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‘नक्सली जबरदस्ती उठा ले गए, 72 जवानों की हत्या करवाई’:माओवाद की जंजीरों से आजाद हुए कपल की कहानी, बोले- दम घुटता था

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Acn18.com/साल 1947 में अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से तो देश आजाद हो गया, लेकिन स्वतंत्र भारत के कई ऐसे इलाके हैं, जिन्हें माओवादियों ने अपना गुलाम बना लिया। नक्सली कई मासूम बच्चों को जबरदस्ती घर से उठाकर अपने साथ ले गए। उनका बचपन छीना। पढ़ाई करने की उम्र में उन्हें बंदूक थमा दी। जबरदस्ती काली वर्दी पहनाई। मरना और मारना सिखाया।

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जब भागने की कोशिश की तो परिवार को जान से मारने की धमकी दी। हालांकि, संगठन में रहते इन्हीं में से 2 मासूम जब धीरे-धीरे बड़े हुए तो नक्सलियों ने फिटनेस देखकर उन्हें अलग-अलग एरिया कमेटी का लीडर बना दिया। जवानों को मारने और सरकार विरोधी काम करने उनपर दबाव बनाया गया। मजबूरी भी थी, इसलिए अलग-अलग मुठभेड़ों शामिल हुए और 72 से ज्यादा जवानों की हत्या कर दी। संगठन में रहते दोनों को एक-दूजे से प्यार हुआ। शादी भी की।

दोनों एक-दूसरे की हिम्मत बने और नक्सलवाद की बेड़ियों को तोड़कर भाग निकले। साल 2021 में दंतेवाड़ा पहुंचकर सरेंडर कर दिया। पुलिस की सूची में दोनों खूंखार नक्सली थे। इन दोनों पर 5-5 लाख रुपए का इनाम था। हालांकि, अब ये सरेंडर नक्सली कपल खाकी वर्दी पहनते हैं। दिल में देशभक्ति की भावना लिए साथ ड्यूटी पर जाते हैं। तिरंगा को सलामी देते हैं। इसी नक्सली कपल ने गुलामी से लेकर आजादी तक की पूरी कहानी बताई।

कपल की जुबानी पढ़िए..नक्सल संगठन में उनके साथ क्या-क्या हुआ..
मेरा नाम संजू माड़वी उर्फ पोज्जे है। अभी मेरी उम्र 25 साल है। मैं बीजापुर जिले के अंदरूनी इलाके पालागुड़ा गांव का रहने वाला हूं। जब मैं 12-13 साल का था तो उस समय कुछ नक्सली गांव आए थे। जिन्होंने साथ चलकर कुछ दूरी तक सामान छोड़ने कहा था। मैं साथ गया। जब उनसे कहा कि मैं अब घर जा रहा हूं तो मुझे जाने नहीं दिया। जबरदस्ती उठाकर अपने साथ लेकर चले गए। मुझे बंदी बनाकर रखा था। एक महीने तक यहां-वहां घुमाते रहे।

फिर मुझे ट्रेनिंग सेंटर में भेज दिया। जहां दौड़-भाग करना, पहाड़-पेड़ों पर चढ़ना, नदी-नाले पार करने के साथ हथियार चलाना सिखाया गया। कुछ महीने तक लगातार इन सब चीजों की ट्रेनिंग दी गई। मेरे साथ मेरी ही उम्र के करीब 30 से 35 बच्चे और थे।

जिन्हें भी जबरदस्ती घर से उठाकर लाया गया था। मैं घर जाना चाहता। मेरा जंगल में दम घुटता था। कई दफा भागने की कोशिश की, लेकिन जंगल से निकल नहीं पाया। संगठन के बड़े लीडर्स ने जवानों को मारने की ट्रेनिंग दी। पूंजीपतियों और साम्रज्यवाद से आजादी कैसे लेना है यह सीखा रहे थे।

इसी ट्रेनिंग सेंटर में मेरी रेकापल्ली की रहने वाली लक्खे उर्फ तुलसी से मुलाकात हुई थी। तुलसी ने बताया कि उसे भी संगठन में जबरदस्ती लाया गया था। संगठन में रहते दोनों ने साथ ट्रेनिंग ली। फिर धीरे-धीरे जब बड़े हुए और हथियार चलाना सीखे तो नक्सलियों ने दोनों को अलग-अलग एरिया कमेटी में काम करने भेज दिया था। पोज्जे पामेड़ इलाके में ही सक्रिय था, जबकि लक्खे हार्डकोर नक्सली लीडर विकास की सुरक्षा गार्ड में तैनात थी। जब बड़े लीडरों की बैठक होती थी तो ये दोनों भी एक दूसरे से मिलते थे।

