Acn18.com/साल 1540 की बात है, भारत के पहले मुगल शासक बाबर के बेटे हुमायूं को बिहार के शेरशाह सूरी ने युद्ध में हरा दिया। हुमायूं भारत से भाग खड़ा हुआ। उसने फारस यानी ईरान में शरण ली। 1545 में शेरशाह सूरी की मौत हो गई।
मौके को भांपकर हुमायूं ने भारत वापस लौटने की योजना बनाना शुरू कर दिया। तब बलूचिस्तान के कबीलाई सरदारों ने उसके इस प्लान में मदद की। बलूचों का साथ पाकर 1555 में हुमायूं ने दिल्ली पर फिर से नियंत्रण कर लिया।
साल 1659। मुगल बादशाह औरंगजेब दिल्ली का शासक बना। उसकी सत्ता पश्चिम में ईरान के बॉर्डर तक थी, लेकिन दक्षिण में उसे लगातार मराठों की चुनौतियों से जूझना पड़ा रहा था।
तब बलूची सरदारों ने मुगल हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ा और बलूच लीडर मीर अहमद ने 1666 में बलूचिस्तान के दो इलाकों- कलात और क्वेटा को औरंगजेब से छीन लिया।
बलूचिस्तान का इतिहास 9 हजार साल पुराना
आज जहां बलूचिस्तान है, उस जगह का इतिहास करीब 9 हजार साल पुराना है। तब यहां मेहरगढ़ हुआ करता था। ये सिंधु सभ्यता का एक प्रमुख शहर था। लगभग 3 हजार साल पहले जब सिंधु सभ्यता का अंत हुआ तो यहां के लोग सिंध और पंजाब के इलाके में बस गए। इसके बाद ये शहर वैदिक सभ्यता के प्रभाव में आया।
यहां पर हिंदुओं की प्रमुख शक्तिपीठ में से एक- हिंगलाज माता का मंदिर भी है, जिसे पाकिस्तान में नानी का हज भी कहा जाता है। समय के साथ ये शहर बौद्ध धर्म का भी एक प्रमुख केंद्र बना। सातवीं सदी में जब अरब हमलावरों ने इस इलाके पर हमला किया, तो यहां पर इस्लाम धर्म का प्रभाव बढ़ा।
बलूच पाकिस्तान में कैसे आकर बसे, इसे लेकर दो थ्योरी…
पहली थ्योरी: लोक कथाओं के मुताबिक
बलूचिस्तान की कलात रियासत के आखिरी शासक मीर अहमद यार खान ने अपनी किताब ‘इनसाइड बलूचिस्तान’ में लिखा है कि बलूच लोग खुद को पैगंबर इब्राहिम के वंशज मानते हैं। वे सीरिया के इलाके में रहते थे। यहां बारिश की कमी और अकाल वजह से इन लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया।
सीरिया से निकल कर इन लोगों ने ईरान के इलाके में डेरा डाला। यह बात तब के ईरानी राजा नुशेरवान को पसंद नहीं आई और उन्होंने इन लोगों को यहां से खदेड़ दिया। इसके बाद ये लोग उस इलाके में पहुंचे, जिसे बाद में बलूचिस्तान का नाम दिया गया।
जिस वक्त बलूच ईरान से चले थे, तब उनके सरदार मीर इब्राहिम थे। जब वे बलूचिस्तान पहुंचे तो उनकी जगह मीर कम्बर अली खान ने ले ली। इस कबीले को पैगंबर इब्राहिम के नाम पर ब्राहिमी कहा गया, जो बाद में ब्रावी या ब्रोही बन गया।
हिंदू राजवंश को हटाने में बलूचों ने मुगलों की मदद की
बलूच लोग इस इलाके में बस गए। कई सौ साल बाद जब हिंदुस्तान में मुगलों का शासन हुआ, तो वे बलूच लोगों के सहयोगी बन गए। इस दौरान बलूचिस्तान के कलात इलाके में सेवा (Sewa) वंश का शासन था, जिसे एक हिंदू राजवंश माना जाता है। इस राजवंश की एक प्रसिद्ध शासक रानी सेवी (Rani Sewi) थीं, जिनके नाम पर बाद में सिबि (Sibi) क्षेत्र का नाम पड़ा।
सेवा वंश का शासन मुख्य रूप से कलात और उसके आसपास के क्षेत्रों में था और यह राजवंश उस समय हिंदू परंपराओं का पालन करता था। भारत के मुगल शासक अकबर ने 1570 के दशक में बलूचों की मदद से कलात पर हमला किया और सेवा राजवंश से इसका नियंत्रण छीन लिया।
17वीं सदी के बीच में मुगलों की पकड़ कमजोर होने लगी और बलूच जनजातियों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया। 18वीं सदी तक मुगलों ने यहां शासन किया, लेकिन बलूचों ने उन्हें यहां से खदेड़ दिया। यहां से बलूचों ने कलात में अपनी रियासत की बुनियाद रखी और बलूचिस्तान में बलूचों का शासन शुरू हुआ।
दूसरी थ्योरी: इतिहासकारों के मुताबिक
