Acn18.com/पूर्वांचल को बादशाहत की बीमारी है। गुंडई में बादशाहत। धार्मिक कामों में बादशाहत। विकास में पिछड़ने की बादशाहत। माफिया गिरी में बादशाहत और तो और माफियाओं को माननीय बनाने में बादशाहत। बादशाहत की इस कड़ी में एक प्रमुख नाम बृजेश सिंह का भी शामिल है।
यूपी के टॉप 25 मोस्ट वांटेड क्रिमिनल लिस्ट में बृजेश का नाम शामिल है। कुल 41 केस हैं। 15 में बरी हो चुके हैं। बाकी के 26 केस कोर्ट में हैं। कई मामलों में आज तक ट्रायल नहीं शुरू हो सका। किसी मामले में अब तक कोई सजा नहीं हुई।
बृजेश की कहानी में ट्रेजडी है। इमोशन है। ड्रामा है। क्राइम तो ऐसा कि सुनने वालों की रूह कांप जाए। आइए आज आपको बृजेश की शुरू से लेकर अब तक की कहानी बताते हैं। शुरुआत उनके बचपन से जब वो बृजेश नहीं बल्कि अरुण सिंह हुआ करता था।
पिता चाहते थे कि बेटा IAS अफसर बने
साल 1964. वाराणसी का धौरहरा गांव। किसान और स्थानीय नेता रविंद्र नाथ सिंह के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा अरुण सिंह। रविंद्र का सपना था कि उनका बेटा बड़ा होकर IAS बने और परिवार का नाम रोशन करे। अरुण पढ़ाई में अच्छा था। उसने अच्छे नंबरों से 12वीं पास की और B.Sc में एडमिशन ले लिया। इसके साथ ही वो IAS परीक्षा की तैयारी भी करने लगा।
अरुण को अपने पिता से बहुत लगाव था इसलिए वो उनका सपना पूरा करने के लिए जमीन आसमान एक करने को तैयार था। लेकिन फिर अरुण की जिंदगी में एक ऐसा दिन आया जिसने उसे एक होनहार स्टूडेंट से माफिया बना दिया। 27 अगस्त 1984 को गांव के 6 दबंगों ने अरुण के पिता की हत्या कर दी। अरुण इस हादसे को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके सिर पर अपनी पिता की मौत का बदला लेने का खून सवार हो गया।
हत्यारे के पिता के पैर छुए और उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया
अरुण के पिता की हत्या का आरोप लगा पड़ोस के पांचू पर। पांचू उस वक्त इलाके में सबसे पॉवरफुल हुआ करता था। अरुण पांचू के घर पहुंचा। घर के बाहर पांचू के पिता हरिहर सिंह बैठे थे। उसने झुककर उनके पैर छुए, शॉल भेंट की और बंदूक निकालकर गोलियों से छलनी कर दिया। पिता की हत्या का बदला लेने की यह पहली कड़ी थी।
उसके पिता की हत्या में गांव के ही प्रधान रघुनाथ की भी भूमिका थी, जिसे अरुण ने भरी कचहरी में AK-47 से भून दिया। पूर्वांचल के इतिहास में पहली बार AK-47 से मर्डर हुआ। ऐसे में पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। इस गैंगवार को रोकने के लिए टीम बनाई। फिर पुलिस एनकाउंटर में पांचू को मार दिया गया। इस एनकाउंटर से लगा कि खूनी खेल बंद हो जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ।
सिकरौरा गांव में पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव सहित 6 लोगों की हत्या कर दी गई। इस दौरान अरुण को गोली लगी, पुलिस ने उसे पकड़ लिया। फिर पुलिस ने अरुण को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया, यहां से वह फरार हो गया। पुलिस ने हर जगह उसकी तलाश शुरू की और कुछ साल बाद उसे फिर से गिरफ्तार किया गया।
अरुण ने बदला लेने के लिए 6 लोगों की हत्या कर दी। इस वाकये ने जनता के बीच उसका खौफ पैदा कर दिया। अरुण को भी अपनी ताकत का एहसास होने लगा। अब वो अरुण सिंह से बदलकर माफिया बृजेश सिंह के नाम से जाना जाने लगा। जेल में ही उसकी मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई। जल्द ही अच्छी दोस्ती हो गई। धीरे-धीरे दोनों ने मिलकर ठेकेदारी और रंगदारी जैसे काम शुरू कर दिए।
