acn18.com / उत्तराखंड में 18 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित द्रौपदी का डंडा-II की चोटी पर 41 पर्वतारोही हिमस्खलन की चपेट में में आ गए। इनमें से 10 की मौत हो गई।
सबसे पहले जानिए उत्तराखंड में हिमस्खलन की चपेट में कैसे आए 41 पर्वातारोही
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के 41 पर्वतारोही द्रौपदी का डंडा-II पहाड़ पर चढ़ने की ट्रेनिंग ले रहे थे। इनमें से 34 ट्रेनी और 7 इंस्ट्रक्टर थे।
सभी मंगलवार सुबह करीब 4 बजे 5670 मीटर यानी 18 हजार फीट से ज्यादा ऊंचे द्रौपदी पर्वत की चोटी पर पहुंचे थे। वापस लौटते समय सुबह करीब 8 बजकर 45 मिनट पर एक हिमस्खलन की चपेट में आ गए।
इनमें से 10 पर्वतारोहियों के शव बरामद हो चुके हैं और अब तक 14 घायलों को बचाया गया है, जबकि 27 लोग अब भी लापता हैं। घटनास्थल केदारनाथ से करीब 340 किलोमीटर दूर स्थित है। हाल ही में केदारनाथ मंदिर के पीछे हिमस्खलन हुआ था, लेकिन इससे मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था।
सवाल: हिमस्खलन क्या होता है?
जवाब: बर्फ या पत्थर के पहाड़ की ढलान से तेजी से नीचे गिरने को हिमस्खलन या एवलांच कहते हैं। हिमस्खलन के दौरान, बर्फ, चट्टान, मिट्टी और अन्य चीजें किसी पहाड़ से नीचे की ओर तेजी से फिसलती हैं।
हिमस्खलन आमतौर पर तब शुरू होता है जब किसी पहाड़ की ढलान पर मौजूद बर्फ या पत्थर जैसी चीजें उसके आसपास से ढीली हो जाती हैं। इसके बाद ये तेजी से ढलान के नीचे मौजूद और चीजों को इकट्टा कर नीचे की और गिरने लगती हैं। चट्टानों या मिट्टी के स्खलन को भूस्खलन कहते हैं।
हिमस्खलन तीन तरह के होते हैं:
चट्टानी हिमस्खलन: इनमें बड़े-बड़े चट्टानों के टुकड़े होते हैं।
हिमस्खलन: इनमें बर्फ पाउडर या बड़े-बड़े टुकड़ों के रूप में होती है। ये अक्सर ग्लेशियर या हिमनदी के आसपास होते हैं।
मलबे के हिमस्खलन: इसमें पत्थर और मिट्टी समेत कई तरह के मटेरियल होते हैं।
सवाल: हिमस्खलन आखिर शुरू कैसे होता है?
जवाब: मुख्यत: ये दो तरीके से होता है- पहला कई बार पहाड़ों पर पहले से मौजूद बर्फ पर जब हिमपात की वजह से वजन बढ़ता है, तो बर्फ नीचे सरकने लगती है, जिससे हिमस्खलन होता है। दूसरा-गर्मियों में सूरज की रोशनी यानी गर्मी की वजह से बर्फ पिघलने से हिमस्खलन होता है।
एक बड़े और पूरी तरह से विकसित हिमस्खलन का वजन 10 लाख टन या 1 अरब किलो तक हो सकता है। पहाड़ों से नीचे गिरने के दौरान इसकी स्पीड 120 किलोमीटर प्रति घंटे से 320 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा हो सकती है।
आमतौर पर हिमस्खलन सर्दियों में होता है और इसके दिसंबर से अप्रैल में होने के आसार ज्यादा रहते हैं।
सवाल: क्यों होते हैं हिमस्खलन?
