acn18.com दिल्ली /दिल्ली एम्स में इस साल चीन में फैले एम निमोनिया के 7 मामले सामने आए है। यह मामले अप्रैल से सितंबर महीने के बीच सामने आए है। एम्स ने जब इससे जुड़ी रिसर्च की तो इसी बीमारी से जुड़े बैक्टीरिया माइक्रोप्लाज्मा निमोनिया का पता चला है।
लैंसेट माइक्रो में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मामले का पता संक्रमण के शुरुआती चरण में किए गए पीसीआर जांच के माध्यम से लगाया गया था और छह मामलों का पता आईजीएम एलिसा जांच के माध्यम से लगाया गया था जो कि बाद के चरणों में भी किया जा सकता है।
क्या है वाॅकिंग निमोनिया
रिपोर्ट के अनुसार, पीसीआर और आईजीएम एलिसा टेस्ट की पाॅजिटिविटी रेट 3 और 16% थी। बता दें कि दिल्ली एम्स माइकोप्लाज्मा निमोनिया के प्रसार की निगरानी के लिए एक वैश्विक संघ का हिस्सा है। दिल्ली एम्स में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख और कंसोर्टियम के सदस्य डॉ राम चौधरी ने टीओआई को बताया कि एम निमोनिया को 15-20% कम्यूनिटी निमोनिया का कारण माना जाता है। डॉ. चौधरी ने बताया कि इस वायरस के कारण होने वाला निमोनिया आमतौर पर हल्का होता है, इसलिए इसे श्वॉकिंग निमोनिया भी कहा जाता है। लेकिन इसके मामले गंभीर भी हो सकते हैं।
निगरानी बढ़ाने पर जोर
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को माइकोप्लाज्मा निमोनिया का पता लगाने के लिए निगरानी बढ़ाने की जरूरत है। फिलहाल दिल्ली के एम्स और कुछ अन्य केंद्रों पर ही निगरानी की जा रही है। लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन देशों में एम निमोनिया फिर से उभरा है, वहां मामलों की संख्या महामारी से पहले की संख्या के बराबर है।
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