माघ मास को धर्म ग्रंथों में बहुत ही पवित्र बताया गया है। ये महीना 7 जनवरी से 5 फरवरी तक रहेगा। इस दौरान श्रीकृष्ण की पूजा करने और नदी स्नान करने से मनुष्य स्वर्ग में स्थान पाता हैं। माघ महीने में गंगा का नाम लेकर नहाने से भी गंगा स्नान का फल मिलता है। पुराणों में कहा गया है कि जब माघ मास में सूर्य मकर राशि में हो तो सुबह जल्दी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। इससे अनंत गुना पुण्य मिलता है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस महीने में श्रीकृष्ण की पूजा की जाए तो मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माघ मास में श्रीकृष्ण की पूजा से पहले सुबह तिल, जल, फूल, कुश लेकर इस प्रकार संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद श्रीकृष्ण की प्रार्थना और पूजा करें। श्रीकृष्ण को घर में शुद्धता से बने पकवानों का भोग लगाएं। उसमें तुलसी के पत्ते जरूर डालें।
इस तरह पूरे महीने में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से दुख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि रहती है। माघ की ऐसी महिमा है कि इसमें जहां कहीं भी जल हो, वो गंगाजल के समान होता है। फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है।
महाभारत में माघ महीने का महत्व
महाभारत और अन्य ग्रंथों में माघ मास के महत्व के बारे में बताया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार जो माघ मास में नियम से एक वक्त खाना खाता है, वो धनवान कुल में जन्म लेकर अपने परिवार में महत्वपूर्ण होता है। इसी अध्याय में कहा गया है कि माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है और वह अपने कुल का उद्धार करता है।
माघ मास की कथा
प्राचीन काल में नर्मदा किनारे सुव्रत नाम का ब्राह्मण रहता था। वो वेद, धर्मशास्त्रों और पुराणों के जानकार थे। कई देशों की भाषाएं और लिपियां भी जानते थे। इतने विद्वान होते उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग धर्म के कामों में नहीं किया। पूरा जीवन केवल धन कमाने में ही गवां दिया।
जब वो बूढ़े हुए तो याद आया कि मैंने धन तो बहुत कमाया, लेकिन परलोक सुधारने वाला कोई काम नहीं किया। ये सोचकर दुखी होने लगे। उसी रात चोरों ने उनका धन चुरा लिया, लेकिन सुव्रत को इसका दु:ख नहीं हुआ क्योंकि वो तो परमात्मा को पाने का उपाय सोच रहे थे। तभी सुव्रत को एक श्लोक याद आया-
माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।
उनको अपने उद्धार का मूल मंत्र मिल गया। फिर उन्होंने माघ स्नान का संकल्प लिया और नौ दिनों तक सुबह जल्दी नर्मदा के पानी में स्नान किया। दसवें दिन नहाने के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। सुव्रत ने जीवन भर कोई अच्छा काम नहीं किया था, लेकिन माघ में स्नान के बाद उनका मन निर्मल हो चुका था। जब उन्होंने प्राण त्यागे तो उन्हें लेने दिव्य विमान आया। उस पर बैठकर वो स्वर्ग चले गए।