1988 में त्रिभुवन के हेड कॉन्स्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या में नाम आया साधु सिंह और मुख्तार अंसारी का। इस हत्याकांड के पहले तक इन दोनों गैंग के बीच कोई खास दुश्मनी नहीं थी, लेकिन इसके बाद दोनों एक-दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन बन गए। त्रिभुवन अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसमें बृजेश ने उसकी मदद करने की ठानी।
पुलिस की वर्दी पहनकर साधु सिंह की हत्या कर दी
राजेंद्र सिंह की हत्या के बाद साधु सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार किया। जब साधु जेल में था तभी वह पिता बना। ऐसे में साधु अपनी पत्नी और बच्चे को देखने अस्पताल आया। इसी दौरान पुलिस की वर्दी पहने एक व्यक्ति ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने बताया कि ये हत्या बृजेश ने की। दोपहर में हुई इस हत्या के 6 घंटे बाद खबर आई कि साधु सिंह की मां-भाई समेत परिवार के 8 लोगों को मुदियार गांव में मार डाला गया।
छोटा राजन तक पहुंच गया ब्रजेश सिंह
बृजेश यहां से अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह बनने की तरफ तेजी से बढ़ गया। 1992 में बृजेश ने गुजरात में रघुनाथ यादव नाम के एक व्यक्ति को गोली मार दी। जब सब-इंस्पेक्टर झाला ने पकड़ने की कोशिश की तो उन्हें भी गोली मार दी गई। पुलिस का कहना है कि झाला को गोली मारने वाला भी बृजेश ही था।
बृजेश को लेकर जो डर का माहौल बना उसी के बलबूते वह पूर्वांचल के जिलों से निकलकर झारखंड तक पहुंच गया। वो छोटा राजन के सबसे खास अंडर वर्ल्ड डॉन सुभाष ठाकुर से जा मिला। झारखंड के कोल माफिया सूरजदेव सिंह से नजदीकी बढ़ी। वो बिहार के सूरजभान का खास हो गया। यहां से बृजेश ने पैसा बनाना शुरू किया। तभी अचानक मुंबई में आतंकी हमला होता है, दाऊद और सुभाष ठाकुर अलग हो जाते हैं। इसके बाद सुभाष अब बृजेश के साथ हो गया।
पूर्वांचल में बादशाहत के बीच मुख्तार बना रोड़ा
अब बृजेश के पास पैसा भी था और पावर भी, लेकिन वह राजनीतिक रूप से मजबूत नहीं बन पाया था। वहीं दूसरी तरफ साधु सिंह की हत्या के बाद मुख्तार राजनीति में आकर विधायक बन चुका था। पुलिस अब मुख्तार के इशारे पर चलती और बृजेश को परेशान करती।
इसके बाद बृजेश के लोगों पर हमला होने लगा, जिससे कई लोगों की मौत हो गई। फिर बृजेश गुट ने तय किया कि अब मुख्तार को रास्ते से हटाना पड़ेगा।
मुख्तार की गाड़ी पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं
बात जुलाई 2001 की है। मुख्तार अपने काफिले के साथ जा रहा था। बृजेश गुट का एक ट्रक मुख्तार के काफिले के आगे और दूसरी कार काफिले के पीछे चल रही थी। मोहम्मदाबाद से 7 किलोमीटर दूर उसरी चट्टी के पास रेलवे का फाटक बंद हो गया तो कार पीछे ही रह गई।
तभी अचानक ट्रक रुका और दो हथियार बंद बदमाश मुख्तार के काफिले पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने लगे। ऐसे में मुख्तार गाड़ी से कूदकर फायरिंग करते हुए खेतों की तरफ भगा। तब तक इधर उसके गनर समेत तीन लोग मार दिए गए। बताया जाता है कि मुख्तार ने दोनों बदमाशों को अपने निशाने से ढ़ेर कर दिया और एक गोली बृजेश को भी लगी।
राजनीतिक मदद के लिए कृष्णानंद को किया साथ
