Acn18.com/छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों की कमर अब टूटने लगी है। संगठन कमजोर हो रहा है। अंदरूनी इलाकों में पुलिस की पैठ बढ़ रही है। जवान नक्सलियों को मार रहे हैं। नक्सली घबरा रहे हैं। प्लाटून, कंपनी और बटालियन में उनके लड़ाकों की संख्या कम हो रही है। खुद को कमजोर होता देख नक्सली लीडरों ने गांवों में फरमान जारी किया है कि हर गांव के हर एक घर से एक लड़का या लड़की संगठन में भर्ती हो।
हालांकि, युवा जाना नहीं चाह रहे। जो जा रहा है वह 5 से 6 महीने में फिर से भागकर आ रहा है। यह सिलसिला पिछले डेढ़ से दो सालों से चल रहा है। यह बात बाहर नहीं आ पाई। नक्सलियों के कई लीडर कोरोना और अन्य बीमारियों से मर गए हैं। कइयों ने संगठन छोड़ दिया तो कुछ को पुलिस ने मार दिया। यह दावा विकास, सुजाता जैसे बड़े हार्डकोर नक्सलियों के साथ काम कर चुके सरेंडर्ड नक्सलियों ने कैमरे के सामने किया है।
फोर्स अंदर घुस रही, एनकाउंटर का है भय
सरेंडर्ड नक्सलियों के मुताबिक, जिन इलाकों में पहले माओवादियों का जमावड़ा रहता था। वहां फोर्स का आना संभव नहीं था। अब ऐसे इलाकों में भी पुलिस फोर्स अंदर घुसने लगी है। एनकाउंटर का भय है। कोई मरना नहीं चाहता। फोर्स की पैठ बढ़ रही है, इसलिए नक्सली उन इलाकों को खाली कर रहे हैं। हालांकि, गांव वालों के बीच उनके सोर्स जरूर हैं।
संख्या कम हो रही लेकिन, ताकत बहुत है
नक्सलियों की संख्या कम जरूर हो रही है। लेकिन, उनके पास फाइटर्स अच्छे हैं। ताकत बहुत है। नक्सलियों की प्लाटून में पहले जहां 30 से 35 नक्सली हुआ करते थे अब संख्या सिमट कर 15 हो गई है। एक कंपनी में 100 की संख्या थी अब 70 नक्सली हैं। इसी तरह बटालियन में पहले 300 नक्सली थे लेकिन अब सिर्फ 150 लड़ाके ही हैं। इनकी LGS खत्म हो चुकी है। DVCM, ACM जैसे कैडर के नक्सली संगठन छोड़ रहे हैं।
मजबूत कर रहे संगठन, सलवा जुडूम से पहले थी ऐसी स्थिति
हर घर से एक लड़का या फिर लड़की को संगठन में शामिल करने का नक्सलियों का यह फरमान सलवा जुडूम से पहले काफी ज्यादा था। उस समय भी नक्सली बस्तर में हर गांव के हर घर से युवक-युवतियों को संगठन में भर्ती होने को कहते थे। 10 से लेकर 13 साल तक के बच्चों को जबरदस्ती घर से उठाकर ले जाते थे। उस समय बस्तर में नक्सलवाद काफी तेजी से बढ़ा था।
उनके लाल लड़ाकों की संख्या भी काफी अधिक थी। कई बड़े नक्सली हमले भी हुए थे। अब करीब 15 से 20 सालों के बाद हर घर से एक युवा को संगठन में भर्ती होने का फरमान जारी किए हैं। हालांकि, युवा नक्सल संगठन में नहीं बल्कि फोर्स में जाना चाह रहे हैं। बस्तर फाइटर्स और बस्तरिया बटालियन के गठन के समय 50 हजार से ज्यादा युवाओं के आवेदन पुलिस को मिले थे। इनमें से कई नक्सलगढ़ के युवा थे।
लोन वर्राटू अभियान का मिला फायदा
एनकाउंटर और गिरफ्तारी के अलावा पुलिस के लोन वर्राटू यानी घर वापस आइए अभियान और पूना नर्कोम जैसे अभियान का भी काफी प्रभाव पड़ा है। दंतेवाड़ा और सुकमा पुलिस के इस अभियान से प्रभावित होकर नक्सली संगठन छोड़ रहे हैं। संगठन छोड़ने के बाद इन अभियानों के तहत नौकरी लग रही। जो खेती करना चाहते हैं उन्हें ट्रैक्टर दे रहे हैं।
राशन कार्ड, आधार कार्ड, पेन और वोटर आईडी कार्ड बनाए जा रहे हैं। सरकार की योजना अंदर तक पहुंच रही है। इसलिए अब जंगल-जंगल कोई घूमना नहीं चाहता। नक्सलियों की कमर टूटने की सबसे बड़ी वजह घर वापस आइए अभियान भी है।
नक्सलियों ने तस्वीर जारी कर दिखाई ताकत
साल 2022 और 2023 में नक्सलियों ने बस्तर के जंगल में शहीदी सप्ताह मनाया था। इन दोनों सालों में हार्डकोर नक्सलियों समेत सैकड़ों हथियारबंद नक्सली शामिल हुए थे। आयोजन के बाद नक्सलियों ने तस्वीर जारी की थी और अपनी ताकत दिखाई थी। तस्वीरों के माध्यम से बताया था कि हम कमजोर नहीं हैं। दंतेवाड़ा के अरनपुर में IED ब्लास्ट कर 10 जवानों और एक चालक की हत्या कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी।
IG बोले- दुश्मन को कमजोर समझना ठीक नहीं
बस्तर के IG सुंदरराज पी ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि नक्सलियों की तरफ से फरमान जारी करना यह एक अफवाह भी हो सकती है। गांव-गांव में पुलिस की पैठ काफी हद तक बढ़ी है। पिछले कुछ सालों में 54 कैंप खोले हैं। जिससे नक्सली बैकफुट हुए हैं। हालांकि, नक्सली पूरी तरह से कमजोर हुए हैं यह हम नहीं कह सकते। दुश्मन को कमजोर समझना ठीक नहीं। फोर्स का प्रभाव नक्सल संगठन में जरूर पड़ा है।
CM ने कहा – समाप्ति की ओर है नक्सलवाद
जगदलपुर प्रवास पर रहे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि, बस्तर में नक्सलवाद अब समाप्ति की ओर है। सरकार के किए कामों का फायदा मिल रहा है। अंदरूनी इलाके के युवा अब संगठन में शामिल होना नहीं चाहते हैं। बल्कि मुख्यधारा से जुड़कर नौकरी करना चाहते हैं। हमने कई युवाओं को नौकरी दी है। गांव-गांव तक विकास पहुंचाया है। यही वजह है कि अब नक्सली बैकफुट हो चुके हैं।