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‘पैरों में छाले-फफोले, फिर भी दौड़ना पड़ता है’:CG के लेफ्टिनेंट बोले- फिल्मों में दिखाई जाने वाली आर्मी ट्रेनिंग से हकीकत बहुत अलग

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Acn18.com/इंडियन आर्मी की ट्रेनिंग कितनी कठिन होती है। इसके बारे में जानकारी दी है, छत्तीसगढ़ के रहने वाले लेफ्टिनेंट तेजस्वी ठाकुर ने। उन्होंने बताया कि ट्रेनिंग के दौरान पैरों में छाले पड़ जाएं, फफोले पड़ जाएं, उससे फर्क नहीं पड़ता। आपको ट्रेनिंग पूरी करने के लिए फिर भी दौड़ाना पड़ता है। ये एक कठिन समय होता है।

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बातचीत के दौरान तेजस्वी ठाकुर ने बताया कि फिल्मों में दिखाई जाने वाली आर्मी ट्रेनिंग से बिल्कुल अलग ट्रेनिंग हमारी होती है। या ऐसा कहें कि सच्चाई एकदम अलग ही है। उन्होंने अपनी ट्रेनिंग के दौरान के सबसे कठिन मूवमेंट्स शेयर किए। कहा-ट्रेनिंग के अंतिम दौर में 60 किलोमीटर ऑन ग्राउंड रनिंग करना होता है। हमने जब ये टास्क किया, उस रात पानी गिरा हुआ था। हम रोड को छोड़कर जंगलों से क्रॉस एंट्री भी लेते थे।

कोई चल भी नहीं पा रहा है, लेकिन उसे दौड़ना पड़ता था। हमारे कपड़े भी हमें काटते थे। इन सभी हालातों के बावजूद हम टारगेट तक पहुंचे। 20 किलो वजन के साथ साढ़े 12 घंटे के भीतर हमने 60 किलोमीटर की दौड़ पूरी की। इसके अलावा बहुत से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिसके बाद आपकी ट्रेनिंग पूरी होती है और आप जंग के लिए तैयार होते हैं।

बच्चों को किया मोटिवेट

लेफ्टिनेंट तेजस्वी ठाकुर महासमुंद के रहने वाले हैं। उनकी स्कूलिंग भी वहीं से हुई है। तेजस्वी ने ग्रेजुएशन रायपुर के साइंस कॉलेज से किया है। तेजस्वी रायपुरा में स्थित छत्तीसगढ़ डिफेंस एकेडमी पहुंचे थे। यहां उन्होंने सेना में जाने की तैयारी कर रहे बच्चों को काफी कुछ बताया और मोटिवेट भी किया। तेजस्वी वर्तमान में भारत के नॉर्थ ईस्ट में पोस्टेड हैं। उनके पिता एक बिजनेसमैन हैं और माता हाउसवाइफ हैं। एक छोटी बहन जो मास्टर्स कर रही है।

ऐसे कर सकते हैं SSB क्लीयर

तेजस्वी ने बताया कि उनके घर में कोई भी आर्मी बैकग्राउंड का नहीं है। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनकी SSB की लिखित परीक्षा तो क्लियर होने लगी। मगर वो इंटरव्यू से बाहर हो जाते थे। आगे उन्होंने कहा कि “मैं बार बार चेक करता कि इंटरव्यू में क्या गलतियां हो रही है और उसको सुधार करता था। इंटरव्यू में आपसे आपके बारे में ही पूछा जाता है। कॉन्फिडेंस रहना है,चीजों को लेकर थोड़ी क्लियरटी रखनी है, फिर आप इंटरव्यू निकाल सकते हैं। मेरा भी SSB इसी तरह क्लियर हुआ।

मैं इसलिए आया फौज में..

मुझे जीवन में एडवेंचर पसंद है। आपको कठिन जीवन चाहिए तो फौज आपके लिए है। सुंदर जगह देखनी है चुनौतियों को पार करना है तो फौज ही बेहतर हो सकता है।

प्रेशर डालने वाले प्रश्न

इंटरव्यू में प्रेशर डालने वाले प्रश्न अधिक पूछे जाते हैं। यदि आप कहते हैं कि मुझे फुटबॉल खेलना पसंद है तो फिर वह आपसे कहेंगे कि उस पर आप नेशनल लेवल में क्यों नहीं खेले, क्या आप में काबिलियत नहीं है। तेजस्वी सिंह ने बताया कि उनके 12वीं के परीक्षा में 86 प्रतिशत अंक थे। लेकिन ग्रेजुएशन में केवल 60 परसेंट। जिससे इंटरव्यू में सवाल पूछा गया कि आखिर इतने परसेंट क्यों कम हुए।

