acn18.com /‘सेना में जल्द से जल्द अहीर रेजिमेंट का गठन किया जाए। जिस दिन इस रेजिमेंट का गठन होगा, उस दिन चीन की रूह कांप जाएगी। इसकी वजह ये है कि 1962 में रिझांग ला चौकी पर 123 अहीर जवानों ने 3,000 चीनी सैनिकों को मार भगाया था।’
15 दिसंबर 2022 यानी गुरुवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान BJP सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ ने ये बात कही है। दरअसल, निरहुआ ने चुनावी घोषणा पत्र में अहीर रेजिमेंट का वादा किया था। उसी वादे की याद दिलाने के लिए शाहजहांपुर निवासी अभिषेक ने अपने खून से निरहुआ को पत्र लिखा था। इसी के बाद संसद में निरहुआ ने ये मुद्दा उठाया है।
करीब 123 अहीरों के 3,000 चीनी सेना को मार भगाने का किस्सा क्या है
नवंबर 1962 की बात है। चीन से जंग खत्म होने के कुछ दिनों बाद एक गड़रिया भटकता हुआ चुशूल से रिझांग ला पहुंच गया। उसने देखा कि वहां बर्फ के बीच सैकड़ों लाशें पड़ी थीं।
इसके बाद वह गड़रिया भागते हुए नीचे गया और उसने सेना की एक दूसरी चौकी पर इसकी जानकारी दी। जब उस चौकी से जवान रिझांग ला चौकी के पास पहुंचे तो उन्होंने वहां 13 कुमाऊं रेजिमेंट के 123 जवानों की लाशें देखीं। ये सभी जवान नवंबर 1962 में मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में ‘रिझांग ला’ चौकी पर तैनात थे।
इनमें ज्यादातर जवान अहीर और हरियाणा से थे। 18 नवंबर को चीनी सेना के 3,000 से ज्यादा जवानों ने अचानक से इस चौकी पर हमला कर दिया। इसके बाद दोनों ओर से भयानक गोलीबारी हुई। चौकी पर तैनात सभी जवानों ने आखिरी गोली तक चीनी सैनिकों का सामना किया।
इस जंग में 114 भारतीय जवान शहीद हुए, जबकि 1200 चीनी सैनिक मारे गए। वहीं 9 भारतीय जवानों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया था। हालांकि, ये सभी चीनी सेना के कब्जे से भागने में सफल रहे।
इससे पहले दीपेंद्र हुड्डा ने भी संसद में उठाया था मामला
निरहुआ ने पहली बार अहीर रेजिमेंट की मांग नहीं की है, बल्कि इससे पहले भी रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने संसद में ये मांग उठाई थी।
उन्होंने कहा था, ‘जब-जब देश पर आक्रमण हुआ, तब-तब जय यादव-जय माधव के नारे की गूंज के साथ अहीर भाइयों ने अपना बलिदान दिया। अब समय आ गया है कि भारतीय फौज में अहीर रेजिमेंट की स्थापना की जाए।’
इसके अलावा 2018 में इसी मांग को लेकर संयुक्त अहीर रेजिमेंट मोर्चा ने 9 दिनों तक भूख हड़ताल की थी। अब इस समुदाय का कहना है कि 4 साल बीतने के बाद भी उनकी मांग पूरी नहीं की गई है।
रेजिमेंट क्या है?
भारतीय सेना में रेजिमेंट एक ग्रुप होता है। कई रेजिमेंट के ग्रुपों से मिलकर भारतीय सेना बनती है। भारत में रेजिमेंट सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनीं। अंग्रेज अपने शुरुआती समय में समुद्री इलाकों तक ही सीमित थे। इसीलिए उन्होंने सबसे पहले मद्रास रेजिमेंट बनाई। फिर जैसे-जैसे अंग्रेजी शासन का विस्तार होता गया, नई रेजिमेंट बनती गईं।
जाति के नाम पर सेना में रेजिमेंट कैसे बनी?
