Acn18.com/केंद्र सरकार ने फ्रांस से 26 मरीन राफेल फाइटर जेट की खरीदी को मंजूरी दे दी है। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी (CCS) ने 9 अप्रैल को डील पर मुहर लगाई। भारत को 64 हजार करोड़ रुपए में 26 मरीन फाइटर मिलने हैं।
इसके बाद फ्रांस 22 सिंगल-सीटर और 4 ट्विन-सीटर जेट भारतीय नौसेना को सौंपेगा। इन्हें हिंद महासागर में चीन से मुकाबले के लिए INS विक्रांत पर तैनात किया जाएगा।
दोनों देशों के बीच 26 राफेल मरीन जेट की खरीद को लेकर कई महीनों से बातचीत चल रही थी। भारत नौसेना के लिए राफेल मरीन की डील उसी बेस प्राइज में करना चाहता था, जो 2016 में वायुसेना के लिए 36 विमान खरीदते समय रखी थी।
इस डील की जानकारी सबसे पहले PM मोदी की 2023 की फ्रांस यात्रा के दौरान सामने आई थी। इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने लेटर ऑफ रिक्वेस्ट जारी किया था, जिसे फ्रांस ने दिसंबर 2023 में स्वीकार किया। इससे पहले सितंबर 2016 में 59 हजार करोड़ रुपए की डील में भारत वायुसेना के लिए फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद चुका है।
पहले दौर की चर्चा जून 2024 में हुई थी
26 राफेल-एम फाइटर जेट खरीदने की डील पर पहले दौर की चर्चा जून 2024 में शुरू हुई थी। तब फ्रांस सरकार और दसॉ कंपनी के अधिकारियों ने रक्षा मंत्रालय की कॉन्ट्रैक्ट नेगोशिएशन कमेटी से चर्चा की थी। डील फाइनल होने पर फ्रांस राफेल-M जेट के साथ हथियार, सिमुलेटर, क्रू के लिए ट्रेनिंग और लॉजिस्टिक सपोर्ट मुहैया कराएगा।
इन हथियारों में अस्त्र एयर-टु-एयर मिसाइल, एयरक्राफ्ट कैरियर से ऑपरेट करने के लिए जेट में इंडियन स्पेसिफिक इन्हैंस्ड लैंडिंग इक्विपमेंट्स और जरूरी इक्विपमेंट्स शामिल किए हैं।
फ्रांस ने ट्रायल्स के दौरान इंडियन एयरक्राफ्ट कैरियर्स से राफेल जेट की लैंडिंग और टेक-ऑफ स्किल का प्रदर्शन किया है, लेकिन रियल टाइम ऑपरेशन के लिए कुछ और इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल करना होगा।
हिंद महासागर में होगी राफेल मरीन जेट की तैनाती
नेवी के लिए खरीदे जा रहे 22 सिंगल सीट राफेल-एम जेट और 4 डबल ट्रेनर सीट राफेल-एम जेट हिंद महासागर में चीन से मुकाबले के लिए INS विक्रांत पर तैनात किए जाएंगे। भारतीय नौसेना इन विमानों को आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में INS डेगा में अपने होम बेस के रूप में तैनात करेगी।
नौसेना के डबल इंजन वाले जेट आमतौर पर दुनियाभर की एयरफोर्स द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे विमानों की तुलना में ज्यादा महंगे होते हैं, क्योंकि समुद्र में इनके ऑपरेशन के लिए अतिरिक्त क्षमताओं की जरूरत होती है। इनमें अरेस्टिंग लैंडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले लैंडिंग गियर भी शामिल हैं।