जवाब: ज्यादातर हिमस्खलन खुद से यानी प्राकृतिक होते हैं, इसकी कई वजहें होती हैं, मसलन…
- भारी हिमपात
- जंगलों की कटाई
- खड़ी ढलान
- भूकंप
- तूफान
- चट्टानों का गिरना
इसका दूसरा सबसे बड़ा कारण गर्मी की वजह से बर्फ का पिघलना होता है।
हिमस्खलन यानी इंसानों के कारण भी होता है, जैसे-
- स्कीइंग
- बर्फ में स्नो स्कूटर (स्नो मोबाइल) चलाने वाले
- पर्वतारोही
हिमस्खलन दो तरह से होते हैं- स्लफ और स्लैब
स्लफ हिमस्खलन: इसमें ढीली बर्फ थोड़ी दूर खिसकती है।
स्लैब हिमस्खलन: ये सबसे खतरनाक हिमस्खलन है। इसमें विशाल बर्फ का स्लैब खिसकता है।
हिमस्खलन को चार अलग कैटेगरी में बांट सकते हैं:
1.लूज स्नो एवलांच:
- ये स्लफ हिमस्खलन का उदाहरण हैं, जो खड़ी ढलान पर ताजे हिमपात के बाद होते हैं।
- इस हिमस्खलन की बर्फ कठोर नहीं होती और सूरज की रोशनी से मुलायम हो जाती है।
- इसमें बहुत सॉलिड स्नो-पैक यानी बर्फ का ढेर नहीं बन पाता।
- ये सिंगल पॉइंट से निकलते हैं और नीचे की ओर बढ़ने पर चौड़े हो जाते हैं।
2. स्लैब एवलांच:
- इस हिमस्खलन में बड़े हिमखंड यानी बर्फ के विशाल खंड ढलान से नीचे गिरते हैं
- इसमें पतले बर्फ के स्लैब कम नुकसान पहुंचाते हैं जबकि मोटे स्लैब घातक होते हैं।
- लूज स्नो हिमस्खलन ही स्लैब हिमस्खलन की भी वजह बन सकते हैं।
3. पाउडर स्नो एवलांच:
- ये स्लफ और स्लैब हिमस्खलन का मिश्रण होता है।
- इसके निचले हिस्से में बर्फ का स्लैब और हवा और ऊपरी हिस्से में मुलायम स्नो होती है।
- ये ढलान से नीचे की ओर बढ़ने पर एक विशाल बर्फ के गोले में बदल जाते हैं।
- इनकी स्पीड 300 KM/ घंटे से ज्यादा होती है और ये लंबी दूर तय कर सकते हैं।
4. वेट स्नो एवलांच:
- ये हिमस्खलन शुरू में पानी और बर्फ से बने होते हैं। ये काफी खतरनाक हो सकते हैं।
- फ्रिक्शन की वजह से धीमी स्पीड से आगे बढ़ते हुए रास्ते में मलबा इकट्ठा करते हैं।
- कई बार इनकी भी स्पीड तेज हो सकती है।
सवाल: क्या हिमस्खलन फायदेमंद भी होते हैं?
जवाब: आमतौर पर हिमस्खलन को नुकसानदायक माना जाता है, लेकिन इनकी चपेट में इंसानों के आने को छोड़ दें तो ये अक्सर फायदेमंद होते हैं। पर्वतों पर जब बारिश के मौसम में हिमस्खलन होता है, तो बर्फ के कण हवा में बिखर जाते हैं और हिमपात बनकर ग्लेशियर यानी हिमनदियों में गिरते हैं।
इससे हिमनदियों को नई एनर्जी मिलती हैं। कुछ दिनों पहले केदारनाथ के पीछे आया हिमस्खलन ऐसे ही फायदेमंद हिमस्खलन का उदाहरण है।
सवाल: क्या हिमस्खलन की भविष्यवाणी मुमकिन है?
जवाब: अब तक वैज्ञानिक ये भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं हैं कि हिमस्खलन कब और कहां होगा। वे बस बर्फ के ढेर, तापमान और हवा की कंडीशन से हिमस्खलन के खतरे का अनुमान लगा सकते हैं। बर्फ में स्कीइंग वाले कुछ इलाको में एवलांच कंट्रोल टीमें तैनात होती हैं।
कुछ स्कीइंग वाले इलाकों के गश्ती दल हिमस्खलन रोकने के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल करते हैं। वे किसी भी खतरनाक ढलानों को तोप से उड़ा देते हैं, ताकि किसी ढीले या नए बर्फ के ढेर को हिमस्खलन बनने से रोका जा सके। कनाडा और स्विट्जरलैंड के ऊंचे पहाड़ों पर हिमस्खलन कंट्रोल के लिए स्पेशल मिलिट्री तैनात होती है। स्विट्जरलैंड में कई पहाड़ी गांवों में घरों को बर्फ के ढेर से बचाने के लिए मजबूत ढांचे लगाए जाते हैं।
सवाल: हिमस्खलन में फंस जाएं, तो क्या करें?