भारतीय सेना में ज्यादातर व्यवस्थाएं अंग्रेजों के समय से चली आ रही हैं। हमारे पास जो सेना है, उस सेना में अधिकतर व्यवस्थाएं अंग्रेजों की देन है। ब्रिटिश अपनी सेना की एक छोटी सी टुकड़ी और अफसरों के साथ भारत आए थे।
इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सेना में भर्ती की शुरुआत की। जब उन्होंने समुद्री इलाकों से अपना विस्तार करना शुरू किया, तो सबसे पहले अंग्रेजों ने ऐसी जातियों को सेना में शामिल किया, जो जंग के मैदान में खूब बहादुरी से लड़ती थीं।
सिख साम्राज्य ने अंग्रेजों के खिलाफ तीन युद्ध लड़े, जिसमें अंग्रेजों ने सिखों की बहादुरी अपनी आंखों से देखी। इसके बाद अंग्रेजों ने 1846 में ब्रिटिश भारतीय सेना में सिख रेजिमेंट को बनाया। सिख रेजिमेंट में अधिकतर सिखों की भर्तियां हुईं।
पहले 3 राजपूत रेजिमेंट को 31 बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के नाम से बनाया गया था। इसके बाद इस रेजिमेंट के दूसरे कप्तान सैमुएल किलपैट्रिक के नाम पर बंगाल नेटिव को किलपैट्रिक की पलटन कहा जाने लगा। इस पलटन में UP-बिहार के राजपूत, ब्राह्मण और मुस्लिम शामिल हो सकते थे।
इस क्षेत्र से आने वाले ये समाज अपनी मजबूत कद-काठी, रौबदार व्यक्तिव के लिए जाने जाते थे। 1825 तक राजपूत रेजिमेंट 1, 2, 4 और 5 की भी स्थापना हो गई थी।
अहीर रेजिमेंट की मांग कहां तक जायज?
4 फरवरी से दिल्ली-गुरुग्राम सीमा पर संयुक्त अहीर मोर्चा के बैनर तले बड़ी संख्या में लोग अहीर रेजिमेंट की मांग कर रहे हैं। अहीर रेजिमेंट का समर्थन करने वाले लोगों का तर्क है कि 70 सालों से अहीर समुदाय ने देश के लिए कई बलिदान दिए हैं।
खासतौर पर 1962 के रिझांग ला युद्ध में 13 कुमाऊं के 120 जवान अहीर समुदाय से ही थे, जिन्होंने बहादुरी से दुश्मन का सामना किया और देश के लिए शहादत दी।
अहीर रेजिमेंट की मांग करने वाले लोगों का कहना है कि अहीर रेजिमेंट बनाकर शहादत देने वाले लोगों को सही सम्मान दिया जाए, लेकिन डिफेंस एक्सपर्ट पीके सहगल ने इस मांग को पूरी तरह राजनीति से प्रेरित बताया।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियों के लोग देश और समाज को किसी न किसी तरह बांटना चाहते हैं। सेना में कभी कोई ऐसी मांग न तो की गई है और न ही होगी, यह मांग सिर्फ वोट बैंक पॉलिटिक्स को ध्यान में रखकर की जा रही है।
आजादी के बाद इसलिए नहीं बनीं जातीय रेजिमेंट
यह सवाल कई बार उठाया गया कि आजादी के बाद सेना की जाति आधारित रेजिमेंट को भंग क्यों नहीं किया गया? और अगर सरकार जाति आधारित रेजिमेंट के खिलाफ नहीं है, तो आजादी के बाद कोई और जातीय रेजिमेंट क्यों नहीं बनाई गई?
दरअसल, भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, जिसके बाद भारत को एक के बाद एक बड़े युद्ध लड़ने पड़े, जिसके कारण आजादी के तुरंत बाद सेना में बदलाव करना उचित नहीं था।
आजादी के बाद एम करियप्पा को भारतीय सेना का पहला कमांडर इन चीफ बनाया गया। उन्होंने पुरानी व्यवस्था के साथ सेना को नए भारत के लिए तैयार करने का भी काम किया। इसके लिए एम करियप्पा ने नेशनल कैडेट कोर को मजबूत किया, साथ ही टेरिटोरियल आर्मी का भी गठन किया।
हालांकि आजादी के बाद सबसे बड़ा सुधार ब्रिगेड ऑफ द ग्रार्डस मेकेनाइज्ड इन्फेंट्री को माना जाता है। इसमें किसी धर्म, जाति और समुदाय के आधार पर भर्तियां नहीं की जाती।
देश में आजादी के बाद सेना में भर्ती प्रक्रिया में सुधार करने के लिए 4 समितियां बनाई गईं, लेकिन आजादी के बाद किसी सरकार ने सेना में नई जातीय रेजिमेंट बनाने या भंग करने की बात नहीं कही।
सेना में किसी रेजिमेंट में कैसे होती है भर्ती
आखिर किसी रेजिमेंट में किसी की कैसे भर्ती होती है, इस प्रक्रिया को समझने के लिए हमने डिफेंस एक्सपर्ट पीके सहगल से बात की। उन्होंने बताया कि इन्फेंट्री में भर्ती होने के लिए किसी भी समुदाय और जाति के लोग आवेदन कर सकते हैं। साथ ही अगर क्षेत्र की बात करें, तो सेना कहीं से भी जाकर सेना में लोगों की भर्ती कर सकती है।
उन्होंने कहा कि सैनिकों को पहले ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है। उसके बाद उन्हें चॉइस दी जाती है, जिसमें वह बताते हैं कि वह किस रेजिमेंट या बटालियन में जाना चाहते हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं कि सैनिक को उस की चॉइस की रेजिमेंट मिल ही जाए।