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सुहागिनों का व्रत करवा चौथ :जानें आज करवा चौथ को कब निकलेगा चांद, क्या है शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

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acn18.com नई दिल्ली इस साल 13 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा। ये व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं करती हैं। शाम के समय स्त्रियां सोलह ऋंगार कर मां पावर्ती के स्वरूप चौथ माता की पूजा करती हैं। व्रत की कथा सुनती हैं और फिर चांद के निकलने का इंतजार करती हैं। दिन भर नीराजल व्रत रखने के बाद, यदि चंद्रमा की पूजा की जाए तो दांपत्य जीवन के लिए बेहद शुभ और फलदायी साबित होगा।

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आज कब होगा चंद्रोदय 
आज देशभर में करवा चौथ का चांद शाम को करीब 08 बजकर 09 मिनट के आसपास दिखाई देना शुुरू हो जाएगा। हालांकि देश के शहरों में चांद के निकलने का समय थोड़ा अलग-अलग समय पर होगा। आज शाम को सबसे पहले चांद पूर्वी भारत में गुवाहटी में करीब शाम 07 बजकर 15 मिनट पर दिखाई देगा फिर धीरे-धीरे देश के अन्य भागों में दिखाई देना शुरु हो जाएगा।
नोएडा-            08 बजकर 08 मिनट पर
गाजियाबाद-     08 बजकर 08 मिनट पर
दिल्ली-            08 बजकर 09 मिनट पर
गुरुग्राम-           08 बजकर 21 मिनट पर

करवा चौथ पूजा शुभ मुहूर्त 

करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं दिनभर उपवास रहते हुए और 16 श्रृंगार करके शाम के समय करवा माता की पूजा और कथा सुनती हैं। इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं एक जगह एकत्रित होकर करवा चौथ की पूजा करती हैं। 13 अक्तूबर को करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 54 मिनट से लेकर 07 बजकर 03 मिनट तक रहेगा।

आज करवा चौथ पर बना शुभ संयोग

करवा चौथ अखंड सुहाग का वरदान प्राप्त करने के लिए सबसे खास त्योहार माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए सुबह से निर्जला व्रत रखती है। रात को चांद की पूजा और जल अर्पित करते हुए व्रत के संकल्प को पूरा करती हैं। इस बार करवा चौथ पर बहुत ही अच्छा योग बना हुआ है। इस बार गुरुवार को करवा चौथ है और गुरु ग्रह स्वयं की राशि में मौदूज रहेंगे। ज्योतिष में गुरु ग्रह को वैवाहिक जीवन और शुभ फल देने वाला ग्रह माना जाता है। इसके अलावा चंद्रमा भी अपनी राशि और नक्षत्र में मौजूद रहेगा। ऐसे में करवा चौथ का व्रत रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करना शुभ फल देने वाला साबित होगा।

 

करवा चौथ व्रत के नियम

  • यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक रखना चाहिए और चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इसको खोला जाता है।
  • शाम के समय चंद्रोदय से पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है।
  • पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।

करवा चौथ का महत्व

हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व होता है। इस तिथि पर भगवान गणेश की पूजा और चंद्रदर्शन का विशेष महत्व होता है। चतु्र्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है क्योंकि इस तिथि पर ही उनका जन्म हुआ था। हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है। यह सुहागिन महिलाओं के सबसे बड़े व्रत में से एक है। इसमें सुबह से निर्जला व्रत रखते हुए शाम के समय करवा माता की पूजा करते हुए चंद्रमा के दर्शन करते और अर्ध्य देकर व्रत तोड़ा जाता है।

पति के लिए व्रत की परंपरा सतयुग से
पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने की परंपरा सतयुग से चली आ रही है। इसकी शुरुआत सावित्री के पतिव्रता धर्म से हुई। जब यम आए तो सावित्रि ने अपने पति को ले जाने से रोक दिया और अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से पति को फिर से पा लिया। तब से पति की लंबी उम्र के लिए व्रत किए जाने लगे।

दूसरी कहानी पांडवों की पत्नी द्रौपदी की है। वनवास काल में अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि के पर्वत पर चले गए थे। द्रौपदी ने अुर्जन की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण से मदद मांगी। उन्होंने द्रौपदी को वैसा ही उपवास रखने को कहा जैसा माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। द्रौपदी ने ऐसा ही किया और कुछ ही समय के पश्चात अर्जुन वापस सुरक्षित लौट आए।

वामन पुराण के मुताबिक व्रत कथा
वामन पुराण में बताई व्रत की कथा में वीरावती सौभाग्य और अच्छी संतान के लिए करवा चौथ का उपवास रखकर चंद्रमा निकलने का इंतजार करती है। भूख-प्यास से परेशान बहन को बेहोश होते देख उसके भाई से रहा नहीं जाता। वो मशाल लेकर बरगद पर चढ़ जाता है और पत्तों के बीच से उजाला करता है। जिसे वीरावती चंद्रमा की रोशनी समझकर व्रत खोल लेती है। इसके बाद वीरावती के पति की मृत्यु हो जाती है। इसके बाद देवी पार्वती वीरावती को फिर से ये व्रत करने को कहती हैं। जिससे वीरावती को सौभाग्य मिलता है और उसका पति फिर जिंदा हो जाता है।

अच्छी फसल की कामना के लिए यह व्रत शुरू हुआ
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि ये त्योहार रबी की फसल की शुरुआत में होता है। इस वक्त गेहूं की बुवाई भी होती है। गेहूं के बीज को मिट्टी के बड़े बर्तन में रखते हैं, जिसे करवा भी कहते हैं। इसलिए जानकारों का मत है कि ये पूजा अच्छी फसल की कामना के लिए शुरू हुई। बाद में महिलाएं सुहाग के लिए व्रत रखने लगीं। ये भी कहा जाता है कि पहले सैन्य अभियान खूब होते थे। सैनिक ज्यादातर समय घर से बाहर रहते थे। ऐसे में पत्नियां अपने पति की सुरक्षा के लिए करवा चौथ का व्रत रखने लगीं।

करवा चौथ से जुड़ी मान्यताएं- करवा चौथ पर क्यों होती है चांद का पूजा?

करवा चौथ पर चांद की ही पूजा क्यों ?
चंद्रमा औषधियों का स्वामी है। चांद की रोशनी से अमृत मिलता है। इसका असर संवेदनाओं और भावनाओं पर पड़ता है। पुराणों के मुताबिक चंद्रमा प्रेम और पति धर्म का भी प्रतीक है। इसलिए सुहागनें पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन में प्रेम की कामना से चंद्रमा की पूजा करती हैं।

पति और चंद्रमा को छलनी से क्यों देखते हैं?
भविष्य पुराण की कथा के मुताबिक चंद्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था। इस कारण चतुर्थी पर चंद्रमा को देखने से दोष लगता है। इससे बचने के लिए चांद को सीधे नहीं देखते और छलनी का इस्तेमाल किया जाता है।

करवे से पानी क्यों पीते हैं ?
इस व्रत में इस्तेमाल होने वाला करवा मिट्टी से बना होता है। आयुर्वेद में मिट्टी के बर्तन के पानी को सेहत के लिए फायदेमंद बताया है। दिनभर निर्जल रहने के बाद मिट्टी के बर्तन के पानी से पेट में ठंडक रहती है। धार्मिक नजरिये से देखा जाए तो करवा पंचतत्वों से बना होता है। इसलिए ये पवित्र होता है।

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