spot_img

भारत ने फिर साबित किया, कि वह ‘लोकतंत्र की जननी’ है – डॉ राजाराम त्रिपाठी एवं एम.राजेन्द्रन (वरिष्ठ पत्रकार दिल्ली)

Must Read

acn18.com / भारत 18वीं लोकसभा 2024 के चुनावी नतीजा आ गए हैं और दीवार पर लिखी ये इबारत अब साफ पढ़ने में आ रही है कि गठबंधन सरकार बनने जा रही है। हालिया चुनावी नतीजों के बारे में राजनीतिक विश्लेषक चाहे जो भी दावा करते रहे पर इस चुनाव का मुख्य निष्कर्ष तो यही उभर कर आया है कि भारत की जनता का लोकतंत्र में अटूट विश्वास है। जी हां, इन नतीजों ने स्पष्ट रूप से साबित किया कि भारत की जनता जनार्दन की लोकतांत्रिक मूल्यों में न केवल बहुत गहरी आस्था है, बल्कि जब भी जरूरत पड़ती है,वे इसकी रक्षा के लिए तमाम अवरोधों को पार करके तन कर उठ खड़े होते हैं। हालिया चुनाव के ये सत्यापित निष्कर्ष, कुछ दिन पहले के संयुक्त राज्य अमेरिका की भारत में निरंकुश शासन की पक्षधर रिपोर्ट के सर्वथा विपरीत हैं और उसे मुंह चिढ़ाने वाले हैं।

- Advertisement -

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के 2023 के सर्वेक्षण का कहना था कि, कुल 85% भारतीय उत्तरदाताओं ने कहा कि सैन्य शासन या एक सत्तावादी नेता का शासन देश के लिए अच्छा होगा।

जबकि भारत के लोगों ने साबित कर दिया है कि वे लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष क्यों चाहते हैं। भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के पिछले 10 वर्षों के क्रियाकलाप भारत की जनता को यह विश्वास दिलाने में पूरी तरह से नाकामयाब रहे कि पूर्ण बहुमत वाली कोई एक पार्टी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी है।
अकादमिक तौर पर इस पर बहस जारी रहेगी, जो अच्छी बात है। लेकिन व्यावहारिक रूप से, यह सुनिश्चित करने के लिए लड़ाई जारी रहेगी कि देश को चलाने में किसी एक पार्टी को अनियंत्रित शक्ति हासिल न हो।

अगले कुछ दिनों में, भाजपा और कांग्रेस दोनों द्वारा फेरबदल और संयोजन एक ऐसी सरकार प्रदान करने के लिए होंगे जो भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति की सच्ची प्रतिनिधि हो।
यह राह आसान नहीं होने वाली है, पर व्यापक देशहित तथा स्वस्थ लोकतंत्र के विकास हेतु यह निहायत जरूरी है। सरकार कोई भी हो पर उसका मूल उद्देश्य भारत के पवित्र संविधान की मंशा के अनुरूप अनुसार भारत के लोगों की सेवा करना और यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी इसके मूल ढांचे को बदलने के बारे में सोचने की कोशिश भी न करे।
यह सभी गठबंधन सहयोगियों के मन में सर्वोपरि होना चाहिए, भले ही इस महीने केंद्र में एनडीए या इंडिया गठबंधन सरकार बनाए।

नतीजों ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि भारत में एक बार फिर गठबंधन सरकार बन रही है। गठबंधन के सभी राजनीतिक दलों पर यह महती जिम्मेदारी होगी कि वे देश के सामने मौजूद चुनौतियों प्राथमिकता के आधार पर तत्काल ध्यान दें।
नई सरकार की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?

रोजगार :
नवीन रोजगार सृजन तथा केंद्र एवं राज्य सरकार में रिक्त पदों को भरना। जिन राजनीतिक दलों ने मध्य प्रदेश और तमिलनाडु जैसे अपने राज्यों में सभी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की है,उन्हें लोगों के सामने यह साबित करना चाहिए कि उन्होंने जो वादे किए थे , उसे सही मायने में पूरा किया। रोजगार के क्षेत्र में अब ठोस कार्य व ठोस नतीजे चाहिए, जुबानी जमा खर्च और हवाई जुमलेबाजी से काम नहीं चलने वाला।

