acn18.com / बुराई और अहंकार के प्रतीक माने जाने वाले रावण सहित उसके भाई मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतले दसहरा पर सदियों से जलाने की परंपरा बनी हुई है। जबकि कुछ क्षेत्रों में रावण के प्रति सहानुभूति भी जताई जाती है। इन सब के पीछे सूरजपुर जिले में दशहरा से ठीक पहले एक संगठन ने प्रशासन को ज्ञापन सौंपा और मांग की है कि रावण के पुतले जलाए जाने पर रोक लगाई जानी चाहिए।
कई वेद , पुरान का ज्ञाता होने के बावजूद रावण की पहचान मूलरूप से खलनायक की बनी हुई है। खुद को परम प्रतापी समझने के कारण उसमे अहंकार भर गया था। इसी चककर में उसका सर्वस्व समाप्त हो गया। फिर भी कुछ लोग उसका महिमामंडन करने से पीछे नही है। विजयदशमी पर्व रावण दहन की तैयारी के ठीक पहले सूरजपुर जिले में प्रशासन को इस बारे में ज्ञापन सौंपा गया और कहा गया कि रावण के पुतलों को जलाने से रोका जाना चाहिए।
इस तरह की मांग होने के साथ दूसरे लोग भी कूद गए है। वे बताते हैं कि इस तरह की बात अव्यावहारिक है और अपने स्वार्थ के लिए कुछ लोग गलत मांग को लेकर आगे आ रहे है।
देखने को आया है कि पिछले कुछ वर्षों से नकारात्मक चरित्र को अलग रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है। और ऐसा बताया जा रहा है कि 12 अतीत में उन्होंने कोई गलती की ही नही हो। इससे पहले देश के कुछ हिस्सों में ऐसी तस्वीरें पैदा करने का प्रयास किया गया लेकिन अब छत्तीसगढ़ में भी इस तरह की चेष्टा की जा रही है। इससे हासिल क्या होता है यह मांग करने वालों के अलावा और कोई नहीं जानता।
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ब्यूरो रिपोर्ट