Acn18.com/बलौदाबाजार में भी कई नाले और तालाब बारिश के दिनों में लबालब हैं। ऐसे में लोगों को आने-जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा ही हाल ग्राम पंचायत छेरकाडीह का भी है, जहां बच्चे आंगनबाड़ी और स्कूल जाने के लिए लकड़ी की अस्थायी जर्जर पुलिया का सहारा ले रहे हैं। लकड़ी की पुलिया पर जान जोखिम में डालकर छोटे-छोटे बच्चे नाला पार करते हैं, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
ग्राम पंचायत छेरकाडीह (स) पलारी ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर दूर स्थित है। इसकी आबादी 1300 और वार्ड 15 हैं। यहां के वार्ड 1 और 2, जिसे भाटापारा मोहल्ले के नाम से जाना जाता, 40 परिवारों के 300 लोग पिछले 40 सालों से निवास कर रहे हैं। इन लोगों को बरसात के मौसम में अपने ही गांव में आने-जाने के लिए नाले पर बने अस्थायी लकड़ी की पुलिया का सहारा लेना पड़ता है। इसके बाद ही यहां के लोग और बच्चे स्कूल, आंगनबाड़ी, पंचायत की राशन दुकान या अन्य जगहों पर जा पाते हैं।
सरकारी दावे फेल
वैसे तो राज्य सरकार गांव-गांव में स्कूल और सड़क निर्माण करने का दावा करती है, ताकि ग्रामीण इलाकों को भी जिला मुख्यालय से जोड़कर उनका विकास किया जा सके। साथ ही बच्चों को भी पढ़ने के लिए दूर नहीं जाना पड़े, लेकिन छेरकाडीह (स) के हालात सरकारी दावों की पोल खोलने के लिए काफी हैं।
गांव का वार्ड नंबर- 1 और 2 यानी भाटापारा मोहल्ला गांव के नाले के ऊपर ही बसा हुआ है। इन दोनों वार्डों में सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। यहां न आंगनबाड़ी केंद्र है, न स्कूल और न ही राशन की दुकान। इस दोनों वार्ड के 10 बच्चे आंगनबाड़ी केन्द्र, 25 बच्चे प्राथमिक स्कूल, 5 बच्चे मिडिल और 15 बच्चे हाई स्कूल जाते हैं। साथ ही कई युवा कॉलेज की पढ़ाई के लिए पलारी भी जाते हैं। इन सभी को हर दिन पानी से लबालब नाले से होकर गुजरना पड़ता है।
ग्रामीणों ने बच्चों को बरसात में नाला पार करने के लिए इसके ऊपर 4 फीट चौड़ा और 20 फीट लंबा अस्थायी लकड़ी का पुलिया बना दिया है। इस पर चढ़कर बच्चे इस पार से उस पार आना-जाना करते हैं, लेकिन हादसों की आशंका हर वक्त बनी हुई है। क्योंकि जब नाला उफान पर रहता है, तो लकड़ी की पुलिया काम नहीं आती। लोगों ने आधे हिस्से पर ही लकड़ी की पुलिया बनाई है, जो कम पानी रहने पर ही काम आती है। जब नाला उफान पर रहता है, तो लोग अपने बच्चों को कंधे पर बिठाकर नाला पार कराते हैं, तभी वे स्कूल या आंगनबाड़ी जा पाते हैं।
गाय-बैल को भी रोज नाला पार कर जाना पड़ता है गौठान
भाटापारा मोहल्ले में गौठान बनाया गया है और गांव का मैदान भी वहीं है। अपने मवेशियों को चरवाहे रोज नाला पार कराकर गौठान लाते हैं, लेकिन जब नाला उफान पर रहता है, तो पशुपालक घर पर ही उन्हें बांधकर रखने को मजबूर हो जाते हैं।
बारिश में बीमार पड़े, तो नहीं पहुंच पाती एंबुलेंस
भाटापारा मोहल्ले के रहने वाले बाबूलाल कमल और लखन साहू ने बताया कि बारिश के दिनों में अगर कोई बीमार पड़ जाए, तो उसका अस्पताल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। नाले में पानी भरा होने के कारण 108 संजीवनी एक्सप्रेस घर तक नहीं पहुंच पाती। वहीं ग्रामीण रामकुमार और कैलाश ने बताया कि बीमार को उठाकर लकड़ी की पुलिया पार कराना भी मुश्किल होता है। कम पानी हो, तो किसी तरह इसे पार कराया भी जा सकता है, लेकिन नाला उफान पर होने पर आने-जाने का कोई साधन नहीं होता।
ग्रामीण बालाराम साहू, तुलश निषाद और राधा बाई ने कहा कि वे लोग पहले गांव की बस्ती में ही रहते थे। गांव भी बहुत छोटा था, लेकिन धीरे-धीरे जब परिवार बड़ा हुआ, तो लोगों ने भाटापारा मोहल्ले में बसना शुरू कर दिया। यहां देखते ही देखते दो वार्ड बन गया और 40 परिवार करीब 300 लोग निवास करने लगे। लोगों ने कहा कि हमारी एक ही मांग है कि नाला पर पक्का पुल बनाया जाए, क्योंकि हम सबका काम नाले के उस पार जाकर ही होता है। हमें बरसात में बहुत नारकीय जीवन जीना पड़ता है।
लोगों ने बताया कि खेती-बाड़ी, राशन, बच्चों का स्कूल, आंगनबाड़ी, अस्पताल सब कुछ उस पार ही है, जिसके लिए हम रोज चिंतित रहते हैं। लोगों ने कहा कि मुक्ति धाम के लिए भी रास्ता नहीं है। वहीं गांव की गलियों में भी कीचड़ ही कीचड़ भरा हुआ है।
प्रशासन को जानकारी ही नहीं
इधर इस बारे में पलारी जनपद पंचायत सीईओ रोहित नायक ने कहा कि उन्हें गांववालों की परेशानी की जानकारी ही नहीं है। उन्होंने पूरे मामले में अपनी अनभिज्ञता जताई। उन्होंने कहा कि मैं पता करवाऊंगा, इसके बाद जो भी समस्या होगी, उसे दूर करने की कोशिश की जाएगी।