अब बृजेश समझ गया था कि बिना राजनीतिक लोगों की मदद लिए मुख्तार को नहीं हराया जा सकता। इसलिए साथ पकड़ा कृष्णानंद राय का। कृष्णानंद राय बृजेश के साथ तो गए लेकिन उसके बाद उनका जो अंजाम हुआ वह UP के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना बन गई।
2005 में कृष्णानंद राय के काफिले को घेरकर करीब 500 राउंड फायरिंग हुई। कृष्णानंद राय सहित सभी 7 लोग मार दिए गए। पोस्टमॉर्टम हुआ तो इन सभी की बॉडी से 67 गोलियां निकलीं। सभी फायरिंग AK-47 से हुई थी।
…सबको लगा बृजेश की मौत हो गई, लेकिन ऐसा था नहीं
इस घटना के बाद से बृजेश गायब हो गया। लोगों के बीच ये चर्चा शुरू हो गई कि बृजेश की मौत हो गई, हालांकि पुलिस को इस पर भरोसा नहीं था। हैरानी की बात ये कि पुलिस के पास बृजेश की कोई नई फोटो नहीं थी। एकमात्र जो फोटो थी वह पुरानी थी। जिसके आधार पर बृजेश को पकड़ना बेहद मुश्किल था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को तीन साल बाद इस काम में कामयाबी मिल गई। 2008 में पुलिस ने उड़ीसा के भुवनेश्वर से बृजेश को गिरफ्तार कर लिया। बृजेश वहां अपने बचपन के अरुण कुमार नाम से रह रहा था।
बृजेश आए तो खून की नदियां बहने लगीं
बृजेश जेल में था, लेकिन उसके जिंदा होने की वजह मात्र से पूर्वांचल में फिर से खून खराबा शुरू हो गया। 4 मई 2013 को बृजेश के खास जिला पंचायत सदस्य अजय खलनायक की गाड़ी को निशाना बनाकर गोलियां दागी गईं, गाड़ी में पत्नी भी साथ थी। तीन गोली अजय और एक गोली पत्नी को लगी, हालांकि दोनों बच गए। ठीक दो महीने बाद 3 जुलाई को बृजेश के चचेरे भाई सतीश सिंह को सरेआम गोलियों से भून दिया गया।
बृजेश पुलिस हिरासत के बीच तेरहवीं में शामिल होने धौरहरा गांव आया। परिवार की हालत देखकर रो पड़ा। उसने कहा, पुलिस ने लापरवाही दिखाई, अगर अजय खलनायक पर हुए हमले के मामले में दर्ज केस से मुख्तार का नाम नहीं हटाया गया होता तो ये घटना नहीं होती। ये पहली बार था जब बृजेश ने पुलिस पर भरोसा जताते हुए ये कहा था। इसके पहले हमेशा खुद बदला लिया।
मुख्तार को मारने के लिए 6 करोड़ की सुपारी दी
बृजेश अब जेल में था इसलिए उसने मुख्तार की हत्या के लिए लंबू शर्मा को 6 करोड़ रुपए की सुपारी दी। लंबू कुछ कर पाता इसके पहले ही पुलिस ने उसे आरा कोर्ट धमाके के मामले में गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ हुई तो सुपारी का खुलासा हो गया। इसके बाद उस वक्त की सपा सरकार ने मुख्तार की सुरक्षा दोगुनी कर दी गई। वह विधानसभा जाता तो विशेष निगरानी होती। पूर्वांचल के हिस्सों में हिंसा रोकने के लिए पुलिस की स्पेशल क्राइम ब्रांच नजर रखने लगी।
जेल से ही चुनाव लड़ा और MLC बन गया
बृजेश ने 2012 में चंदौली की सैयदराजा सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन मनोज सिंह डब्ल्यू से हार गया। फिर बृजेश ने 2016 में शाहजहांपुर जेल में रहते हुए निर्दलीय वाराणसी सीट से MLC का चुनाव लड़ा और जीत गया। बृजेश ने मनोज सिंह की बहन मीना सिंह को 1986 वोट से हराकर उस हार का बदला ले लिया। फिलहाल बृजेश जेल में ही रहा। उसका सारा काम हेमंत कुमार सिंह करते हैं।
बृजेश देश का एकमात्र MLC रहा है, जिस पर 41 केस दर्ज हैं। मकोका यानी महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट, टाडा यानी टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट, गैंगस्टर एक्ट, हत्या, हत्या की साजिश, दंगा भड़काने, वसूली और धोखे से जमीन हड़पने के मुकदमे दर्ज हैं। लेकिन आज तक उसे किसी भी केस में दोषी साबित नहीं किया जा सका है।