इस सप्ताह बुधवार, 7 दिसंबर को मार्गशीर्ष (अगहन) महीने की पूर्णिमा है। इस दिन ये महीना खत्म होगा। अगहन पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक श्रीमद् भगवद् पुराण में बताया गया है कि दत्तात्रेय भगवान विष्णु के अवतार हैं। उनका जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर प्रदोष काल में हुआ था। प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के आसपास का समय। अनुसुइया और अत्रि मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
अत्रि मुनि के घर पुत्र रूप में आने से विष्णु जी दत्त और अत्रि पुत्र होने से आत्रेय कहलाए। दत्त और आत्रेय के संयोग से उनका नाम दत्तात्रेय पड़ा। इनकी माता अनुसुइया सती शिरोमणि हैं और वे अपनी पतिव्रत धर्म की वजह से संसार में प्रसिद्ध हैं।
ये है दत्तात्रेय भगवान की कथा
भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पत्नियों सरस्वति, लक्ष्मी और सती माता को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत गर्व था। उस समय नारद मुनि ने तीनों देवियों को अनुसुइया के बारे में बताया और कहा कि अनुसुइया के सामने आपका सतीत्व बहुत कम है।
तीनों देवियों ने नारद मुनि की बात सुनकर अपने-अपने पतियों से कहा कि वे अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की परिक्षा लें।
तीनो देवियों के जिद की वजह से ब्रह्मा, विष्णु और महेश साधुवेश में अनुसुइया की परीक्षा लेने पहुंचे। तीनों साधुओं ने अनुसुइया से निर्वस्त्र होकर भिक्षा देने के लिए कहा। सती अनुसुइया ने अपने तप बल से तीनों साधुओं को छ:-छ: माह के बच्चा बना दिया और फिर उन्हें स्तनपान कराया और अपने पास ही रख लिया।
जब बहुत समय तक तीनों देव देवियों के पास नही पंहुचे, तब तीनों देवियां अनुसुइया के पास पहुंची और उनसे प्रार्थना की कि तीनों देवों फिर से उनका स्वरूप लौटा दें। अनुसुइया ने तीनों बालकों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप लौटा दिया। तीनों देवताओं ने अनुसुइया से प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वर दिया।
बाद में अनुसुइया के गर्भ से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, शिव जी के अंश से दुर्वासा और विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।