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अखिलेश ने माता प्रसाद पांडेय को बनाया नेता प्रतिपक्ष:पीडीए के बाद चला चौंकाने वाला ब्राह्मण कार्ड; शिवपाल यादव के हैं करीबी

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Acn18.com/सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। यूपी में विधानसभा सत्र शुरू होने के ठीक 19 घंटे पहले अखिलेश ने सबको चौंका दिया। अखिलेश ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के बाद अब ब्राह्मण कार्ड चला है।

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81 साल के माता प्रसाद पांडेय विधानसभा में सीएम योगी एंड टीम का मुकाबला करेंगे। वह सिद्धार्थनगर की इटवा सीट से विधायक हैं। 7 बार विधायक रह चुके हैं। दो बार विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं।

रायबरेली के ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडेय के बगावत करने के बाद सपा के बाद कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं था। ऐसे में अखिलेश ने माता प्रसाद पांडेय को अहम पद देकर सपा को मुस्लिम-यादव से आगे ले जाने की कोशिश की है।

अखिलेश ने अमरोहा सीट से विधायक महबूब अली को अधिष्ठाता मंडल, मुरादाबाद की कांठ सीट से विधायक कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक और प्रतापगढ़ से विधायक राकेश कुमार उर्फ आरके वर्मा को विधानसभा का उप सचेतक बनाया है।

माता प्रसाद को क्यों बनाया गया नेता प्रतिपक्ष

  1. माता प्रसाद सपा के सबसे सीनियर लीडर हैं। शिवपाल के नाम पर अखिलेश सहमत नहीं थे। ऐसे में माता प्रसाद वह नाम है, जिनका पार्टी के कैडर में कोई विरोध नहीं है।
  2. माता प्रसाद 7 बार विधायक रह चुके हैं। मुलायम और अखिलेश सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। ऐसे में वह सीएम योगी और भाजपा के 255 विधायकों का मुकाबला कर सकते हैं।
  3. शिवपाल खुद नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते थे। ऐसे में किसी और नेता को बनाया जाता तो वह शिवपाल के कद के आगे कमजोर पड़ सकता था। माता प्रसाद शिवपाल के भी करीबी रहे हैं।
  4. अखिलेश लगातार पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में माता प्रसाद पांडेय के माध्यम से वह अगड़ी जाति के वोट बैंक पर भी सेंध लगाना चाहते हैं।
  5. कई राउंड की मीटिंग के बाद लगी मुहर

    अखिलेश यादव ने रविवार को विधायक दल की बैठक बुलाई थी। इसमें नेता प्रतिपक्ष का नाम तय होना था। अखिलेश सुबह 11 बजे बैठक में पहुंचे। वहां विधायकों ने सपा प्रमुख को नेता प्रतिपक्ष पर अंतिम फैसला लेने को कहा। क्योंकि, ज्यादातर विधायक शिवपाल के नाम पर सहमत थे, लेकिन परिवार के आरोपों के चलते अखिलेश शिवपाल को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाना चाहते थे।

    इसके बाद दो नाम सामने आए। इंद्रजीत सरोज और तूफानी सरोज। इंद्रजीत सरोज के नाम पर इसलिए सहमति नहीं बन पाई कि वह 2018 में ही बसपा छोड़कर सपा में आए थे। सपा के सीनियर लीडर उनके नाम पर सहमत नहीं हुए। उनका कहना था कि इंद्रजीत बसपा से आए हैं, इसलिए पार्टी कार्यकर्ताओं में गलत मैसेज जाएगा।

    वहीं, तूफानी सरोज को लेकर यह बात सामने आई कि वह विधानसभा में सीएम योगी एंड टीम का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। वजह है कि तूफानी सरोज शांत स्वभाव के नेता माने जाते हैं। लाइमलाइट में नहीं रहते हैं।

    आखिर में माता प्रसाद के नाम पर बनी सहमति…
    अखिलेश ने पहले सपा के सीनियर नेताओं के साथ मीटिंग की, लेकिन नाम तय नहीं हो पाया। शिवपाल यादव भी सपा मुख्यालय से चले गए। इसके बाद अखिलेश ने चुनिंदा नेताओं के साथ बैठक की। उसमें माता प्रसाद का नाम पर मुहर लगी।

    पार्टी नेताओं ने बताया कि माता प्रसाद सीनियर लीडर हैं। वह लंबे वक्त से सपा के साथ हैं। ऐसे में पार्टी कैडर में उनका विरोध नहीं होगा। खासकर शिवपाल यादव। दूसरी अहम बात यह है कि मात प्रसाद पांडेय दो बार विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। उनको विधानसभा चलाने का लंबा अनुभव है। माता प्रसाद की उम्र 81 साल है। ऐसे में वह टीम योगी का मुकाबला कैसे कर पाएंगे। यह देखना होगा।

    इटावा सीट से 7 बार विधायक रहे चुके हैं पांडेय
    माता प्रसाद पांडेय सिद्धार्थनगर की इटवा विधानसभा सीट से 7 बार विधायक रह चुके हैं। पांडेय ने अपना पहला चुनाव 1980 में जनता पार्टी से लड़ा था और जीत हासिल की। 1985 में लोकदल से विधायक बने। 1989 के चुनाव में जनता दल से जीत हासिल की।

    1991 और 1996 में विधानसभा चुनाव में हार गए। 2002, 2007 और 2012 में सपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2017 में भाजपा प्रत्याशी डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी से चुनाव हार गए थे। 2022 में योगी सरकार में मंत्री रहे बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी को हराकर 7वीं बार विधायक बने।

  6. कमाल अख्तर मुलायम यादव के करीबी रहे है। 2004 कमाल अख्तर सीधे राज्यसभा भेज दिए गए थे। यानी राजनीतिक जीवन की शुरुआत सीधे बतौर राज्यसभा सदस्य की। 2012 में सपा ने कमाल अख्तर को अमरोहा की हसनपुर सीट से मैदान में उतारा था। कमाल अख्तर ने जीत दर्ज की और उन्हें पंचायती राज मंत्री बना दिया गया।

    2014 का लोकसभा चुनाव आया और सपा ने कमाल अख्तर की पत्नी हुमेरा अख्तर को अमरोहा सीट से चुनाव लड़ा दिया। हुमेरा 3.70 लाख वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहीं। 2015 में कमाल अख्तर को अखिलेश यादव ने खाद्य एवं रसद विभाग का कैबिनेट मंत्री बना दिया।

    इसके बाद 2017 का चुनाव भी कमाल अख्तर ने हसनपुर सीट से लड़ा, लेकिन वह 27 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हार गए। 2022 में सपा ने मुरादाबाद की कांठ सीट से विधानसभा टिकट दिया और वह चुनकर विधानसभा पहुंचे।

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