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छत्तीसगढ़ में पहला ऐसा इलाज:बैठे-बैठे सोता था मरीज, कैंसर की दर्द की वजह से थी परेशानी, अंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने किया ठीक

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Acn18.com/छत्तीसगढ़ के बड़े सरकारी हॉस्पिटल अंबेडकर अस्पताल में पहली बार एक ऐसी इलाज की प्रक्रिया अपनाई गई, जिसमें एक मुश्किल हालात से जूझ रहे कैंसर पेशेंट को बड़ी राहत मिली है। अस्पताल की रेडियोलॉजी विभाग ने यह इलाज के प्रोसीजर को पूरा करने में कामयाबी हासिल की है।

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जिस मरीज का इलाज किया गया, उसे मलाशय का कैंसर था। उसके शरीर में इतनी बुरी तरह दर्द होता था कि वह खड़े नहीं हो सकता था। ना ही लेट पाता था। बड़ी मुश्किल से बैठ पाता था और बैठे-बैठे ही नींद लेता था। रायपुर के रहने वाले 30 साल के भूपेंद्र सिन्हा को यह बीमारी थी भूपेंद्र ने बताया कि कमर के निचले हिस्से के दर्द से वह छटपटा उठता था बड़ी मुश्किल से व्हीलचेयर पर या बेड पर बैठकर ही सो पाता था। पिछले 2 महीने से असहनीय दर्द की वजह से बैठकर सोना भी मुश्किल हो चुका था।

अंबेडकर अस्पताल के विशेषज्ञ डॉक्टर विवेक पात्रे ने बताया कि 30 साल के इस युवक की परेशानी काफी बढ़ गई थी। मलाशय के कैंसर (रेक्टल कैंसर) की वजह से पेन किलर दवाओं से भी मरीज को कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। परिजन भी कई मेडिकल संस्थाओं में चेकअप करवा कर परेशान थे।

अंबेडकर अस्पताल के ही क्षेत्रीय कैंसर संस्थान के डॉ प्रदीप चंद्राकर के जरिए यह मरीज डॉक्टर विवेक की टीम के पास पहुंचा। मरीज की पुरानी हिस्ट्री का एक्सपर्ट डॉक्टर की टीम ने अध्ययन करते हुए इसके इलाज के लिए एक नई प्रक्रिया से काम करने की सोची।

जान का था जोखिम

मरीज की स्थिति देखते हुए डॉक्टर ने बिना चीर फाड़ के उसका इलाज करने की सोची। इस प्रोसेस में मरीज की जान भी जा सकती थी, घरवालों को इस बात की जानकारी दी गई। युवक की बुरी हालत देखते हुए घर वाले भी जोखिम देने को तैयार हुए एक्सपर्ट डॉक्टर की टीम ने इसके बाद अपना काम शुरू किया।

अस्पताल के बायोकेमिस्ट्री विभाग के डॉक्टर देवप्रिय रथ के सहयोग से दर्द निवारक गुणों वाली दवा फिनोल का इस्तेमाल किया गया। इसे बिना किसी बड़े ऑपरेशन के नीडल के जरिए पीठ के दो हिस्सों में इंजेक्ट किया। इस तकनीक के इलाज के बाद अब युवक ठीक हो रहा है। बिना किसी चीर फाड़ के की गई इस इलाज के इस प्रोसीजर के बाद मरीज अब सामान्य तौर पर चल फिर पा रहा है , और महीनों से जिसने लेट कर नींद नहीं ली अब वह चैन की नींद सो पा रहा है।

बिना चीरा लगाए ऐसे हुआ इलाज

डॉ विवेक ने बताया कि सुपीरियर हाइपो गैस्ट्रिक प्लेक्सस ब्लॉक एक ऐसी दर्द निवारक प्रक्रिया है जिसमें पेट के निचले हिस्से से दर्द की संवेदना को मस्तिष्क तक ले जाने वाली नसों में सीटी स्कैन मशीन की मदद से इंजेक्शन के जरिए फिनोल नाम की दवा डाली जाती है। इसके डालते ही मरीज को फौरन दर्द से राहत मिलती है रीड की हड्डी और पीठ के निचले हिस्से के बीचो-बीच से आगे जाते हुए सुपीरियर हाइपो गैस्ट्रिक प्लेक्सस तक पहुंचकर दवा डाली जाती है। यह बेहद जोखिम भरा काम होता है । लेकिन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के मरीजों को जीवन दर्द रहित बनाने के लिए इस तरह के ब्लॉक लगाए जाते हैं। इसके बाद मरीज अपना सामान्य जीवन जी पाते हैं।

क्या है रेक्टल कैंसर

कैंसर विभाग के एक्सपर्ट डॉ प्रदीप चंद्राकर ने बताया आंत के आखिरी कुछ इंच के हिस्से को मलाशय कहा जाता है, यह कोलोन यानी की बड़ी आंत के आखिरी हिस्से के अंत से शुरू होता है और यह गुदा के छोटे संकीर्ण मार्ग तक जाता है ।शरीर के कई अन्य अंगों की तरह मलाशय में भी कैंसर जैसे रोग होने के अधिक जोखिम रहते हैं। मलाशय कैंसर के लक्षणों में अनियमित रूप से मल आना, पेट के निचले हिस्से में असहनीय दर्द होना, मल में खून आना और आंतों में रुकावट होना जैसी लक्षण शामिल है।

इस टीम ने किया इलाज

इलाज की इस प्रक्रिया में प्रमुख रूप से डॉक्टर प्रेम चौधरी, डॉक्टर रसिका, डॉक्टर सूरज, डॉक्टर कवि ,डॉक्टर अनामिका, डॉक्टर पल्लवी , डॉ लीना टेक्नीशियन गजोधर, रूप सिंह का विशेष सहयोग रहा। मरीज को इलाज में डॉ खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना से निशुल्क स्वास्थ्य सेवा मिली।

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