Acn18.com/विधानसभा से पारित विधेयकों को राज्यपाल के पास लंबे समय तक रोके रखने को लेकर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रहा है। प्रदेश में 76 फीसदी आरक्षण वाले विधेयक को लेकर कांग्रेस ने मांग की है कि राज्यपाल अब और देरी न करें और विधेयक पर तुरंत हस्ताक्षर करें।
पार्टी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद लोगों को उम्मीद जगी है कि अब उनका हक उन्हें मिलेगा।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने सीधा आरोप लगाया कि बीजेपी की साजिश और दुर्भावना की वजह से ये विधेयक दो साल से राजभवन में अटका पड़ा है।
उन्होंने कहा, भाजपा नेताओं की वजह से ही अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और सामान्य वर्ग के गरीबों को मिलने वाला उनका हक आज तक लटका हुआ है।
भूपेश सरकार में पास हुआ था आरक्षण संशोधन विधेयक
साल 2022 में भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण बढ़ाने वाला जो संशोधन विधेयक पास किया था, उसमें एसटी वर्ग को 20% से बढ़ाकर 32%, एससी को 13%, ओबीसी को 27% और ईडब्ल्यूएस (गरीब सवर्ण) को 4% आरक्षण देने की बात है। लेकिन आज तक ये फाइल राजभवन में ही है।
कांग्रेस का सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इस बिल पर हस्ताक्षर करवाने के लिए राज्यपाल से कब मिलेंगे? बैज ने इस मामले में कहा, ‘राजभवन और बीजेपी सरकार दोनों अब हठधर्मिता छोड़ें और लोगों को उनका संवैधानिक हक दिलवाएं।’
कांग्रेस ने बीजेपी से इस मुद्दे पर साफ-साफ रुख बताने की भी मांग की है। पार्टी का कहना है कि ये आरक्षण सिर्फ किसी एक वर्ग का नहीं, बल्कि पूरे सर्वसमाज से जुड़ा मुद्दा है और अब इसे और लंबित रखना न्याय नहीं, अन्याय होगा।
छत्तीसगढ़ में 9 बिल अटके, कई सालों से फंसी फाइलें अब फिर चर्चा में
छत्तीसगढ़ में विधानसभा से पास हो चुके कई बिल आज भी मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। पिछले पांच कार्यकाल में कुल 9 विधेयक ऐसे हैं जो या तो राजभवन में अटके हैं या फिर राष्ट्रपति भवन में। इनमें कुछ बिल तो ऐसे हैं जिन पर काफी सियासी हंगामा भी हो चुका है।
सबसे पहले बात करें अजीत जोगी के वक्त के धर्मांतरण विरोधी कानून की, जिसे धर्म स्वातंत्र्य विधेयक कहा गया। इसके बाद रमन सिंह सरकार के समय रामविचार नेताम ने इसी से जुड़ा एक और विधेयक पेश किया था, जो अब तक राष्ट्रपति भवन में लंबित है।
फिर आई भूपेश बघेल सरकार, जिसने शिक्षा और नौकरियों में ओबीसी और एससी को ज्यादा आरक्षण देने वाला बिल पास किया। इसके अलावा केंद्र के कृषि कानूनों के जवाब में राज्य सरकार ने अपने हिसाब से तीन कानून बनाए, वो भी मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं।
सबसे ज्यादा चर्चा में दो बिल रहे
- आरक्षण संशोधन बिल, जिसमें ओबीसी, एसटी, एससी और EWS के लिए नए सिरे से आरक्षण तय किया गया है। जिसमें कुछ 76 फीसदी आरक्षण दिया गया था।
- कुलाधिपति संशोधन बिल, जिससे राज्यपाल के अधिकारों में कटौती की बात थी, खासकर यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्ति को लेकर।
राजभवन और कांग्रेस सरकार के बीच इसी को लेकर खूब तकरार भी हुई थी। आरक्षण वाला बिल तो पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके के समय से ही फंसा पड़ा है।
तमिलनाडु केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि राज्यपाल विधानसभा से पास हुए बिलों को अनिश्चितकाल तक नहीं रोक सकते। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को मंत्री परिषद की सलाह पर काम करना होता है, वो अपने मन से फैसला नहीं ले सकते। ‘वीटो’ जैसी कोई पावर उनके पास नहीं है। यानी अब राज्यपाल किसी बिल को फाइल में दबाकर नहीं रख सकते।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के विधेयकों पर फैसले को लेकर दिशा-निर्देश दिए हैं, तो उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ के राज्यपाल भी इन फाइलों पर जल्द फैसला लें।
या तो बिलों को विधानसभा को दोबारा विचार के लिए लौटाया जाएगा, या फिर सीधे मंजूरी दी जाएगी। अगर बिल वापस होते हैं, तो सरकार फिर से कुछ संशोधन कर उन्हें पास करवा सकती है।