असफलता और परेशानियों की वजह से निराशा और भ्रम बढ़ने लगते हैं, लेकिन हमें किसी भी स्थिति में निराश नहीं होना चाहिए। निराशा की वजह से परिस्थितियां और अधिक उलझ जाती हैं। ऐसे विपरीत समय में हमें क्या करना चाहिए, ये हम नारद मुनि से सीख सकते हैं।
नारद मुनि और वेद व्यास जी से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। कथा के मुताबिक एक दिन व्यास जी बहुत निराश थे, उन्हें कई ग्रंथों की रचना कर दी थी, लेकिन उनका मन अशांत ही था।
वेद व्यास निराश थे और उस समय उनके पास नारद मुनि पहुंचे। व्यास जी ने नारद मुनि को अपनी परेशानी बताई तो नारद मुनि ने उनसे कहा कि पिछले जन्म में मैं एक दासी पुत्र था। मेरी मां ब्रह्माणों, ज्ञानियों और तपस्वियों की सेवा में लगी रहती थी। जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो मेरी मां ने मुझे तपस्वियों की सेवा में लगा दिया।
उन दिनों मैं इस बात के लिए दुखी रहता था कि मेरी मां को दासी के रूप में काम करना पड़ता है। निराश होने के बाद भी मैंने तपस्वियों की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ी।
ज्ञानी-विद्वानों की संगत और सेवा की भावना से मेरा मन शांत होने लगा। मेरी सेवा से खुश होकर तपस्वियों ने मुझे ऐसी-ऐसी ज्ञान की बातें बताईं, जो सामान्य लोग नहीं जान पाते हैं। धीरे-धीरे मेरे मन में भक्ति भावना जाग गई। मैं भक्ति करने लगा। इसके बाद मेरा अगला जन्म हुआ और मैं नारद मुनि बन गया। अब आप देख सकते हैं कि मैं कहां हूं।
नारद मुनि ने वेद व्यास जी को जो बातें समझाई हैं, वह हमारे लिए भी काम की हैं। नारद मुनि ने व्यास जी को समझाया था कि उन्हें नकारात्मकता दूर करने के लिए तपस्वी और ज्ञानियों की संगत में रहना चाहिए। अगर हम भी सकारात्मक सोच वाले विद्वान लोगों की संगत में रहेंगे तो हमारी निराशा दूर हो सकती है, हमारे विचार सकारात्मक बन सकते हैं।