फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी 3 तारीख को है। इसे पुराणों में आमलकी एकादशी कहा गया है। कुछ वैष्णव तीर्थों पर इस दिन से ही 6 दिनों के होली उत्सव की शुरुआत होने से इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है।
हर एकादशी की तरह इस दिन भी भगवान विष्णु की खास पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति आमलकी एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान के साथ रखता है, उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही मोक्ष मिलता है।
हिंदू कैलेंडर की आखिरी एकादशी
हिंदू पंचांग के अनुसार हर पक्ष की 11वीं तिथि को एकादशी कहा जाता है। ये हर महीने में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है। अभी फाल्गुन चल रहा है। जो कि हिंदू कैलेंडर का आखिरी महीना है। इसलिए 3 मार्च को हिंदू पंचांग के साल की आखिरी एकादशी होगी।
पद्म पुराण में है जिक्र
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। आमलकी का अर्थ आंवला होता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने आंवले को आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया था। मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवला और श्री हरि विष्णु की पूजा करने से मोक्ष मिलता है। आमलकी एकादशी का जिक्र पद्म पुराण में मिलता है। इस पूजा से परिवार में भी सुख और प्रेम का वातावरण बना रहता है।
गरुण पुराण: लक्ष्मीजी के आंसू से बना आंवले का पेड़
गरुण पुराण में लिखा है कि इस दिन भगवती और लक्ष्मीजी के आंसू से आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई थी। आंवले के पेड़ में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का वास माना जाता है। ब्रह्माजी आंवले के पेड़ के ऊपरी हिस्से में, शिवजी बीच में और भगवान विष्णु आंवले के पेड़ की जड़ में रहते हैं।
मान्यता है कि जो भक्त आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं, उन्हें पुण्य फल मिलता है।