Acn18.com/मणिपुर में हिंसा अब थम चुकी है। हालांकि हालात सामान्य होने में वक्त लगेगा। चूराचांदपुर जिले में रविवार सुबह 7 बजे से 10 बजे तक के लिए कर्फ्यू हटाया गया, ताकि लोग अपनी जरूरत का सामान खरीद सकें। 10 बजते ही सेना और असम राइफल्स ने पूरे जिले में फ्लैग मार्च किया। 27 अप्रैल को चूराचांदपुर जिले से ही हिंसा शुरू हुई थी।
वहीं, भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। दरअसल, 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने मणिपुर सरकार को मैतेई समुदाय के लोगों को ST कैटेगरी में शामिल करने पर विचार करने के लिए कहा था। इसी आदेश के खिलाफ हुए प्रदर्शन के बाद हिंसा भड़की थी।
मणिपुर हिंसा में अब तक 54 लोगों की मौत हो चुकी है। 100 से ज्यादा लोग घायल हैं। सेना के मुताबिक, अब तक सभी समुदायों के 23 हजार से ज्यादा लोगों का रेस्क्यू कर सैन्य कैंप में भेजा गया है। राज्य में सुरक्षाबलों की 14 कंपनी तैनात की गई हैं। केंद्र सरकार 20 और कंपनी राज्य में भेजने वाली है।
मणिपुर CM ने की ऑल पार्टी मीटिंग
मणिपुर के CM एन बीरेन सिंह ने राज्य में हालात को संभालने के लिए शनिवार को ऑल पार्टी मीटिंग की थी। मीटिंग में उन्होंने कहा कि सभी लोग पार्टी लाइन से हटकर तनाव को कम करने और स्थिति सामान्य करने के लिए काम करें। सभी लोगों ने इस पर सहमति भी जताई।
भाजपा विधायक बोले- जनजाति नहीं है मैतेई समुदाय
भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई ने कहा है कि मैतेई समुदाय एक जनजाति नहीं है और इसे कभी इस रूप में मान्यता भी नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि ये आदेश देना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इस पर सिर्फ राज्य सरकार फैसला ले सकती है। ये आदेश अवैध है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को यह समझना चाहिए था कि ये राजनीतिक मुद्दा है और इसमें हाईकोर्ट की कोई भूमिका नहीं है। हाईकोर्ट के इस फैसले से आदिवासियों के बीच गलतफहमी पनपी और तनाव बढ़ा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के इस आदेश पर स्टे लगाने की मांग की है।
राज्य में NEET एग्जाम पोस्टपोन
राज्य के हालात को देखते हुए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने राज्य में NEET-UG के एग्जाम पोस्टपोन कर दिए हैं। जिन स्टूडेंट्स को मणिपुर सेंटर मिला है उनके एग्जाम बाद में होंगे। राज्य के 11 सौ लोग असम में शरण लिए हुए हैं। भारत-म्यांमार सीमा पर हवाई निगरानी भी की जा रही है।
शुक्रवार को मोबाइल इंटरनेट पर बैन लगा दिया गया था। दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए थे। साथ ही मणिपुर जाने वाली ट्रेनों को रोक दिया गया। हिंसा को देखते हुए राज्य के 16 में से 8 जिलों में कर्फ्यू लगाया गया था। अब धीरे-धीरे इन इलाकों में कर्फ्यू में ढील दी जा रही है।
4 प्वाइंट्स में जानिए, पूरा विवाद…
मणिपुर में आधी आबादी मैतेई समुदाय की
मणिपुर की लगभग 38 लाख की आबादी में से आधे से ज्यादा मैतेई समुदाय के लोग हैं। मणिपुर के लगभग 10% क्षेत्रफल में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल है। हाल ही में मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करने के आदेश जारी किए हैं।
मैतेई समुदाय आरक्षण क्यों मांग रहा है
मैतेई समुदाय के लोगों का तर्क है कि 1949 में भारतीय संघ में विलय से पूर्व उन्हें रियासतकाल में जनजाति का दर्जा प्राप्त था। पिछले 70 साल में मैतेई आबादी 62 फीसदी से घटकर लगभग 50 फीसदी के आसपास रह गई है। अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए मैतेई समुदाय आरक्षण मांग रहा है।
नगा-कुकी जनजाति आरक्षण के विरोध में
मणिपुर की नगा और कुकी जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। राज्य के 90% क्षेत्र में रहने वाला नगा और कुकी राज्य की आबादी का 34% हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। राजनीतिक रूप से मैतेई समुदाय का पहले से ही मणिपुर में दबदबा है। नगा और कुकी जनजातियों को आशंका है कि एसटी वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों में बंटवारा होगा। मौजूदा कानून के अनुसार मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है।
हालिया हिंसा का कारण आरक्षण ही मुद्दा
मणिपुर में हालिया हिंसा का कारण मैतेई आरक्षण को माना जा सकता है, लेकिन पिछले साल अगस्त में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार ने चूराचांदपुर के वनक्षेत्र में बसे नगा और कुकी जनजाति को घुसपैठिए बताते हुए वहां से निकालने के आदेश दिए थे। इससे नगा-कुकी नाराज चल रहे थे। मैतेई हिंदू धर्मावलंबी हैं, जबकि एसटी वर्ग के अधिकांश नगा और कुकी ईसाई धर्म को मानने वाले हैं।