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ईट भट्टा में बच्चे कर रहे मजदूरी, ऐसे मामलों में परिवार पर भी हो सकती है कार्रवाई : एएलसी

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acn18.com कोरबा/ औद्योगिक जिला कोरबा में रेत खदान से लेकर ईट भट्टा में बच्चों से मजदूरी कराई जा रही है। अलग-अलग तर्क देकर बाल श्रमिक यहां पहुंच रहे हैं। इसके पीछे रोज मिलने वाली 200 से ₹300 की मजदूरी मुख्य कारण है। दूसरी और श्रम विभाग का दावा है कि ऐसे मामलों में लगातार निगरानी की जा रही है और बाल श्रम की शिकायत मिलने पर संबंधित के परिवार के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान है।

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बाल श्रम की रोकथाम के दावे बैनर पोस्टर के साथ-साथ सार्वजनिक स्थान पर लिखे गए नारों से जरूर हो रहे हैं लेकिन जमीन पर तस्वीर कुछ दूसरी हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख औद्योगिक जिले कोरबा में सामान्य और जोखिम वाले उद्योग काफी संख्या में संचालित हो रहे हैं। इनमें बिजली कोयला और एलुमिनियम के अलावा अन्य प्रकृति के उद्योग शामिल है। यहां पर कुशल, अर्ध कुशल और अकुशल कर्मचारी नियोजित है। जबकि रेत खदान से लेकर ईट भट्टा में किए जा रहे कार्यों में बाल श्रम अधिनियम की धज्जियां उड़ रही हैं। इन स्थानों पर नाबालिगों को धड़ल्ले से काम करते हुए देखा जा रहा है। इस तरह के नजारे हर तरफ काम हो गए हैं। एक स्थान पर ऐसे ही बाल मजदूरों से हमने बातचीत की तो जवाब मिला कि स्कूल से पढ़ाई छूट गई है इसलिए ईस काम को पकड़ लिया गया है। इसके बदले हमें ₹300 प्रतिदिन मिलते हैं। जबकि एक बालक ने बताया कि स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई है इसलिए अपनी जरूरत के लिए इस काम से खुद को जोड़ लिया गया है।

मीडिया टीम ने यहां पर चल रही कारगुजारी को रिकॉर्ड किया और इसके साथ ट्रैक्टर के चालक से इस बारे में बातचीत की । इस दौरान अलग-अलग तर्क दिए गए। प्रमाण को झुठलाते हुए एक चालक ने बताया कि बच्चे घूमने के लिए यहां पहुंच गए तो दूसरे चालक का कहना था कि बच्चों से किसी प्रकार का काम नहीं लिया जा रहा है।

कोरबा जिले में चल रहे इस प्रकार के कार्यों के बारे में सरकार के श्रम विभाग को कितनी जानकारी है यह जानने के लिए हम पहुंचे श्रम विभाग के कार्यालय। यहां पर सहायक श्रम आयुक्त से बातचीत की गई। अधिकारी ने दावा किया कि बाल श्रम अधिनियम पूरी तरह से प्रभावशील है और इसे लेकर लगातार निगरानी की जा रही है। नए संशोधन के साथ अब 16 वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर मजदूरी करते मिलेंगे तो उनके परिवार के विरुद्ध पेनल्टी होगी और 1 वर्ष की सजा भी।

बाल मजदूरी और पलायन जैसे मामलों को अभिशाप के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है और लगातार इसके लिए जन जागरूकता का वातावरण तैयार करने की कोशिश सरकारी तंत्र की ओर से जा रही है। अनेक अवसरों पर छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से दूसरे राज्यों के लिए पलायन करने वाले लोगों की वापसी कराने का काम भी प्रशासन की ओर से किया जा चुका है। कारण यह है कि लगातार इस प्रकार की बातें की जाती रही है कि छत्तीसगढ़ में रोजगार की कमी बिल्कुल नहीं है और लोगों को खाने कमाने के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है। इन सबके बावजूद प्रतिवर्ष कोरबा सहित विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में लोग केवल अकेले नहीं बल्कि परिवार के साथ उत्तर प्रदेश पंजाब राजस्थान दिल्ली हरियाणा जम्मू कश्मीर और दक्षिण के राज्यों का रुख करते हैं। कोविड कालखंड में फसे हुए लोगो की वापसी के लिए सरकार को काफी जतन करने पड़े थे । उस दौरान छत्तीसगढ़ वापस आने वाले मजदूरों ने स्टेशन पर माथा टेक कर संकल्प दोहराया था कि अब के बाद वह कभी भी बाहर नहीं जाएंगे लेकिन परिस्थितियों सामान्य होने के साथ पुराने समय की बीमारी फिर से पैदा हो गई है। देखते हैं कि पलायन की छाया से अपने आप को मुक्त करने के लिए लोग कब तक मानसिक रूप से तैयार हो सकेंगे।

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