Acn18.comकोरबा/ कोरबा वनमंडल के अंतर्गत कनकी ग्राम में शुक्रवार रात 10 बजे एक अत्यंत विषैले रसेल वाइपर (Daboia russelii) सांप को सफलतापूर्वक रेस्क्यू किया गया। ग्रामीणों की तत्परता और वन विभाग की सजगता के चलते यह अभियान न केवल सफल रहा, बल्कि इसने मानव-वन्यजीव संघर्ष को टालने में विज्ञान, जागरूकता और संवेदनशीलता का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। खास बात यह है कि जिले में पहली बार रसेल वाइपर सांप देखा गया है।
यह रेस्क्यू उप वनमंडलाधिकारी श्री आशीष खेलवार के निर्देशन में नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी के वरिष्ठ रेस्क्यूअर श्री जितेंद्र सारथी और राजू बर्मन ने अंजाम दिया। उन्होंने तुरंत मौके पर पहुंचकर भीड़ को नियंत्रित किया और सभी आवश्यक वैज्ञानिक प्रोटोकॉल तथा सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए सांप को शांतिपूर्वक पकड़ा। इसके बाद उसे सुरक्षित वन क्षेत्र में छोड़ दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह की क्षति नहीं हुई, जो टीम की दक्षता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
“बिग फोर” का हिस्सा: रसेल वाइपर का महत्व
रसेल वाइपर, जिसे भारत के चार सबसे विषैले सांपों — “द बिग फोर ऑफ इंडिया” — में शामिल किया गया है, एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रजाति है। इसे वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 में वर्ग-I में रखा गया है और इसे एशिया का “लैंड माइन” भी कहा जाता है। इसकी पहचान इसके भूरे शरीर पर गोलाकार काले धब्बों और त्रिकोणीय सिर से होती है, जिसके कारण लोग इसे अक्सर भारतीय अजगर समझ लेते हैं। यह सांप खेतों, झाड़ियों और ग्रामीण बस्तियों के आसपास सक्रिय रहता है।
चिकित्सकीय और पारिस्थितिक महत्व
रसेल वाइपर का जहर हेमोटॉक्सिक होता है, जो रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और समय पर इलाज न होने पर जानलेवा हो सकता है। हालांकि, इसके दंश का इलाज संभव है। इस प्रजाति के जहर का उपयोग भारत में पॉलीवेलेंट एंटी-स्नेक वेनम (polyvalent snake antivenom) के निर्माण में किया जाता है, जिससे यह न केवल पारिस्थितिक, बल्कि चिकित्सकीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह चूहों को नियंत्रित कर कृषि जैव संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और अप्रत्यक्ष रूप से खेतों में कीटनाशकों की आवश्यकता को भी कम करता है।
रेस्क्यू के दौरान श्री सारथी ने ग्रामीणों को सांप की पहचान, उसके व्यवहार और बचाव के तरीकों पर सरल भाषा में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ये प्रजातियाँ कैसे पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह जानकारी ग्रामीणों के लिए नई और उपयोगी थी, जिससे उनका डर कम हुआ और समझ बढ़ी।
इस अवसर पर वन विभाग ने भी एक सकारात्मक संदेश दिया। एस.डी.ओ. श्री आशीष खेलवार ने कहा, “वन्यजीवों से सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देना हमारी जिम्मेदारी है। यह रेस्क्यू केवल एक जान बचाने की घटना नहीं, बल्कि पर्यावरण के साथ तालमेल की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
कनकी ग्राम की यह घटना केवल एक सांप को पकड़ने की कहानी नहीं थी, बल्कि यह एक जागरूक समाज, विज्ञान आधारित हस्तक्षेप और प्रशासनिक सजगता की मिसाल है। यह दिखाता है कि जब इंसान और प्रकृति के बीच संवाद, सम्मान और समझदारी होती है, तब संघर्ष की जगह सह-अस्तित्व जन्म लेता है। रसेल वाइपर का यह सफल और सुरक्षित रेस्क्यू वास्तव में वन्यजीव संरक्षण और वैज्ञानिक चेतना की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम है।