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ग्राउंड रिपोर्ट: पवन सिंह के पैंतरे से बड़ी पार्टियां परेशानी में, बिहार की काराकाट सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला

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Acn18.com/कुछ वक्त पहले तक काराकाट में ऐसा कुछ भी नहीं था जो किसी का ध्यान खींचता। यहां से एनडीए के कद्दावर नेता उपेंद्र कुशवाहा मैदान में थे। गठबंधन के तहत कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक सीट मिली थी, उनके सामने थे भाकपा-माले के राजाराम सिंह। …लेकिन खलबली मची जब भाजपा के आसनसोल से तय प्रत्याशी और पावर स्टार के नाम से मशहूर पवन सिंह ने पार्टी से बगावत कर दी। पहले तो यह बात आई कि उन्होंने एक गीत में बंगला महिलाओं के बारे में अशोभनीय टिप्पणी की है इसलिए उनका विरोध हो रहा है। बहरहाल उन्होंने खुद ही आसनसोल से मैदान छोड़ दिया और कहा कि वे आरा या पास की सीट काराकाट से लड़ना चाहते हैं। तब तक आरा पर भाजपा से आरके सिंह और काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा का नाम तय हो चुका था। पवन सिंह ने हार नहीं मानी और निर्दलीय परचा भर दिया। …बस यहीं से काराकाट का मुकाबला दिलचस्प हो गया।

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पहले लगा कि पवन कुछ समय बाद मैदान से हट जाएंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। उलटे उन्होंने अपनी मां प्रतिमा देवी का भी निर्दलीय पर्चा भरवा दिया। हालांकि बाद में उन्होंने नाम वापस लिया। इस पर भाजपा नेता आरके सिंह ने तो मंच से कह दिया, पवन या तो बैठें, अन्यथा पार्टी से निकाला जाना चाहिए। इसके कुछ दिन बाद ही पवन को भाजपा से निकाल दिया गया। मुकाबला इस कदर पेचीदा हो गया है कि पीएम मोदी को कुशवाहा के समर्थन में रैली करनी पड़ी। कुशवाहा ने यहां तक कहा कि पवन को लालू प्रसाद यादव ने उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए खड़ा किया है।

मुद्दे और मतदाता-धान की खेती और पवन सिंह फैक्टर
16 लाख से अधिक मतदाताओं वाला क्षेत्र धान की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां 400 राइस मिल हैं। लालू प्रसाद यादव ने रेल मंत्री रहते यहां रेल वैगन मरम्मत कारखाने की घोषणा की, पर कुछ काम हो नहीं पाया। पिछले चार साल में कुछ राइस मिल और सीमेंट फैक्टरी लगी हैं, जिससे रोजगार मिला है, पर हाल बुरा ही है। युवाओं को रोजगार की तलाश है। नवीनगर इलाके में नक्सली गतिविधयों पर रोक लगाना, सोन नदी पर पुलों की संख्या बढ़ाना, डालमियानगर के बंद संयंत्र चालू करवाना और सोन नदी पर खनन के वाहनों से जाम को खत्म करवाना प्रमुख मुद्दे हैं।

बिक्रमगंज बड़ा शहर है। यहां के संजीवनी अस्पाताल के पास टेंट मालिक संजीव कहते हैं, पवन सिंह के आने से माहौल गरमा गया है। यहां से राष्ट्रीय लोक मंच के उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए की तरफ से टिकट दिया गया है। उनका यहां से भला क्या मतलब। महागठबंन ने भाकपा माले को यह सीट दी है। इसके प्रत्याशी हैं राजा राम सिंह। काराकाट में मेडिकल स्टोर मालिक अरुण सिंह कहते हैं, हम भाजपा के वोटर हैं। पवन को पता नहीं क्यों टिकट नहीं दिया। उनका आसनसोल से क्या लेना देना। अब उनके मैदान में निर्दलीय उतरने से मुकाबला रोचक होगा।

तीनों बार एनडीए को मिली जीत : काराकाट सीट 2009 में अस्तित्व में आई। पहले सांसद जदयू के महाबली सिंह थे। 2014 में एनडीए के घटक दल रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा जीते। 2019 में जदयू के महाबली सिंह ने महागठबंधन से लड़ रहे उपेंद्र कुशवाहा को हरा दिया।

जातीय समीकरण : पवन सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनका राजपूत होना है। हालांकि यह कुशवाहा बहुल सीट है। कुशवाहा, राजपूत और यादव समुदाय केे दो-दो लाख मतदाता हैं, डेढ़ लाख मुस्लिम मतदाता हैं। दरअसल अगड़ी जाति के वोट कुशवाहा और पवन सिंह में बटेंगे तो इसका सीधा फायदा महागठबंधन प्रत्याशी को होगा।

पिछले दो चुनाव के नतीजे
2019
उम्मीदवार                  दल                मत%
महाबली सिंह              जदयू              45.82
उपेंद्र कुशवाहा          बीएलएसपी       36.10

2014
महाबली सिंह             जदयू              45.82
उपेंद्र कुशवाहा          बीएलएसपी       36.10

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