बिलासपुर। हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के एक मामले में सजा के खिलाफ पेश अपील पर सुनवाई करते हुए आरोपी को दोषमुक्त कर दिया। अदालत ने पाया कि मामले में पीड़िता की उम्र को प्रमाणित करने के लिए पेश किए गए दाखिला-खारिज रिकॉर्ड को पुख्ता साक्ष्य के साथ साबित नहीं किया गया था। इसके साथ ही, पीड़िता ने कथित अपराध के दौरान किसी को इसकी जानकारी नहीं दी, जो कानूनी दृष्टि से अभियोजन के दावे को कमजोर करता है।
बस्तर निवासी पीड़िता ने शिकायत में आरोप लगाया था कि उसके पड़ोस में रहने वाले एक शादीशुदा व्यक्ति ने 2015 में उससे जबरन शारीरिक संबंध बनाए थे, और इस तरह के संबंध बाद में कई बार बने। परिवार को जानकारी देने के बाद पीड़िता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई, जिसके आधार पर आरोपी को निचली अदालत ने 20 वर्ष की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई में पाया कि पहली बार संबंध बनाने के वक्त पीड़िता की उम्र 12 वर्ष और अंतिम बार 16 वर्ष थी,
लेकिन इसके दौरान पीड़िता ने घटना की जानकारी किसी को नहीं दी। इसके अलावा, पीड़िता के नाबालिग होने के प्रमाण में दाखिल खारिज रजिस्टर को प्रस्तुत करने के बावजूद उसे कानूनी रूप से प्रमाणित नहीं किया गया। इस मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों में कमी को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषमुक्त कर दिया।