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श्रीराम से सीखें मित्रता में किन बातों का ध्यान रखें:ऐसे लोगों से दोस्ती करें जो बुरे समय में भी साथ रहें, ध्यान रखें बुरी आदत वाले लोगों से दूर रहना चाहिए

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हम पारिवारिक रिश्तों से अलग घर के बाहर दोस्त बनाते हैं। अच्छे दोस्त वही होते हैं जो हमारी दिक्कतें दूर करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ध्यान रखें ऐसे लोगों से मित्रता नहीं करनी चाहिए, जिनमें बुरी आदते हैं, जो गलत काम करते हैं। संगत का हमारे जीवन पर गहरा असर होता है, इसलिए मित्रों के मामले में सतर्क रहें।

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रामायण में श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता से हम मित्रों के गुण सीख सकते हैं। श्रीराम और सुग्रीव पहली बार मिल रहे थे। उस समय श्रीराम ने सुग्रीव से कहा कि मैं जंगल में भटक रहा हूं, क्योंकि मुझे मेरी पत्नी सीता को खोज करनी हैं, लेकिन आप तो राजा हैं, फिर आप जंगल में रह रहे हैं?

सुग्रीव ने अपने नए मित्र राम से कहा कि मेरा एक बड़ा भाई है बालि। वह राज-पाठ के लिए मेरा दुश्मन बन गया है। कुछ समय पहले एक राक्षस हमारे राज्य में आ गया तो बालि उसे मारने गया। बालि के पीछे-पीछे मैं भी चला गया। बालि और राक्षस एक गुफा में चले गए। मैं गुफा के बाहर ही खड़ा रहा।

कुछ दिनों के बाद उस गुफा से बाहर खून निकलने लगा। खून देखकर मैं डर गया, मुझे लगा कि बालि मारा गया। मैं डर गया था तो अपने राज्य लौट आया और सभी लोगों को पूरी घटना बना दी। यहां के लोगों को भी लगा की बालि मारा गया तो उन्होंने मुझे राजा बना दिया। जब मेरा भाई बालि लौटकर आया तो उसे लगा कि मैं जानबूझकर राजा बन गया हूं। उसने में मुझे मारकर राज्य से भगा दिया, वह मुझे शत्रु समझने लगा है। मैं उससे बचने के लिए ही जंगल में छिपा हुआ हूं।

श्रीराम ने सुग्रीव की बातें ध्यान से सुनीं और कहा कि आपका राज्य वापस दिलवाने में मैं आपकी मदद करूंगा।

सुग्रीव को श्रीराम पर भरोसा नहीं हुआ, वह सोचने लगा कि बालि तो बहुत ताकतवर है तो राम उसे कैसे मारेंगे? उस समय श्रीराम ने सुग्रीव से कहा कि अब मैं तुम्हारा मित्र हूं। मित्र की विशेषता ये है कि वह अपने मित्र को दुखी देखकर उसे अपना दुख मान लेता है। उस दुख को दूर करने की कोशिश करता है। विपत्ति के समय मित्र के साथ खड़े रहना ही मित्र का सबसे बड़ा गुण है। इसलिए मुझ पर भरोसा रखो, मैं तुम्हारे दुख दूर करने में मदद जरूर करूंगा।

ये बातें सुनकर सुग्रीव को श्रीराम पर भरोसा हो गया।

इस प्रसंग में श्रीराम ने हमें संदेश दिया है कि मित्र के दुख को अपना दुख मानना चाहिए और उसके दुख को दूर करने की कोशिश करना चाहिए। सच्चा मित्र वही है जो मित्र के दुख में साथ खड़ा रहता है। ध्यान रखें कभी भी गलत व्यक्ति को मित्र न बनाएं।

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