Acn18.com / कर्नाटक के डिप्टी CM डीके शिवकुमार के बेंगलुरु स्थित घर का बोरवेल सूख चुका है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के आवास पर भी पानी का टैंकर जाते देखा गया। सरकार में सबसे उच्च पद पर बैठे दोनों नेताओं का हाल देखकर शहर के आम लोगों की मुश्किलों का अंदाजा लगाना बेहद आसान है।अभी गर्मी का मौसम शुरू भी नहीं हुआ और देश के IT हब बेंगलुरु के 40% बोरवेल सूख चुके हैं। ग्राउंड वाटर 1800 फीट से नीचे चला गया है। पानी के टैंकर्स के दाम दोगुने हो गए हैं, वो भी बड़ी मिन्नतों के बाद मिल पा रहे हैं। बेंगलुरु ने अपने 500 सालों के इतिहास में पीने के पानी का इतना बड़ा संकट कभी नहीं झेला। क्या बेंगलुरु केपटाउन की तरह ‘डे जीरो’ पर पहुंचने वाला है?
भारत में हरित क्रांति और उदारीकरण के बाद लोगों की आय बढ़ी, तो खान-पान के तरीके भी बदले। इससे पहले के मुकाबले ज्यादा पानी खर्च होने लगा। शहरीकरण ने जमीन की सतह पर कॉन्क्रीट की चादर बना दी। इससे बारिश का पानी जमीन में जाने की बजाय बेवजह बह जाने लगा। इससे हालात यहां तक पहुंच चुके हैं।पिछले कुछ सालों में भारत सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। जैसे-• पानी से जुड़े सभी पहलुओं के लिए एक जलशक्ति मंत्रालय बनाया गया है। इसमें पाने के पानी, पानी से जुड़े विवाद और नदियों से जुड़े मुद्दे आते हैं।• दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना लॉन्च की गई। इसमें खेती के लिए अलग बिजली फीडर की शुरुआत हुई। ज्यादा इस्तेमाल पर इंसेटिव घटाया गया।
• सिंचाई को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना लॉन्च की गई।
• ग्राउंड वाटर पर लगाम लगे, इसके लिए केंद्र ने एक भूजल विधेयक फ्रेम किया है। इसमें भूजल पर राज्यों का नियंत्रण होगा।
• इजराइल वाटर कंजर्वेशन की एक मिसाल है। भारत ने उसके साथ एक समझौता किया है।
• भारत के सभी घरों में टैप वाटर पहुंचाने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन लॉन्च किया गया है।
• अटल भूजल योजना लॉन्च की गई, जिसके जरिए ग्राउंड वाटर रिचार्ज के प्रयास किए जा रहे हैं।बेंजामिन फ्रैंकलिन का फेमस कथन है- ‘When the well’s dry, we know the worth of water’ यानी हम पानी की अहमियत तब जानेंगे, जब कुआं सूख जाएगा। भारत में कुआं सूखने के कगार पर हैं, अब हमें पानी की अहमियत समझनी ही होगी।