Acn18.com/बिहार में रामनवमी के मौके पर दो शहरों में हुए उपद्रव और हिंसा पर बीजेपी के बड़े नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी के बयान एक जैसे हैं। दोनों इसके लिए नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव की सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। अमित शाह से आक्रामक ओवैसी दिखते हैं, लेकिन दोनों के आरोपों का केंद्रीय भाव एक ही है। ओवैसी की एंट्री से बीजेपी को यकीनन सुकून मिला होगा। इसलिए उसे महागठबंधन के पक्ष में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का खतरा दिखता है। बिहार में सियासी संकट की घड़ी में ओवैसी बीजेपी के तारण हार बन कर आते दिख रहे हैं।
मुसलमानों के लिए चिंतित दिख रहे ओवैसी
ओवैसी ने नीतीश कुमार पर हमला बोला और कहा ‘आप इफ्तार पार्टी में टोपी पहन कर और शॉल ओढ़ कर अपना गुनाह नहीं छुपा सकते। कानून-व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। सासाराम और बिहारशरीफ में हिंसा हुई तो यह नीतीश कुमार की सरकार की नाकामी है। बिहारशरीफ नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में आता है। खुफिया रिपोर्ट भी जरूर सरकार के पास आयी होगी। 2016 में भी बिहारशरीफ में इसी तरह की हिंसा हुई थी। नीतीश बताएं कि उन्होंने आरोपियों के खिलाफ क्या कोई कार्रवाई अब तक की है। उपद्रवियों ने सौ साल पुराने मदरसे में आग लगा दी, मस्जिद को नुकसान पहुंचाया। आश्चर्य यह कि नीतीश कुमार ने खेद तक प्रकट नहीं किया। तेजस्वी यादव भी सामने बोलने के बजाय ट्वीट तक ही सीमित रहे। दोनों में से कोई मौका-ए-वारदात पर नहीं गया। राज्य सरकार इस मामले में पूरी तरह विफल रही।’ ओवैसी की एक बात अमित शाह से अलग और तेजस्वी यादव से मेल खाती है, लेकिन तेजस्वी को लपेटे में भी लेती है। ओवैसी ने कहा कि भाजपा हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए हिंसा फैलाना चाहती है और नीतीश-तेजस्वी मुस्लिमों के मन में डर पैदा कर उनका वोट हासिल करना चाहते हैं।
ओवैसी के आरोप का सियासी अर्थ समझिए
ओवैसी के इस बात में दम है कि बिहार में नीतीश और तेजस्वी मुस्लिम वोट अपने पाले में करना चाहते हैं। तेजस्वी की पार्टी आरजेडी का तो समीकरण ही मुस्लिम-यादव को लेकर बना है। नीतीश चूंकि अब आरजेडी के साथ हैं, इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि बंगाल में टीएमसी को मिले वोटों की तरह मुसलमानों के एकतरफा वोट महागठबंधन को ही जाएंगे। बीजेपी के नाम पर भड़कने वाले मुस्लिम समाज को भी निश्चित तौर पर महागठबंधन के साथ ही रहने में भलाई दिखती होगी। लेकिन ओवैसी की एंट्री ने नीतीश-तेजस्वी के खेल को बिगाड़ दिया है। तेजस्वी को लगता था कि ट्वीट के जरिये बीजेपी के माथे हिंसा का ठीकरा फोड़ कर वो मुसलमानों के हितैषी कहलाने में कामयाब हो जाएंगे। इसीलिए उन्होंने इसके लिए सीधे-सीधे संघ और बीजेपी को जिम्मेवार ठहरा दिया था।
ओवैसी बिहार की सियासत में दिखा चुके हैं रंग
जब तक बिहार में ओवैसी की एंट्री नहीं हुई थी, तब तक मुसलमान वोटर कभी कांग्रेस, कभी आरजेडी और कभी जेडीयू के साथ बंटते-बिखरते रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने बिहार में दस्तक दी। पहली ही कोशिश में उन्हें बड़ी कामयाबी मिली। उनकी पार्टी 5 सीटें जीतने में कामयाब हो गयी। और तो और, विधानसभा उपचुनावों में भी उनके उम्मीदवारों को खासा वोट मिले। गोपालगंज में तो उनके उम्मीदवार की वजह से ही आरजेडी की हार ही हो गयी। पिछले ही महीने ओवैसी ने सीमांचल का दौरा किया था। उन्होंने घोषणा की थी कि वे पूरी कोशिश करेंगे कि बिहार की सभी लोकसभा सीटों पर उनके उम्मीदवार चुनाव लड़ें। अगर ऐसा हुआ तो अनुभव यही बताता है कि मुस्लिम वोटों का जो मोह महागठबंधन ने पाल रखा है, उस पर पानी फिर जाएगा। मुस्लिम वोटों का विभाजन कोई रोक नहीं पाएगा। तेजस्वी से ओवैसी की खुन्नस इस बात को लेकर है कि उनकी पार्टी के 4 विधायकों को आरजेडी ने अपने पाले में कर लिया था।