शुरुआत में तो मैं इसे स्वीकार न करके तर्क देता था, लेकिन जब मैंने इसे स्वीकार किया और कहा कि मैं बहुत ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाया, इसलिए नंबर कम हो गए। स्पोर्ट्स में ज्यादा ध्यान दिया। इस तरह वे आपको बार-बार चेक करते हैं कि प्रेशर में आपका रिस्पॉन्ड बदलता है कि नहीं।

ऐसा रहता था शेड्यूल

आप लगभग साढ़े 4 बजे उठते हैं। 5 बजे से आपकी पीटी एक्सरसाइज या ड्रिल की क्लास होती है। साढ़े 7 बजे ब्रेकफास्ट के बाद इंडोर और आउटडोर दोनों क्लासेस होती थी। लंच के बाद गेम्स पीरियड और स्टडी पीरियड होते हैं। डिनर करने के बाद खुद के लिए थोड़ा समय मिलता है। फिर साढ़े 10 बजे लाइट ऑफ हो जाती थी।

आखिर क्यों आ गया मैं..

ट्रेनिंग के दौरान भागने का तो मन नहीं किया, लेकिन ये लगा कि “आखिर यहां क्यों आ गया मैं। क्योंकि आपको टाइट शेड्यूल में ढलने के लिए 2 महीने का समय लगता है। आप दिन में 7 से 8 घंटे एक्सरसाइज कर रहे हो, खाने और सोने के लिए बहुत कम समय मिलता है। मगर मेरे अंदर एक मोटिवेशन होता था कि आखिर इसी चीज में तो मैं आना चाहता था। हमें हर दिन खुद को पुश करना पड़ता था। इस बारे में मैंने जब सोचना बंद कर दिया तो मेरे लिए चीजें बेहतर हो गई।

स्पेशल फोर्स में एंट्री कैसे?

स्पेशल फोर्स में लेफ्टिनेंट रैंक के अधिकारी ही अलग से फॉर्म भर सकते हैं। उसकी ट्रेनिंग अलग होती है। एक रोचक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि स्पेशल फोर्स की परिवीक्षा अवधि के बाद कांच के ग्लास को तोड़कर दांतों से चबाया जाता है। वो चीज यहां नहीं होती है।

सैनिक की शहादत हमारे अपने भाई पर हमला

सैनिक की शहादत आम लोगों के लिए देश पर हमला होता है। मगर किसी सैनिक की शहादत हमारे अपने भाई पर हमला माना जाता है और हमारे अंदर दुख के साथ गुस्सा की फीलिंग आती है। इसलिए हमें ट्रेनिंग में यह सीखने को मिलता है कि यहां जितना पसीना बहेगा, बहने दो, आगे हमें खून नहीं बहाना पड़ेगा।

जो बच्चे तैयारी कर रहे है उनके लिए टिप्स?

यदि आप लिखित परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो मन लगाकर पढ़िए। बीते वर्षों के क्वेश्चन पेपर एनालिसिस करके पैटर्न समझिए। इंटरव्यू की तैयारी के लिए खुद को जानना बहुत जरूरी है। ऑफिसर लेवल में मेडिकली फिट होना जरूरी है, लेकिन फिजिकल के लिए बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं है।

पेरेंट्स के नजरिए से गर्ल्स के लिए आर्मी,इस बारें में क्या कहना चाहेंगे?

गर्ल्स के लिए बहुत सुनहरे अवसर हैं। फिलहाल कॉम्बैट में इनका रिक्रूटमेंट नहीं है, आर्टिलरी में वे शामिल हो रही हैं। जो कॉम्बैट सपोर्ट आर्म है। ज्यादातर गर्ल्स के लिए ऑर्डिनेंस सर्विसेस में अवसर हैं। ये सेफ है और जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

सोशल मीडिया से दूर रहें यंगस्टर्स

लेफ्टिनेंट तेजस्वी ने कहा की-यंगस्टर्स को सोशल मीडिया से दूरी बनाना चाहिए, जिससे वे और भी जरूरी काम कर सकते हैं। सोशल मीडिया आपका समय व्यर्थ करने की लत लगा देते हैं। छत्तीसगढ़ में डिफेंस की ट्रेनिंग कर रहे बच्चों को मोटिवेट करते हुए उन्होंने मैसेज दिया कि हर किसी को एक दो बार एसएसबी की परीक्षा जरूर देनी चाहिए। जिससे आपको पता चलेगा कि कॉम्पिटिशन का लेवल क्या है। आप खुद को बेहतर बनाने में लग जाएंगे। सभी युवाओं को शुभकामनाएं, जय हिंद।

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