6 अप्रैल को हनुमान जी का प्रकट उत्सव है। इस दिन हनुमान जी अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। हनुमान जी का एक स्वरूप पंचमुखी है। ये स्वरूप वीरता और साहस का प्रतीक है। इसलिए पंचमुखी हनुमान की पूजा करने से आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है, साहस बढ़ता है और हम मुश्किल से मुश्किल काम कर पाते हैं।
ये है पंचमुखी हनुमान की कथा
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और श्रीराम कथाकार पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पंचमुखी स्वरूप की कथा हनुमान जी और अहिरावण से जुड़ी है। कथा के अनुसार श्रीराम और रावण का युद्ध चल रहा था। उस समय रावण के यौद्ध श्रीराम को रोक नहीं पा रहे थे। तब रावण ने अपने मायावी भाई अहिरावण को बुलाया।
अहिरावण मां भगवती का भक्त था। उसने अपनी तपस्या के बल माया रची और श्रीराम-लक्ष्मण सहित पूरी वानर सेना को बेहोश कर दिया। इसके बाद वह श्रीराम-लक्ष्मण को पाताल में गया और बंदी बना दिया।
जब अहिरावण युद्ध भूमि से चला गया तो उसकी माया खत्म हुई। हनुमान जी, विभीषण और पूरी वानर सेना को होश आया तो विभीषण समझ गए कि ये सब अहिरावण ने किया है।
विभीषण ने हनुमान जी को श्रीराम-लक्ष्मण की मदद के लिए पाताल लोक भेज दिया। विभीषण ने हनुमान जी को बताया कि अहिरावण ने मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए पांच दिशाओं में दीपक जला रखे हैं। जब तक ये पांचों दीपक जलते रहेंगे, तब तक अहिरावण को पराजित करना संभव नहीं है। ये पांचों दीपक एक साथ बुझाने पर ही अहिरावण की शक्तियां खत्म हो सकती हैं। आपको वो पांचों दीपक एक साथ बुझाने होंगे, उसके बाद ही अहिरावण का वध हो सकेगा।
विभीषण की बातें सुनकर हनुमान जी पाताल लोक पहुंच गए। पाताल में उन्होंने देखा कि अहिरावण ने एक जगह पांच दीपक जला रखे हैं। हनुमान जी ने पांचों दीपक एक साथ बुझाने के लिए पंचमुखी रूप धारण किया और पांचों दीपक एक साथ बुझा दिए। दीपक बुझने के बाद अहिरावण की शक्तियां खत्म हो गईं और हनुमान जी ने उसका वध कर दिया।
हनुमान जी ने श्रीराम-लक्ष्मण को कैद से मुक्त कराया और उन्हें लेकर लंका पहुंच गए।
ये हैं हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप
हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप में उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख और पूर्व दिशा में हनुमान मुख है।
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