जवाब: नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमस्खलन में फंसने पर सबसे पहले बर्फ के स्लैब या ढेर से बाहर निकलने की कोशिश करें। अगर ये मुमकिन नहीं है, तो किसी पेड़ तक पहुंचने की कोशिश करें और आखिरी उपाय के रूप बर्फ से बाहर आने की कोशिश करें।
बर्फ में दब जाने के बाद सबसे पहले सांस लेने के लिए कुछ जगह बनाने की कोशिश करें और फिर आसमान की ओर मुक्का मारें, यानी बर्फ की दीवार को तोड़ने की कोशिश करें। दरअसल, हिमस्खलन रुकने पर बर्फ कंक्रीट की तरह जम जाती है और दम घुटने से व्यक्ति की मौत हो जाती है। बर्फ के ढेर में एक घंटे से ज्यादा फंसे रहने के बाद जीवित रहने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं।
सवाल: इलेक्ट्रिॉनिक डिवाइस- ‘एवलांच बीकन’ से बर्फ में दबे विक्टिम को कैसे खोजते हैं?
जवाब: एवलांच बेकन या एवलांच ट्रांससिवर एक बड़े मोबाइल जैसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होती है। इसे हर पर्वतारोही पहनकर रखता है। हिमस्खलन में किसी के दबने पर उन्हें खोजने वाले इसी डिवाइस को ऑन करके विक्टिम को खोजते हैं।
ऐसा करने से उन्हें दबे हुए व्यक्ति के बीकन से आ रहे सिग्नल से उसकी लोकेशन पता चल जाती है। एवलांच बीकन में ‘बीपर’ होते हैं, जो एक्टिवेट करने पर लगातार आवाज करने लगते हैं। एवलांच बीकन की मदद से रेस्क्यू करने वाला बर्फ में दबे पीड़ित को 260 फीट से ज्यादा दूरी से लोकेट कर सकता है।
पूरे शहर को तबाह कर सकता है हिमस्खलन
एक ताकतवर हिमस्खलन उसके रास्ते में आने वाले पेड़ों, घरों, बिल्डिंग्स के साथ ही पूरा शहर तबाह कर सकता है और लोगों की जान ले सकता है। इसकी वजह से बिजली सप्लाई भी बाधित हो सकती है। ये रास्ते और रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर सकते हैं।
31 मई 1970 को पत्थरों और बर्फ से बने एक ताकतवर मलबे के हिमस्खलन ने पेरू के यांगे शहर और आसपास के 10 गांवों को तबाह कर दिया था। इस हादसे में 18-20 हजार लोगों की मौत हो गई थी।
वर्ल्ड वॉर-I में हिमस्खलन से एक ही दिन में दफन हुए थे 10 हजार सैनिक
फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के दौरान आल्प्स के बर्फीले पहाड़ी दर्रों पर लड़ाई के दौरान अलग-अलग हिमस्खलन की घटनाओं में इटली और ऑस्ट्रियन फौज के 60 हजार से ज्यादा जवानों की मौत हो गई थी।
इनमें से 10 हजार से ज्यादा जवानों की मौत तो केवल एक ही दिन यानी 13 दिसंबर 1916 को इटली के माउंट मार्मोलादा पहाड़ पर आए हिमस्खलन से हुई थी। ये घटना इतिहास में ‘व्हाइट फ्राइडे’ के नाम से जानी जाती है।
कुछ दावों के मुताबिक, ये हिमस्खलन प्राकृतिक नहीं था, बल्कि दोनों तरफ की सेनाओं ने एक-दूसरे को दफन करने के लिए कमजोर बर्फीले ढेरों पर गोले दागे थे। तब जहरीली गैसों से ज्यादा सैनिकों की मौत हिमस्खलन से हुई थी।
अमेरिका में ट्रेनों से टकराया था हिमस्खलन, 96 लोगों की हुई थी मौत
मार्च 1910 में अमेरिका के वॉशिंगटन के वेलिंगटन कस्बे में 9 दिनों की भारी बर्फबारी की वजह से शहर के डिपो में दो ट्रेनें फंस गई थीं। 1 मार्च 1910 को गरज के साथ हुई तेज बारिश की वजह से हिमस्खलन हुआ।
इसके बाद 14 फीट ऊंची बर्फ की एक दीवार शहर की ओर गिरी और डिपो में खड़ी ट्रेनों से टकराई। इससे ट्रेनें 150 फीट नीचे टाई नदी की घाटी में जा गिरीं। इस घटना में 96 लोगों की मौत हो गई थी। ये अमेरिका के इतिहास में हिमस्खलन से हुई सबसे ज्यादा मौतों की घटना है।