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रायपुर के युवाओ ने शहर के बीच तैयार किया मिनी-जंगल:जापान की मियावाकी तकनीक जो 30 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड को सोखता है

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acn18.com रायपुर / आज विश्व पर्यावरण दिवस है। बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए रायपुर के युवाओं ने जापानी तकनीक से शहर में ही एक मिनी जंगल तैयार किया है। जापान की मियावाकी तकनीक से शहर के बीच गांधी उद्यान में 7500 वर्ग फीट जमीन पर इस जंगल को तैयार किया गया है।

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सितंबर 2023 में यंग इंडिया संस्था ने मियावाकी फारेस्ट के लिए पौधे लगाए गए थे जो एक साल से भी कम समय में घने हो गए है। इस तकनीक की खास बात ये है कि मियावाकी जंगल अन्य रोपण के मुकाबले 30 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड को सोखता है

गांधी उद्यान में मियावाकी तकनीक से तैयार मिनी फारेस्ट।

गांधी उद्यान में मियावाकी तकनीक से तैयार मिनी फारेस्ट।

2500 पौधे लगाए गए

इस तकनीक के जरिए गांधी अद्यान में 7500 वर्गफीट जमीन पर 2500 पौधे लगाए गए है। जिनमें 63 अलग अलग वैराइटी के पौधे है।जिनमें नीम, पीपल, बरगद ,करण, आम ,जाम,कोनोकार्पस ,जामुन, सुपारी ताड़ समेत कई जंगली पेड़ पौधे भी लगाए गए है वर्तमान में इस जंगल की केयरिंग का जिम्मा सन एड सन ग्रुप की ओर से किया जा रहा है। यहां रोजाना सुबह और शाम 2 केयर टेकर पौधे को पानी देते है।

देश के बड़े शहरों में इस्तेमाल हो रही यह तकनीक

आज शहर में पेड़ पौधे लगाने के लिए जगह कम पड़ रही है। खास तौर पर बड़े शहरों में बढ़ते प्रदुषण और जलवायु परिवर्तन के कारण मियावाकी जंगल आज देश के बड़े शहरों बैंगलोर, हैदराबाद, मुंबई में बहुत ज्यादा प्रचलित है। लोग इस तकनीक के जरिए अपने सोसायटी के आस-पास मिनी फारेस्ट तैयार कर रहे है। यह जंगल अन्य परंपरागत पौधे रोपण से 30 गुना ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और वायु-ध्वनि प्रदूषण को 3000 गुना तक कम करता है।

ऐसे तैयार किया जाता है मिनी फारेस्ट

जमीन में गड्‌ढे करने से पहले जुताई की जाती है और मिट्टी में खाद के साथ भूसा मिलाया जाता है। रोपण करने के बाद नमी बचाने पूरे क्षेत्र में पैरा छिड़का जाता है। बरसात के बाद पूरे पौधों की सिंचाई की जाती है। माना जाता है कम समय में पौधे होने और अच्छी देखभाल होने से पौधों में जबरदस्त विकास होता है।

तीन साल में पौधे 5 मीटर तक ऊंचे हो जाते हैं और घना जंगल तैयार हो जाता है। इसके बाद अतिरिक्त सुरक्षा और देखभाल की जरूरत नहीं होती। जंगल की तरह अधिक घना होने से जमीन की नमी और उपजाऊ बनी रहती है इसलिए इसे मिनी फॉरेस्ट कहते हैं।

मियावाकी तकनीक की ख़ासियत

  • इस तकनीक की मदद से 2 फीट चौड़ी और 30 फीट पट्टी में 100 से भी अधिक पौधे रोपे जा सकते हैं।
  • बहुत कम खर्च में पौधे को 10 गुना तेजी से उगाने के साथ 30 गुना ज्यादा घना बनाया जा सकता है।
  • पौधों को पास-पास लगाने से इन पर खराब मौसम का असर नहीं पड़ता है और गर्मी में नमी नहीं कम होती और ये हरे-भरे रहते हैं।
  • पौधों की बढ़त दोगुनी तेजी से होती है और 3 साल के बाद इनकी देखभाल नहीं करनी पड़ती।
  • कम जगह में लगे घने पौधे ऑक्सीजन बैंक की तरह काम करते हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल वन क्षेत्र में ही नहीं घरों के आसपास भी किया जा सकता है।

मियावाकी: तेजी से जंगल उगाने की तकनीक

अकीरा मियावाकी को यह आइडिया जब आया जब वह 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित अर्थ समिट में पहुंचे। मियावाकी का अनुभव था कि दुनिया में कहीं भी चले जाएं मंदिर, चर्च और अन्य धार्मिक जगहों पर पनपने वाले पौधे कभी खत्म नहीं होते। यहां लगे पेड़ काफी प्राचीन होते हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम होती है। यहीं से उन्हें प्रेरणा मिली।

उनके अध्ययन में सामने आया कि जापान में सिर्फ .06 फीसदी ही ऐसे पेड़ हैं जिन्हें आबोहवा के हिसाब से कुदरती कहा जा सकता है। अलग से उगाए गए जंगल में अमूमल ऐसे पौधे रोप दिए जाते हैं जो वहां की मिट्टी के अनुकूल नहीं होते हैं। यही सच्चाई मियावाकी तकनीक का आधार बनी।

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