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महंगाई में आटा गीला:छत्तीसगढ़ में दिखा रूस-यूक्रेन युद्ध का असर, आटा दो माह में पांच रुपए किलो हुआ महंगा

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acn18.com रायपुर /रायपुर में अक्टूबर में 1 किलो का ब्रांडेड आटे का पैकेट 34 से 37 रुपए किलो के बीच मिल रहा था, लेकिन सिर्फ दो माह में यही पैकेट 38 से 42 रुपए किलो तक जा पहुंचे हैं। मोहल्ले की दुकानों में बिकने वाला सामान्य आटा भी 33 से 35 रुपए किलो तक पहुंच गया है। आटे के महंगे होने के पीछे बड़ी वजह रूस और यूक्रेन का युद्ध माना जा रहा है, क्योंकि वहां से गेहूं आयात नहीं हो रहा है। इसके अलावा बाकी वजहें स्थानीय हैं, लेकिन उनसे होने वाली मूल्यवृद्धि मामूली ही रहती है।

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आटे के दाम इसलिए भी आसमान छू रहे हैं क्योंकि इसके लिए एमपी से खरीदा जाने वाला गेहूं व्यापारियों को महंगा मिल रहा है। रायपुर के कारोबारियों ने भास्कर को बताया कि मध्यप्रदेश के खुरई-सागर बेल्ट (सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक क्षेत्र) के मिलर्स बीते वर्ष आटे के लिए जो गेहूं 2000 रुपए से 2200 रुपए प्रति क्विंटल तक खरीद रहे थे, वे आज 2500 से 2800 रुपए प्रति क्विंटल तक खरीदने पर मजबूर हैं, क्योंकि गेहूं की शार्टेज है। भास्कर की पड़ताल में एक और वजह सामने आई कि जिन किसानों ने गेहूं के बीज के रूप में काफी स्टाॅक रखा था।

इस वक्त कमी के कारण वे इसी बीज को गेहूं के रूप में सीधे मिलर्स को बेच रहे हैं
इससे उन्हें भारी मुनाफा हो रहा है। इसके अलावा, किसानों ने इस साल सोसाइटियों में बीज नहीं बेचा, क्योंकि इससे घाटा हो रहा था। अगर वे सोसाइटियों में बेचते तो उन्हें सरकारी रेट यानी 3400 रुपए प्रति क्विंटल मिलता। अनाज के रूप में बेचने पर इन्हें 5 हजार रुपए क्विंटल तक मिल रहे हैं। इससे बीज संकट में आ गया।

रिसदा के किसान राघवेंद्र चंदेल का कहना है कि राज्य में गेहूं की खरीदी समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर नहीं होती, इसलिए किसान इसे खुले बाजार में बेचते हैं। यह पहली बार है जब बीज संकट हुआ है। अभी सप्लाई शुरू हुई है लेकिन रेट पर जो असर पड़ना था, वह हो चुका है। इन कारणों से आटा महंगा हो रहा है।

क्यों -युद्ध, देश का मौसम और जमाखोरी

  1. रूस दुनिया में सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस से गेहूं आयात नहीं हो पा रहा है। आयातित गेहूं की कमी की वजह से देश में इसकी शार्टेज होने लगी है। इसलिए गेहूं और साथ-साथ आटा महंगा हो रहा है।
  2. पिछले साल देश के कई हिस्सों में अधिक बारिश हुई। वहां इससे गेहूं की फसल कमजोर पड़ी। इसके विपरीत, कई गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में तापमान 3-4 डिग्री अधिक हो गया, जिससे उत्पादन में कमी आई। यह भी शार्टेज का स्थानीय कारण है।
  3. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होते ही गेहूं की शार्टेज की आशंका से कुछ बड़े कारोबारियों ने स्टाॅक कर लिया। उद्देश्य मुनाफा कमाना था, लेकिन केंद्र सरकार ने ऐन वक्त पर निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इस वजह से स्टाक किया गेहूं गोदामों में ही है।

(एक्सपर्ट- गजेंद्र चंद्राकर, वैज्ञानिक, आईजीकेवी। अजय अग्रवाल, वैज्ञानिक, गेहूं अनुसंधान)

लगातार महंगा होता आटा
अक्टूबर 2022 34 से 37 रुपए किलो
दिसंबर 2022 38 से 42 रुपए किलो
अभी चिल्हर में 33 से 35 रुपए तक

कोई बीज ले न जाए, इसलिए अफसरों को भेजा
भास्कर टीम तेलीबांधा स्थित राज्य बीज निगम के दफ्तर पहुंची, तो वहां गेहूं के बीज को लेकर चौंकाने वाली जानकारी मिली। दरअसल छत्तीसगढ़ ने कमी पूरी करने के लिए उत्तराखंड से 13 ट्रक गेहूं के बीज खरीदे हैं। वहां मांग इतनी ज्यादा है कि खरीदी और पेमेंट के बाद भी निगम को आशंका थी कि बीज कोई और राज्य ले जाएगा। इस वजह से यहां अफसरों को भेजा गया, ताकि वे बीज लेकर ही आएं।
उत्तराखंड से एक अफसर बीज के 13 ट्रक लेकर आए। यह कवायद इसलिए कि गई ताकि किसानों को बोआई में बीज का संकट न हो।

प्रदेश में गेहूं के बीज का संकट है। इसे देखते हुए निगम लगातार नेशनल सीड कॉर्पोरेशन को डिमांड भेज रहा है। कई राज्यों से बीज खरीदी पर बातचीत कर रहे हैं। अभी नहीं बता सकते कि गेहूं के बीज का संकट कब तक रहेगा। -माथेश्वरन वी, एमडी-बीज निगम

गेहूं का बीज जरूरत से आधा भी नहीं बांट पाए- छत्तीसगढ़ में गेहूं के बीज की कमी न हो, इसलिए बीज निगम ने उत्तराखंड से गेहूं के 6740 क्विंटल बीज (13 ट्रक) खरीदे। गेहूं के चालू सीजन में सवा लाख क्विंटल बीज की मांग थी। हालांकि अब तक 58,673 क्विंटल बीज ही बांटे गए हैं। हालांकि बीज भी गेहूं ही है। अंतर यह है कि वैज्ञानिक जिस गेहूं को सर्टिफाई (प्रमाणित) करते हैं, वह बीज के रूप में काम आता है।

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