acn18.com कोरबा/ लोकतंत्र की मजबूती के लिए कई प्रकार से कोशिश की जा रही है। इसके ठीक विपरीत कई प्रकार के नियम ऐसे हैं जो विरोधाभासी प्रतीत होते हैं। जैसे कि जेल में रहते हुए कोई व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है लेकिन सजा पाने और विचाराधीन स्थिति में बंदी वोट नहीं डाल सकते। कोरबा जिला जेल के 255 बन्दी को लोकसभा चुनाव में वोट डालने की पात्रता नही होगी।
भारत देश के कानून में पहले 21 वर्ष की आयु पूरी करने पर व्यक्ति को मताधिकार की पात्रता होती थी। कई करण से यह नियम बदल गया है और अब 18 वर्ष की आयु पूरी करने के साथ लोग भारत के मतदाता हो गए हैं। मताधिकार के लिए यही एक शर्त है जबकि गंभीर श्रेणी के अपराध में लिप्त होने और मानसिक रूप से विकलांग होने के कारण व्यक्तियों को मतदान की पात्रता नहीं होती। इतना ही नहीं किसी आपराधिक प्रकरण में अदालत से सजा प्राप्त होने के साथ-साथ ऐसे किसी मामले में विचाराधीन बंदी को भी मतदान करने का अवसर नहीं मिलता।जिला जेलर ने बताया कि जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के प्रावधान के अंतर्गत इस तरह की व्यवस्था दी गई है।व्यवस्थागत कारण से जिला जेल के 255 महिला पुरुष बंदियों को लोकसभा चुनाव मे मतदान से वंचित होना पड़ेगा।
यह बात अलग है कि दर्जनों मामले में अपराधी नामजड़ होने और जेल में निरुद्ध होकर भी विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव लड़ने की तस्वीर बीते वर्षों में देश में देखने को मिली है। कुख्यात गैंगस्टर से लेमर दस्यु गिरोह के अगुवा भी इस मामले में आकर्षण का केंद्र रहे हैं जिन्होंने रसूक के दम पर हर किसी को न केवल प्रभावित किया बल्कि चुनाव जीतने के रिकॉर्ड भी बनाएं। असमानता ऐसी ही चीजों में साफ नजर आती है जिससे स्पष्ट होता है कि जेल की चार दिवारी में बंद होने के साथ सामान्य श्रेणी के बंदियों का मताधिकार समाप्त हो जाता है लेकिन अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह नियम के दावपेक्ष के आधार पर जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ सकते हैं। देखना होगा कि इस प्रकार के पैरामीटर कब तक समाप्त होते हैं