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शीतोष्ण जलवायु के फल जशपुर में:फलों की खेती 10 साल में 40 हजार एकड़; स्ट्रॉबेरी, सेब, नाशपाती, काजू, लीची सब यहीं

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Acn18.com/कम तापमान, ठंडी और नमी लिए हुए जशपुर के लिए इसका यही वायुमंडल अर्थतंत्र को मजबूत करने का काम कर रहा है। बीते 10 साल में जशपुर फलों व ड्रायफ्रूट्स की खेती का बड़ा जंक्शन बनकर उभरा है। अब जशपुर के खेतों में धान समेत कोदो, कुटकी व रामतिल जैसे पारंपरिक फसलों की बजाय सेब, आम, नाशपाती, लीची, अमरूद, काजू, स्ट्रॉबेरी समेत कई फल बड़ी मात्रा में पैदा हो रहे हैं।

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इन फलों ने पहाड़ी कोरवाओं के आय का जरिया बढ़ा दिया है। पारंपरिक खेती से साल में 7-8 हजार रुपए कमाने वाले आदिवासी अब 50-70 हजार रुपए तक कमा रहे हैं। जशपुर के फल प्रदेश के बड़े शहरों के साथ झारखंड, मध्यप्रदेश, बिहार, यूपी, ओडिशा समेत अन्य राज्यों में मिठास दे रहे हैं।

बीते 10 साल में जशपुर फलों की खेती में इतना मजबूत हो चुका है कि सालाना 14 लाख क्विंटल से ज्यादा अलग-अलग वैरायटी के फल जशपुर से छत्तीसगढ़ के दूसरे शहरों या राज्यों तक जा रहे हैं। 21 हजार से ज्यादा किसान 40 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर खेती कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर किसान आदिवासी हैं और हार्टिकल्चर विभाग से इन्हें इसके लिए मदद मिल रही है।

रूरल एजुकेशन एंड डेवलपमेंट सोसायटी के फाउंडर राजेश गुप्ता बताते हैं कि पहले यहां अपनी जमीन पर फलीय पौधे लगाने के लिए किसान तैयार नहीं होते थे। उन्हें तैयार कर प्रत्येक किसान के एक-एक एकड़ में खेती शुरू कराई गई। उन्हें तकनीकी जानकारी दी गई।

खाद व पौधे दिए गए। अब किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने लगी है। उद्यानिकी विभाग के अधिकारी आरएस तोमर बताते हैं कि जिला निचले घाट, ऊपरी घाट व पाट क्षेत्र के हिसाब से बंटा हुआ है। तीनों के क्लाइमेट भी अलग-अलग हैं। ऊपरी क्षेत्र व पाट क्षेत्र में सबसे ज्यादा फलों की खेती होती है। यह फलों के लिए सबसे अच्छी है।

मनाली में सेब तोड़ाई का काम करते थे आदिवासी, अब यहीं उगा रहे

मनोरा ब्लॉक के सोनक्यारी गांव में 41 किसानों ने अपने एक-एक एकड़ में नाशपाती व आम की खेती कर रखी है। इन्हें नाबार्ड ने पौधे लाकर दिए और तकनीकी व फलीय पौधों की जानकारी देने में मदद की। एक साल में ही इनकी नाशपाती व आम के बगीचे विकसित हो गए और अब फल भी आने लगे हैं।

गांव के सभी किसान आदिवासी व पहाड़ी कोरवा हैं। मनोरा के सोनक्यारी में आम व नाशपाती की खेती करने वाले किसान दशरम बताते हैं कि पहले वे ईब नदी के किनारे की अपनी जमीन पर रामतिल की खेती करते थे। सालभर में 7-8 हजार रुपए की आवक होती थी। अब फल के पौधे लगाने के बाद साल में 50 से 60 हजार रुपए तक कमाते हैं।

युवा किसान रामजी बरवाह बताते हैं कि वे पहले हिमाचल में सेब के बागान में काम करते थे। हिमाचल के मनाली क्षेत्र के गांवों में सेब की तोड़ाई व दूसरे काम करते थे। अब पता चला कि जशपुर का वातावरण भी सेब के पौधों के लिए अनुकूल है। ऐसे में वे भी अब सेब लगाने की दिशा में काम करेंगे।

ज्यादा से ज्यादा किस्म के फल उगाने स्टडी अभी भी जारी है “जशपुर जिले की आबो हवा फलों के लिए बहुत अच्छी है। इसे लेकर हमारी स्टडी अभी भी जारी है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा किस्म के फलों का उत्पादन जशपुर में लिया जा सके। इससे आदिवासी किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकेगी। फिलहाल सेब एक्सपेरिमेंटल स्टेज पर है। इसके अलावा लीची, नाशपाती, काजू, स्ट्राबेरी पर भी हम काम कर रहे हैं। चाय को लेकर भी हमारा प्रयास जारी है।” – डॉ. रवि मित्तल, कलेक्टर, जशपुर

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