिज निर्माणकर्ता कंपनी अमर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा. लिमिटेड के ठेकेदार नेरेंद्र राठी ने एक प्रेस रिलीज जारी करके जवाब दिया है कि उनके द्वारा सगनी सिल्ली मार्ग में शिवनाथ नदी पर उच्चस्तरीय ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है। सभी कार्य अनुबंध के मुताबिक अलग-अलग किए जा रहे हैं। नींव का काम पूरा हो चुका है और स्ट्रक्चर और सुपर स्ट्रक्चर का कार्य प्रगति पर है। ब्रिज में मिट्टी का भराव करके स्टेजिंग और सेंटरिंग किया जा रहा था। बारिश से पहले स्लैब ढलाई कर लेने का प्लान था, इसलिए तेजी से काम कराया जा रहा था। इसी दौरान लगातार चार दिन बारिश होने से नदी का जलस्तर बढ़ गया और ब्रिज की सेंटरिंग बह गई।