Acn18.com/छत्तीसगढ़ में 1960 के बाद से मानसून की बारिश घट गई है। पहले जून से सितंबर तक औसत 1250 मिमी बारिश होती थी। अब औसत 1142 मिमी के आसपास रह गई है। यही नहीं, मानसून के आने और जाने का समय भी पीछे खिसक गया है। पहले औसत 10 जून के आसपास मानसून छत्तीसगढ़ पहुंचता था। अब यह बढ़कर 12 जून हो गया है। मानसून देर से आने के साथ-साथ देर से लौट भी रहा है।
दरअसल मौसम में यह बदलाव क्लाइमेट चेंज की वजह से है। इस साल भी मानसून के लगभग 5 दिन की देरी से छत्तीसगढ़ आने की संभावना है। छत्तीसगढ़ में मानसून के ट्रेंड तथा 100 साल के डेटा पर रिसर्च से यह बात सामने आई कि प्रदेश में साल दर साल बारिश की मात्रा कम हुई है। इन आंकड़ों के आधार पर जब जून से सितंबर तक की औसत बारिश निकाली गई तो यह 1142 मिमी के आसपास पहुंची। पहले औसत साढ़े बारह सौ मिमी बारिश होती है। बारिश की मात्रा घटने के पीछे की वजहें तलाशी गईं।
पता चला कि पिछले कई वर्षों से मानसून लगातार सामान्य तारीख के बाद आ रहा है।30 सालों के डेटा के आधार पर छत्तीसगढ़ में मानसून आने की सामान्य तारीख 10 जून तक की गई थी। पिछले करीब 25-30 साल से इसी सामान्य तारीख को आधार मानकर मानसून के आने का पूर्वानुमान जारी किया जाता रहा है। आंकड़ों का अध्ययन किया गया तब पता चला कि मानसून अब सामान्य तौर पर 12 जून के बाद ही आ रहा है। फिर एक प्रस्ताव बनाकर भारत मौसम विज्ञान विभाग को भेजा गया।
छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे मध्य भारत में मानसून आने की सामान्य तारीख को लेकर नई डेट जारी करने का प्रस्ताव दिया गया। मौसम विभाग ने इसे स्वीकार किया और अब छत्तीसगढ़ में मानसून पहुंचने की सामान्य तारीख 13 जून तय की गई है। 16 जून रायपुर और 21 जून को उत्तरी छत्तीसगढ़ तक मानसून पहुंचने की सामान्य तारीख तय की गई है। इसी तरह मानसून की विदाई भी छत्तीसगढ़ में पहले 15 अक्टूबर तक होती थी। क्लाइमेट चेंज की वजह से मानसून प्रदेश से 25 अक्टूबर के आसपास विदा हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में आबादी 1950 की तुलना में तीन गुना बढ़ी, मौसम पर पड़ा इसका सीधा प्रभाव
पिछले छह-सात दशक में पूरे छत्तीसगढ़ में जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ी है। 1950 में छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 75 लाख के आसपास थी। आज यह लगभग तीन गुना बढ़ गई है। इस दौरान प्रदेश में ढांचागत निर्माण भी काफी हुए हैं। शहरों और गांव-गांव में पक्की सड़कें बनी हैं। नेशनल और स्टेट हाईवे बने हैं। औद्योगिकीकरण हुआ है। माइनिंग्स में बड़े काम हुए हैं। इन सब वजहों से कहीं ना कहीं पर्यावरण और पेड़-पौधों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव पड़ा है। कार्बन उत्सर्जित करने वाले वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। प्रदेश में तकरीबन 40 लाख वाहन हैं। प्राकृतिक और कृत्रिम जलाशय तथा जलस्रोत कम हुए या सूख गए हैं। जमीन, मिट्टी और हवा तीनों में प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है। क्लाइमेट चेंज में इन सभी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
ऐसे संभल सकते हैं हालात
वैश्विक स्तर पर इस क्लाइमेट चेंज के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए प्रयास हो रहे हैं। केंद्र भी इस मुद्दे को लेकर लचीली है। कई एेसे निर्णय हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर भले ही पर्यावरण से संबद्ध न दिखे, लेकिन बाद में उसके पाजिटिव रिजल्ट मिलेंगे। इलेक्ट्रिक वेहिकल को बढ़ावा देना। प्राइवेट ही नहीं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में भी ईवी को शामिल करने का निर्णय लिया जाना।
चौदहवें, पंद्रहवें और सोलहवें वित्त आयोग में प्लानिंग पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए की जा रही है। व्यक्तिगत तौर पर भी लोगों को खुद से प्रयास करने होंगे। जल संरक्षण के लिए रैन वाटर हार्वेस्टिंग, घरों के आसपास ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे तथा प्रदूषणकारक तत्वों का उपयोग कम से कम या फिर लगभग नगण्य हो।
इस साल बारिश हो सकती है 96 प्रतिशत के करीब, इससे खेती-किसानी में फायदा
छत्तीसगढ़ में इस साल 96 प्रतिशत के आसपास बारिश होने का अनुमान है। राज्य में जून से सितंबर तक औसत 1142.4 मिमी बारिश होती है। मानसून भले ही जून में किसी भी तारीख को पहुंचे, लेकिन इस महीने वाली होने वाली पूरी बारिश मानसून अवधि की मानी जाती है। पूर्वानुमान के आसपास बारिश हुई तो इस साल 1 जून से 30 सितंबर तक प्रदेश में 1096 मिमी के आसपास पानी बरस सकता है। इस पूर्वानुमान में चार प्रतिशत का मॉडल एरर भी माना जाता है। यानी बारिश कम हुई तो यह 92 फीसदी तक जा सकती है और ज्यादा हुई तो 100 प्रतिशत तक पहुंच सकती है।