इतिहासकार कहते हैं कि बलूच लोग इंडो-ईरानी लोगों के ज्यादा करीब हैं, बजाय सीरिया के अरबी लोगों के। इंडो ईरानी लोगों को आर्यन भी कहा जाता है। इस लिहाज से इतिहासकारों को लगता है कि बलूच भी आर्यन हैं। आर्य हजारों साल पहले सेंट्रल एशिया में रहते थे, लेकिन खराब मौसम और युद्ध के हालात के चलते वहां से दूसरी जगह की तलाश में निकले।
वहां से निकलकर पहले आर्मेनिया और अजरबैजान पहुंचे। वे अजरबैजान के ब्लासगान इलाके में रहने लगे। यहां आर्यों की भाषा और लहजा मिलाकर नई जुबान बनाई गई, जिसे बलशक या बलाशोकी नाम दिया गया। आर्यों को बलाश कहा जाने लगा।
ईसा से 550 साल पहले अजरबैजान ईरान के खाम साम्राज्य के कब्जे में आ गया। 224-651 ईस्वी में सासानी साम्राज्य स्थापित हुआ। छठी सदी के आखिर में और सातवीं सदी की शुरुआत में इस इलाके में बाहर से हमले बढ़ गए और मौसम भी खराब रहने लगा। तो सेंट्रल एशिया से यहां आकर बसे आर्य अलग-अलग इलाकों में जा बसे।
कुछ लोग ईरान के जनूबी (दक्षिण) चले गए और कुछ लोग ईरान के मगरिब (पश्चिम) चले गए। जनूबी की तरफ गए आर्य वहां से और आगे ईरान के कमान और सीस्तान पहुंच गए। यहां इनका नाम बदल कर बलाश से बलूच और बोली का नाम बलाशोकी से बदल कर बलूची हो गया। धीरे-धीरे इन बलूच लोगों ने सीस्तान से आगे के इलाके में दाखिल होते गए। इसी इलाके को बाद में बलूचिस्तान कहा गया।
पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है बलूचिस्तान
बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है और 44 फीसदी हिस्सा कवर करता है। जर्मनी के आकार का होने का बावजूद यहां की आबादी सिर्फ डेढ़ करोड़ है, जर्मनी से 7 करोड़ कम।
बलूचिस्तान तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से सम्पन्न है। इन संसाधनों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान अपनी जरूरतें पूरी करता है। इसके बाद भी ये इलाका सबसे पिछड़ा है।
यही वजह है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नफरत बढ़ रही है। पाकिस्तान का कब्जा होने के बाद से बलूचिस्तान में 5 बड़े विद्रोह हुए हैं। सबसे हालिया विद्रोह 2005 में शुरू हुआ था जो आज भी जारी है।
आधुनिक बलूचिस्तान का इतिहास 150 साल पुराना
आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी 1876 से शुरू होती है। तब बलूचिस्तान पर कलात रियासत का शासन था। भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश हुकूमत शासन कर रही थी। इसी साल ब्रिटिश सरकार और कलात के बीच संधि हुई।
संधि के मुताबिक अंग्रेजों ने कलात को सिक्किम और भूटान की तरह प्रोटेक्टोरेट स्टेट का दर्जा दिया। यानी भूटान और सिक्किम की तरह कलात के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार का दखल नहीं था, लेकिन विदेश और रक्षा मामलों पर उसका नियंत्रण था।
भारत की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हुई
1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। भारत और पाकिस्तान की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हो गई। जब 1946 में ये तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ रहे हैं, तब कलात के खान यानी शासक मीर अहमद खान ने अंग्रेजों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को सरकारी वकील बनाया।
बलूचिस्तान नाम से एक नया देश बनाने के लिए 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक बुलाई गई। इसमें मीर अहमद खान के साथ जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हुए। बैठक में जिन्ना ने कलात की आजादी की वकालत की।
बैठक में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी माना कि कलात को भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है। तब जिन्ना ने ही ये सुझाव दिया कि चार जिलों- कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाया जाए।