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बिहार में जातीय गणना पर हाईकोर्ट की रोक:चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा- जो डेटा कलेक्ट किया, उसे नष्ट नहीं किया जाए

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Acn18.com/बिहार में हो रही जातीय गणना पर गुरुवार को पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। चीफ जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने आदेश दिया है कि गणना तत्काल रोकी जाए। इससे पहले हाईकोर्ट में मामले को लेकर 2 दिन सुनवाई हुई थी। इसके बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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हाईकोर्ट ने कहा कि अब तक जो डेटा कलेक्ट हुआ है, उसे नष्ट नहीं किया जाए। मामले पर अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी।

इधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि जाति आधारित गणना सर्वसम्मति से कराई जा रही है। हम लोगों ने केंद्र से इसकी अनुमति ली है। हम पहले चाहते थे कि पूरे देश में जाति आधारित जनगणना हो, लेकिन जब केंद्र सरकार नहीं मानी तो हम लोगों ने जाति आधारित गणना सह आर्थिक सर्वे कराने का फैसला लिया।

अपडेट्स

  • तेजस्वी यादव ने कहा कि कोर्ट के आदेश को पहले समझेंगे। फिर मुख्यमंत्री जी से बैठकर बात करेंगे और तय करेंगे आगे क्या करना है।
  • डिप्टी CM ने कहा कि केंद्र हमारे साथ सौतेला व्यवहार करती है। हम अपने पिछड़े लोगों को आगे लाने के लिए कुछ करना चाहते हैं तो बीजेपी वाले सवाल उठाते हैं।
  • बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा है कि नीतीश कुमार नहीं चाहते कि जातीय गणना हो। नीतीश कुमार की गलतियों की वजह से हाईकोर्ट ने रोक लगाई है।
  • जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा है कि यह हाईकोर्ट का अंतरिम फैसला है। इसे फाइनल नहीं माना जाना चाहिए।
  • राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा है कि सरकार फैसले का अध्ययन करेगी और आगे कौन सा कदम उठाया जाए, इस पर विचार होगा।
  • कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा है कि सोच-विचार कर बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना का फैसला लिया था। दूसरे प्रदेशों में भी जाति आधारित गणना हुई है। इस पर इतनी हाय-तौबा क्यों?
  • भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि कोर्ट का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। 1931 के बाद जाति गणना नहीं हुई है।
  • जानकार बताते हैं कि सरकार एक वेलफेयर संस्था होती है। कैबिनेट से पूरी गणना पर 500 करोड़ खर्च करने की मुहर लगी है, लेकिन इसे कानूनी रूप नहीं दिया गया है। दरअसल, 24 अप्रैल को ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पटना हाईकोर्ट जाने को कहा था। इसके बाद 2 और 3 मई को हाईकोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई थी।

  • हाईकोर्ट में पहला दिन
    जातिगत गणना मामले में बीते सोमवार को पहली सुनवाई होनी थी, लेकिन सरकार की ओर से किए गए काउंटर एफिडेविट रिकॉर्ड में नहीं होने के कारण हाईकोर्ट ने सुनवाई को मंगलवार के लिए टाल दिया। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अपराजिता सिंह और हाईकोर्ट के एडवोकेट दीनू कुमार को जातीय गणना को असंवैधानिक करार देने के लिए हाईकोर्ट में दलीलें पेश करनी थीं।

    हाईकोर्ट में दूसरा दिन
    पटना हाईकोर्ट में मंगलवार को जातीय गणना को लेकर बहस हुई। एडवोकेट जनरल (महाधिवक्ता) पीके शाही ने सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने एडवोकेट जनरल से पूछा कि जाति आधारित गणना कराने का उद्देश्य क्या है? इसको लेकर क्या कोई कानून बनाया गया है?

    जवाब में पीके शाही ने कहा कि दोनों सदन में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर जातीय गणना कराने का निर्णय लिया गया था। कैबिनेट ने उसी के मद्देनजर गणना कराने पर अपनी मुहर लगाई। यह राज्य सरकार का नीतिगत फैसला है। इसके लिए बजट में प्रावधान किया गया है।

    हाईकोर्ट में तीसरा दिन
    बुधवार को एडवोकेट जनरल पीके शाही ने आर्थिक सर्वेक्षण और जातिगत गणना कराने को लेकर दलील रखी। शाही ने चीफ जस्टिस की बेंच के सामने जातीय गणना कराने को लेकर दलील दी। उन्होंने मंडल कमीशन में और बिहार सरकार की योजनाओं को वंचित वर्ग तक पहुंचाने के लिए इसे जरूरी बताया।

  • दूसरे दिन की सुनवाई में याचिकाकर्ता ने पूछा- जातिगत गणना से किसे फायदा
    याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने बताया कि आखिर इस जाति आधारित गणना का उद्देश्य क्या है? इसमें 500 करोड़ रुपए खर्च करने की बात कही जा रही है, लेकिन इसका परिणाम क्या होगा और किसे फायदा होगा।

    सरकार यह बताए कि समाज में जाति प्रथा को खत्म करने की बात लगातार कही जा रही है, लेकिन जातीय गणना कराकर किसे फायदा पहुंचाया जा रहा है? इसका जवाब सरकार दे।

    संविधान के अनुच्छेद-37 का हवाला देकर सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के बारे में जानकारी प्राप्त करे। ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाया जा सके।

    उन्होंने कहा कि जाति से कोई भी राज्य अछूता नहीं है। जातियों की जानकारी के लिए पहले भी मुंगेरीलाल कमीशन का गठन हुआ था। बिहार सरकार की ओर से गणना असंवैधानिक है।

  • सरकार के पास डेटा नहीं
    पीके शाही ने यह भी कहा कि सरकार के पास वंचित समाज और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का कोई डेटा नहीं है। लिहाजा जातिगत आंकड़े जरूरी हैं। उन्होंने यह भी दलील दी है कि यह कास्ट सेंसस नहीं है। यह जातीय गणना सह आर्थिक सर्वेक्षण हैं। महाधिवक्ता से याचिकाकर्ता के एडवोकेट ने कहा कि आपका निर्णय राजनीति से प्रेरित है। राजनीतिक फायदे के लिए यह सब हो रहा है।

    इसके जवाब में एडवोकेट जनरल ने कहा कि हर सरकार राजनीति के तहत कार्य करती है। वोट बैंक के लिए होती है। हर राज्य और केंद्र की सरकार वोट बैंक के लिए ही योजना बनाती है। किसी भी सरकार के कामों को वोट बैंक से दूर नहीं कहा जा सकता है। पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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