मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति को भेंट की रुद्र शिव प्रतिमा की:जानिए इस अलौकिक मूर्ति की क्या है खासियत

Acn18.com/राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ताला गांव की रुद्र शिव की प्रतिमा की प्रतिकृति भेंट की है। 1500 साल पुरानी ये प्रतिमा बेहद खास है जिसने राज्य की पहचान को विशेष बना दिया है, ये पूरे विश्व में एकलौती रुद्रशिव की प्रतिमा है। गुरूवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने रायपुर के महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय का अवलोकन किया। यहां राष्ट्पति छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक वैभव से रूबरू हुईं और यहां की ऐतिहासिक पृष्टभूमि से जुड़ी पुरातन और संग्रहणीय वस्तुओं का अवलोकन किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ और अन्य क्षेत्रों से मिले ऐतिहासिक पत्थर के औजारों, प्राचीन मूर्तियों, अभिलेखों, ताम्रपत्रों और सिक्कों का अवलोकन किया और संग्रहालय में रखी गई आदिवासी संस्कृति और आधुनिक शिल्प से जुड़ी जानकारी ली।

इस मौके पर राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मौजूद रहे। जहां मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध रूद्र शिव प्रतिमा की प्रतिकृती राष्ट्रपति को भेंट की। रुद्रशिव की प्रतिमा छत्तीसगढ़ की विशेष पहचानों में से एक है और इसकी भूमिका अहम है। बिलासपुर जिले के मल्हार में यह विशाल प्रतिमा लगभग 9 फीट ऊंची तथा 5 टन वजनी जिसकी संरचना विलक्षण है।भगवान शिव को पहली बार बिना त्रिशूल, नंदी, कैलाश को प्रतिमा में दर्शाया नहीं गया है।रुद्रशिव की प्रतिमा में भगवान शिव का शारीरिक बनावट अलग-अलग पशु-पक्षियों की बनावट दिखाई देती है।
1988 को ताला गांव से मिली थी प्रतिमा
11 जनवरी 1988 को ताला गांव स्थित पांचवी, छठवीं शताब्दी के देवरानी-जेठानी मंदिर से मलबा सफाई के दौरान दुर्लभ प्रतिमा मिली। उस समय समझ पाना मुश्किल था कि वस्तुत: यह प्रतिमा किस देव की है। 9 फुट ऊंची, 5 टन वजनी इस प्रतिमा के अंगों में जीव-जंतुओं की आकृति ने पुरातत्वविदों को शोध के लिए आकृष्ट किया। रुद्र शिव प्रतिमा के चलते ताला गांव अचानक सुर्खियों में आ गया।
लाल बलुआ पत्थर से बनी ये मूर्ति दो मीटर से भी ज्यादा ऊंची है। मूर्तिकला का ऐसा अनूठा नमूना पुरातत्व के इतिहास में आज तक कहीं भी नहीं मिल पाया है। इस मूर्ति में बड़ी ही कलात्मकता से उभारे गए रुद्र अथवा उग्र भावों के कारण यह मूर्ति मुझे यक्ष की आकृति जैसे ज्यादा लग रही थी। शायद इसी वजह से इस मूर्ति को रुद्रशिव कहा जाता है। इस मूर्ति को शिवजी का स्वरूप मानने का एक और संभावित कारण यह भी हो सकता है कि, शिवजी को पशुपतिनाथ अर्थात पशुओं के देवता भी कहा जाता है और इस मूर्ति में शारीरिक अंगों के रूप में अलग-अलग पशुओं की आकृतियों से शिवजी की आकृति उभरकर सामने आती है।
क्या है मूर्ति की खासियत
– इस मूर्ति का मुकुट साँप का बना हुआ है, जो बिलकुल पगड़ी के समान लगता है।
– नाक के स्थान पर गिरगिट बना हुआ है, जिसकी पूंछ बिच्छू के जैसी है।
– उसकी भौहें मेंढक के पावों जैसी हैं।
– नेत्रगोलक अंडों के समान हैं।
कान मयूर के रूप में बनाए गए हैं।
– ठुड्डी के स्थान पर केकड़ा बना हुआ है।
– मूँछों के स्थान पर मछलियाँ बनी हुई हैं।
– कंधों की जगह मगरमच्छ का मुंह बना हुआ है।
– बाँहें हाथी की सूंड की तरह हैं।
उँगलियाँ साँप के मुख जैसी हैं – कुछ लोगों का कहना है कि वह पंचमुखी नाग है।
– वक्षस्थलों पर मनुष्यों की आकृतियाँ बनी हुई हैं – शायद वह जुड़वा हो।
– पेट के स्थान पर एक गोलाकार मनुष्य का मुख बना हुआ है – शायद वह कुंभ को दर्शाता हो।
– जांघों पर विद्याधर की आकृतियाँ बनी हुई हैं – यह मत्स्यकन्या हो सकती हैं – या हो सकता है कि वह तुला को भी दर्शाती हों।
– जांघों की बाजुओं पर गंधर्व की आकृतियाँ बनी हुई हैं – शायद यह भी मत्स्यकन्या हो सकती है।
घुटनों के स्थान पर सिंह का मुख बना हुआ है – जो शायद सिंह राशि को दर्शाता हो।
– पाँव हाथी के जैसे हैं।
– दोनों कंधों पर रक्षक के रूप में दो साँप बने हुए हैं।
– मूर्ति के बाईं तरफ भी एक साँप बना हुआ है।