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कोयला खदान में बरती जा रही अनियमितता,पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने सीएमडी को लिखा खत

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Acn18.com/कोरबाः- एस.ई.सी.एल. की कुसमुण्डा खदान के ओव्हर वर्डेन क्षेत्र का निरीक्षण करने गए 6 सदस्यीय टीम के अहम सदस्य जितेन्द्र नागरकर की जल सैलाब में बह जाने से हुई मौत के मामले पर चिंता व्यक्त करते हुए पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने एस.ई.सी.एल. के सी.एम.डी को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा है कि खदान की सुरक्षा में  लगातार लापरवाही बरती जा रही है। कोल इंडिया द्वारा संचालित विभिन्न कोयला खदानों के लिए सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम पर प्रतिवर्ष लगभग 150 करोड़ रूपये खर्च किए जाते हैं जिसमें से एस.ई.सी.एल प्रबंधन द्वारा कोरबा में संचालित देश की सर्वाधिक कोयला उत्पादक महत्वपूर्ण खदानों कुसमुण्डा, गेवरा व दीपका को लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा प्रदान किया जाता है। इतनी बड़ी धनराशि मिलने के बाद भी खदानों की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलती अभी हाल की घटना है जिसमें प्रबंधन की लापरिवाहियों की कीमत सहायक प्रबंधक जितेन्द्र नागरकर को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी। आश्चर्य है कि इस हादसे से लगभग 15 दिनों पूर्व कुसमुण्डा खदान का निरीक्षण करने सी.एम.डी. स्वयं आए थे और पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने अधिकारियों को कड़े निर्देश भी दिए थे बावजूद इसके इस तरह का हादसा हुआ जो अधिकारियों की लापरवाहियों को उजागर करता है। इस तरह के लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए।
पत्र में आगे लिखा कि कुसमुण्डा खदान क्षेत्र में प्रबंधन की लापरवाही के कारण हुई इस दुर्घटना से चार दिन पहले ग्राम भठोरा में भी इसी तरह की घटना हुई थी जो स्वतः खदानों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवालिया निशान लगाता है लेकिन इस घटना से भी प्रबंधन ने कोई सबक नहीं लिया। सुखद संयोग यह रहा कि इस घटना में जनहानि नहीं हुई लेकिन सुरक्षा व्यवस्था पर अनेक सवालिया निशान जरूर बनते हैं। कुसमुण्डा की घटना के संबंध में एस.ई.सी.एल. प्रबंधन ने विज्ञप्ति जारी करते हुए स्वीकार किया है कि ह्यूम पाइप के जाम हो जाने से जल निकासी अवरुद्ध होने की वजह से हादसा हुआ। सवाल उठता है कि केवल ह्यूम पाईप लगाकर प्रबंधन अपनी जिम्मेदारियों से कैसे बच सकता है। ह्यूम पाईप जाम न होने पाए और जल निकासी अवरुद्ध न हो इसके लिए प्रबंधन ने क्या उपाय किए। इन दोनों घटनाओं के बाद जबकि मानसून का एक लम्बा समय अभी बाकी है, खदानों में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी इसके लिए प्रबंधन क्या ठोस कदम उठा रही है यह स्पष्ट नहीं है।
अपने पत्र में जयसिंह ने लिखा है कि इसी प्रकार से एस.ई.सी.एल प्रबंधन की कालोनियों में कर्मचारियों की सुरक्षा व्यवस्था की भी गंभीर स्थिति है जहां 70 प्रतिशत से अधिक मकान जर्जर हो चुके हैं जिनमें छतों से पानी टपकने, दीवालों पर सीलन और मकानो के छज्जों और प्लास्टर के गिरने की घटनाएं आम हो गई हैं। यहां बताना होगा कि मंत्री रहते हुए जयसिंह अग्रवाल द्वारा एस.इ.सी.एल. की अनेक कालोनियों का भ्रमण कर निरीक्षण भी किया गया था और मकानों की जर्जर स्थिति को अपनी आंखों से देखा था। इस संबंध में उस समय जयसिंह अग्रवाल द्वारा एस.ई.सी.एल के खदानों और कालोनियों में सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर स्थिति पर प्रबंधन की लापरवाहियों को इंगित करते हुए सी.एम.डी. को पत्र लिखा गया था और मुख्यालय पत्र को गंभीरता से लेते हुए यथोचित निर्देश जारी किया था और उस समय स्थानीय प्रबंधन द्वारा कुछ कार्य भी करवाए गए थे लेकिन बाद में ऐसा प्रतीत होता है कि कालोनियों में सुधार और मरम्मत कार्य को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
कालोनियों में साफ-सफाई का आलम यह है कि सभी तरफ कचरों के ढ़ेर दिखाई देंगे। नालियां जाम हैं जिनकी वजह से मच्छरों का आतंक है, सड़को दशा ऐसी हैं कि बरसात के दिनों में गडढ़ों में पानी भरा होने से पता ही नहीं चलेगा कि कहां कितना गडढ़ा है और दुपहिया वाहन चालक अक्सर गिरते रहते हैं। छतों से टपकनेवाले पानी से बचाव के लिए कर्मचारी पन्नियों का सहारा लेते हैं, दीवालों की सीलन से कपड़े खराब न हों इसके लिए भी वे दीवालों में पन्नियां लगाकर रखते हैं। ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए बनाई गई सीढ़ियों की स्थिति ऐसी है कि उसपर चलते हुए डर लगता है कि कब गिर जाए। बिजली आपूर्ति की स्थिति तो ऐसी है कि दिन हो या रात, बिजली सप्लाई कब तक रहेगी कोई नहीं बता सकता।
उपर्युक्त विषयों पर प्रबंधन की घनघोर लापरवाहियों के हवाले से जयसिंह अग्रवाल ने सी.एम.डी. केा लिखे पत्र से उम्मीद जताई है कि लोगों के जीवन से खिलवाड़ पर रोक लगाते हुए सुरक्षा व्यवस्था को प्राथमिकता से सुनिश्चित करने की दिशा में एस.ई.सी.एल. प्रबंधन द्वारा ठोस कदम उठाए जाएंगे।

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