रोजगार की कमी एक अहम चुनौती है. इसे बेकार के तर्कों से दबाना नहीं चाहिए कि जो कोई काम करना चाहता है उसे ही कुछ काम मिलेगा। सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ रोजगार देना ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रों में नये रोजगार पैदा करना भी है।

बढ़ती कीमतें :
सरकार को बुनियादी उपभोग वस्तुओं की ऊंची लागत को कम करने पर ध्यान देना चाहिए। यह अपने आप नहीं होता. इस समस्या के समाधान के लिए नीति निर्देशों की तत्काल आवश्यकता है। किसी भी देरी से लोग नाराज होंगे, जो समाज के लिए अच्छा नहीं है।

कृषि क्षेत्र का व्यापक असंतोष: देश की मुख्य जीवनरेखा कृषि तथा कृषि संबद्ध गतिविधियों में सलंग्घ देश की लगभग 61% कृषक जनता गंभीर संकट में है तथा इनमें हर स्तर पर भारी मात्रा में संतुष्टि देखी जा सकती है। विवादित तीन कानूनों ने उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। खेती को लाभकारी उद्यम बनाने की दिशा में ठोस कार्य करते हुए घोर गरीबी में जीवन यापन कर रहे इस वर्ग के हित में सत्ता में शामिल सभी दलों के द्वारा दृढ़ राजनीतिक इक्षा शक्ति के साथ बहुत कुछ किया जाना जरूरी है।जरूरी है कि देश की खेती तथा किसानों के संदर्भ में गठबंधन सरकार एक सुर में अपनी आगामी नीतियों व योजनाओं की तत्काल घोषणा करे। इस कार्य में नीति निर्माण से लेकर योजना क्रियान्वयन तक में मुख्य भागीदार कृषकवर्ग को भी शामिल किया जाना जरूरी है।
गठबंधन सरकार की खींचतान और दबाव वास्तव में यह सुनिश्चित कर सकता है कि कोई भी राजनीतिक दल केवल अपना एजेंडा ही लागू न करे। ध्यान रहे कि बेरोजगारी और जीवन यापन की उच्च लागत एक सार्वभौमिक समस्या है, और गठबंधन में प्रत्येक राजनीतिक दल इसका समाधान करने के लिए बाध्य है।

एकल बहुमत वाली पार्टी की सरकार में, प्रायः कोई सीधा अथवा पार्श्व नियंत्रण और संतुलन नहीं होता और यदि कोई है भी तो व्यापक जनता हित के संदर्भ में इसका दायरा और प्रभाव सीमित होता है, गठबंधन सरकार भारत के लोगों को यह दिखाने का अवसर देती है कि वे मतभेद और अलग विचारधारा के बावजूद देश हित में एक टीम के रूप में काम कर सकते हैं।.
चूँकि, अंततः, यह देश और लोकतंत्र ही है जो पनपता और फलता-फूलता है। हालाँकि संकीर्ण और अदूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ स्वार्थपरायण गठबंधन में राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

केंद्र में नई सरकार को यह साबित और प्रदर्शित करना होगा कि वह हमारे संविधान में निहित लोकतंत्र का पालन करेगी, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करेगी। यदि वे ऐसा नहीं करते तो भारत की जनता ने जैसा तेवर 1977 में दिखाया था, वैसा ही अभी 2024 में प्रदर्शित किया है कि जनता उस लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए क्या कर सकती हैं, जो उन्हें उनकी स्वतंत्रता तथा उनके वाजिब अधिकार देता है । क्या इसे लेकर अब भी किसी राजनीतिक दल या राजनेता को कोई संदेह होना चाहिए ? यदि भारत की जनता की लोकतंत्र व लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था तथा उसकी प्रभावी लोकतांत्रिक शक्तियों पर किसी को कोई संदेह है, तो उन्हें मेरी शुभकामनाएँ।

377FansLike
57FollowersFollow


v

377FansLike
57FollowersFollow
Latest News

चिकित्सा छात्रों के काम आएगा पत्रकार प्रदीप का पार्थिव शरीर,मृत्यु होने पर मेडिकल कॉलेज को किया गया समर्पित

Acn18.com/कोरबा जिले के बरपाली गांव के रहने वाले पत्रकार प्रदीप महतो ने कई दशक तक ग्रामीण क्षेत्र में...

More Articles Like This

- Advertisement -