लक्खे बताती है कि दोनों के बीच प्यार हुआ। दोनों शादी करना चाहते थे। संगठन को छोड़कर आजादी से जीना चाहता थे। लेकिन, नक्सली परिवार वालों को मार देते। बस किसी तरह संगठन में रहते समय निकाल रहे थे और मौके की तलाश में थे।

दोनों एक दूसरे को गोंडी बोली में चिठ्ठी लिखते थे। हाल-चाल पूछते थे। नक्सलियों को दोनों के प्यार के बारे में पता चल गया था। उन्होंने शादी की इजाजत दे दी। मगर पति पोज्जे की नसबंदी करवा दी। माता-पिता बनने की इजाजत नहीं दी। शादी के बाद भी दोनों अलग-अलग रहते थे।

एक बार कई बड़े नक्सली लीडरों की बैठक हुई। जिसमें सुजाता, विकास समेत कई नक्सली नेता शामिल हुए थे। जिस जगह बैठक चल रही थी, उससे 2 किमी की दूरी पर लक्खे तैनात थी। पोज्जे ने उसे किसी माध्यम से चिठ्ठी भेजी। फिर एक समय देकर किसी ठिकाने पर आने को कहा था। जहां से दोनों नक्सलियों के चंगुल से भाग निकले। दोनों CG बॉर्डर पार कर आंध्रप्रदेश चले गए थे। फिर वहां से कुछ दिन बात छिपते-छिपाते दंतेवाड़ा आए और सरेंडर कर दिया। दोनों ने कहा कि अब आजादी महसूस होती है।

इन मुठभेड़ों में थे शामिल

  • पिडमेल मुठभेड़ में शामिल थे। इस मुठभेड़ में 8 जवान शहीद हुए थे।
  • सुकमा जिले के बुरकापाल की मुठभेड़ में भी शामिल थे। इस मुठभेड़ में 25 जवानों ने अपनी शहादत दी थी।
  • बीजापुर जिले के टेकलगुड़ा की मुठभेड़ में भी शामिल रहे हैं। इस मुठभेड़ में 22 जवानों ने अपनी जान दी।
  • सुकमा जिले के मिनपा मुठभेड़ में भी शामिल थे। इसमें 17 जवानों ने अपनी शहादत दी थी।
  • ये हथियार चलाना सीखा था
    नक्सल संगठन में इन दोनों नक्सलियों को इंसास, थ्री नॉट थ्री, AK-47, 12 बोर हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी। अलग-अलग एरिया कमेटी में अलग-अलग हथियार चलाते थे। जब दोनों ने आत्म समर्पण किया तो उस समय दोनों ACM (एरिया कमेटी मेंबर) के पद पर थे। इनके ऊपर 5-5 लाख रुपए का इनाम था।

    अब खाकी वर्दी पहन कर रहे देश की सेवा
    72 जवानों को मारने वाले ये दोनों नक्सली सरेंडर के बाद पुलिस में भर्ती हो गए हैं। अब काली के जगह खाकी वर्दी पहनकर ड्यूटी पर निकलते हैं। अब भी जंगल में घूमते हैं, बस फर्क इतना है अब देश की रक्षा करना मकसद है। खास बात यह है कि जब संगठन में थे तो गुलामों की तरह जिंदगी जी रहे थे। अब जंगल से बाहर निकल कर आजाद हुए हैं। अपना परिवार बसाया है।

    पहले अपने साथ लाल या फिर काला झंडा रखते थे। लेकिन अब अपने घर में तिरंगा रखे हैं। ड्यूटी पर जाने से पहले दोनों तिरंगे को सलामी देते हैं। इन दोनों सरेंडर नक्सलियों ने बताया कि, नक्सली संगठन में इनके जैसे और कई लोग हैं जो आत्मसमर्पण करना चाहते हैं। मगर संगठन छोड़कर नहीं आ पा रहे हैं। नक्सलवाद की बेड़ियों से जकड़े हुए हैं। बड़े नक्सली लीडर उन पर दबाव भी बनाते हैं।

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