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ऐसा गांव, जिसे डिलीवरी से पहले छोड़ देती हैं महिलाएं:कोई बीमार पड़े तो कांवड़ ही सहारा, अब खुद पुल तैयार कर रहे ग्रामीण

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Acn18.com/बस्तर के कोंडागांव जिले का ऐसा गांव है, जो चारों तरफ से नदी-नालों से घिरा हुआ है। बारिश के दिनों में गांव टापू के रूप में तब्दील हो जाता है। यह सिलसिला अब धीरे-धीरे शुरू हो गया है। इस गांव की गर्भवती महिलाएं मानसून के समय डिलीवरी से ठीक एक महीने पहले गांव छोड़ रही हैं। पास के ही दूसरे गांव जहां स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से मिल जाए वहां जाकर रह रहीं हैं। ऐसा हर साल होता है।

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क्योंकि, बारिश के समय बरसाती नदी-नाले उफान पर आ जाते हैं। एंबुलेंस समेत अन्य कोई जरूरी सुविधा गांव तक नहीं पहुंच पाती है। छ्त्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर स्थित इस गांव के ग्रामीण अब घरों से चंदा इकट्ठा कर नदी पर लकड़ी का अस्थाई पुल बना रहे हैं। ताकि, इस मानसून थोड़ी राहत मिल सके।

350 की आबादी

दरअसल, यह हालात कोंडागांव जिले के माकड़ी तहसील के अनंतपुर गांव के आश्रित गांव कोटरलीबेड़ा के हैं। इस गांव में कुल 52 घर हैं और 350 की आबादी है। जिनमें 200 मतदाता हैं। अनंतपुर से लेकर इस गांव तक न तो सड़क है, न ही पुल-पुलिया। बिजली और शिक्षा की बात तो दूर की है। गांव के ग्रामीण आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि, कोटरलीबेड़ा गांव की बसाहट छत्तीसगढ़ में तो जरूर है, लेकिन अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए बॉर्डर पार कर लोग ओडिशा जाते हैं। क्योंकि, इनके अनंतपुर ग्राम पंचायत की दूरी 10 किमी है तो वहीं ओडिशा की दूसरी महज 2 किमी। ओडिशा के सिलाटी बाजार से गांव वाले अपनी जरूरत पूरी करते हैं।

टापू में तब्दील होता है गांव
गांव वालों का कहना है कि, कोटरलीबेड़ा गांव के एक तरफ मारकंडे नाला, दूसरी ओर मेंढर और तीसरी तरफ भी एक बरसाती नदी-नाला है। बारिश के दिनों में पूरा गांव टापू में तब्दील हो जाता है। इस मानसून भी कुछ इसी तरह की स्थिति बन रही है। अब ग्रामीणों के सामने भी बड़ी चुनौती आ रही है। इसलिए गांव वालों ने चंदा इकट्ठा किया है और ओडिशा से बहने वाली मारकंडे नदी पर लकड़ी का पुल बना रहे हैं। जिससे इस पुल के माध्यम से लोग कुछ दिनों तक ओडिशा के बाजार तक पहुंच सकें।

कावड़ से 10 किलोमीटर का सफर
ग्रामीणों का कहना है कि, बारिश के दिनों में गर्भवती महिलाएं प्रसव से लगभग 1 माह पहले ही गांव छोड़ देती हैं। उसे अनंतपुर या अनंतपुर के आसपास के किसी भी गांव में परिजनों के घर छोड़ दिया जाता है। जिससे समय आने पर गर्भवती महिला को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सके। इसके अलावा सामान्य दिनों में भी घर पर ही महिलाओं का प्रसव होता है। गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। इसके अलावा यदि कोई ग्रामीण बीमार है तो उन्हें बाइक से या फिर कांवड़ के माध्यम से करीब 10 किमी का पैदल सफर तय कर अनंतपुर तक लाया जाता है। जहां उन्हें इलाज मिलता है।

फैक्ट फाइल

  • बोमवती एल्मा पति बलराम एल्मा इनका पहला बच्चा 2009 और दूसरा बच्चा 2017 में हुआ है। दोनों बच्चे अनंतपुर में ही हुए हैं।
  • रुक्मणि यादव पति दलसाय यादव, इनके बच्चे हैं। इनकी भी डिलीवरी अनंतपुर में हुई है।
  • कौशल्या यादव पति फरसू यादव, इनके तीन बच्चे हैं।
  • सूकरी यादव पति भुनेश्वर यादव, पहला बच्चा हुआ, इसके लिए एक माह पहले ही घर छोड़ कर जाना पड़ा था।

अफसर बोले- मिलेगी सुविधा
जिला पंचायत के CEO प्रेम प्रकाश शर्मा ने कहा कि, ग्राम पंचायत अनंतपुर के कोटरलीबेड़ा की समस्या के बारे में शासन-प्रशासन पूर्ण रूप से अवगत है। उनकी समस्या के समाधान के लिए वन विभाग को निर्देशित किया गया है। सड़क का कार्य जंगल के अंदर होना है। जिस कारण यह कार्य वन विभाग के माध्यम से किया जाएगा। सड़क सर्वे कार्य पूर्ण हो जाने से मनरेगा मद से वन विभाग के माध्यम से निर्माण कार्य भी पूरा करवा दिया जाएगा। इसी तरह आंगनबाड़ी और स्कूल समेत अन्य सुविधाओं को भी जल्द पूर्ण करने की कवायद की जा रही है।

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