spot_img

बस्तर में आज से गोंचा पर्व की शुरुआत:जगदलपुर में होगा चंदन जात्रा विधान, 617 साल से चली आ रही है परंपरा

Must Read

acn18.comबस्तर / छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज शनिवार से प्रसिद्ध गोंचा पर्व शुरू हो रहा है। जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में चंदन जात्रा विधान किया जाएगा। चनंद से देव विग्रहों को चनंद स्नान करवाया जाएगा। जिसके बाद से 26 दिनों तक रथ परिक्रमा समेत अलग-अलग विधान किए जाएंगे। बस्तर में गोंचा पर्व का इतिहास करीब 617 साल पुराना है। इसका इतिहास ओडिशा के जगन्नाथ पुरी से जुड़ा हुआ है।

- Advertisement -

जगदलपुर के 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज ने बताया कि, जगन्नाथ मंदिर में बनाए गए मुक्ति मंडप में देव विग्रहों को अनसर काल के दौरान यहां रखा जाएगा। भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के 22 विग्रह को रखेंगे। 23 जून से भगवान जगन्नाथ अनसर काल में रहेंगे। 6 जुलाई को नेत्रोत्सव विधान होगा, जिसके बाद भक्त प्रभु के दर्शन कर पाएंगे।

जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में सारी तैयारियां कर ली गईं हैं।

जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में सारी तैयारियां कर ली गईं हैं।

इस दिन होंगे ये विधान

  • 22 जून को देव स्नान पूर्णिमा चंदन जात्रा विधान।
  • 23 जून को जगन्नाथ भगवान का अनसर काल प्रारंभ।
  • 6 जुलाई को नेत्रोत्सव विधान
  • 7 जुलाई को गोंचा रथ यात्रा
  • 10 जुलाई को अखंड रामायण पाठ
  • 11 जुलाई को हेरा पंचमी
  • 12 जुलाई को 56 भोग अर्पण
  • 17 जुलाई को सामूहिक उपनयन संस्कार
  • 15 जुलाई को बाहुड़ा गोंचा
  • 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी

तुपकी से दी जाएगी सलामी

गोंचा पर्व पर जिस दिन रथ परिक्रमा होगी, उस दिन बस्तर में रथ को तुपकी से सलामी दी जाती है। यह परंपरा सिर्फ बस्तर में ही निभाई जाती है। गोंचा पर्व में तुपकी का भी एक अलग महत्व है। गर्मी के बाद जब बारिश का मौसम आता है तो कई तरह की बीमारियां होती है। तुपकी में जिस पेंग का इस्तेमाल किया जाता है, वह एक औषधि के रूप में होता है। उसकी महक लाभदायक होती है। पेंग की सब्जियां भी बनाई जाती है।

यह है परंपरा

बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव की माने तो सन 1400 में महाराज पुरुषोत्तम देव पैदल जगन्नाथ पुरी गए थे। वहां से प्रभु जगन्नाथ की मूर्तियां लेकर आए थे। जिसे जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया गया। जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर ही यहां रथ यात्रा निकाली जाती है। जिसमें प्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र रथारूढ़ होते हैं।

साथ ही राजा और यहां के माटी पुजारी होने के नाते कमलचंद भंजदेव चांदी के झाड़ू से छेरा पोरा रस्म अदा करते हैं। जगन्नाथपुरी में सोने के झाड़ू से इस रस्म की अदायगी के बाद ही बस्तर में यह रस्म अदा की जाती है।

7 जुलाई को रथ परिक्रमा होगी।

7 जुलाई को रथ परिक्रमा होगी।

यह भी जानिए

बताया जाता है कि, बस्तर महाराजा पुरुषोत्तम देव श्री कृष्ण के भक्त थे। 1400 में लंबी यात्रा कर वे जगन्नाथ पुरी पहुंचे थे। देवकृपा से उन्हें रथपति की उपाधि देकर 16 पहियों वाला रथ प्रदान किया गया था। उन दिनों बस्तर की सड़कें इतनी अच्छी नहीं थीं कि 16 पहियों वाला रथ सुगमता से खींचा जा सके। इसलिए सुविधा अनुसार 16 पहिए वाले रथ को तीन हिस्सों में बांट दिया गया था।

चार पहिया वाला पहला रथ गोंचा के अवसर पर खींचा जाता है। वहीं चार पहियों वाला दूसरा रथ बस्तर दशहरा में फूल रथ के नाम से 6 दिनों तक खींचा जाता है। 8 पहियों वाला तीसरा रथ भीतर और बाहर रैनी के दिन खींचा जाता है।

377FansLike
57FollowersFollow
377FansLike
57FollowersFollow
Latest News

*भारतमाला परियोजना में ली गई भूमि, अब तक नहीं मिला मुआवजा*

रायपुर, 4 जुलाई, 2024/ मुख्यमंत्री जनदर्शन में आज दुर्ग जिले के हनोदा ग्राम के आनंद साहू भी पहुंचे। उन्होंने...

More Articles Like This

- Advertisement -