पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक देवी उत्पन्ना भगवान विष्णु की एक शक्ति का ही रूप हैं। माना जाता है कि उन्होंने इस दिन प्रकट होकर राक्षस मुर को मारा था। भगवान ने देवी को वरदान दिया कि मेरे शरीर से उत्पन्न होने के कारण आपका नाम उत्पन्ना होगा और आप सबकी तकलीफ दूर करने में समर्थ हैं। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।
मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को देवी उत्पन्ना प्रकट हुईं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु ने देवी को आशीर्वाद दिया था कि जो भी आपके इस व्रत को करेगा उसके जीवन में कभी दरिद्रता नहीं रहेगी। कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के पूर्व जन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस बार उत्पन्ना एकादशी का व्रत 20 नवंबर रविवार के दिन रखा जाएगा।
एकादशी व्रत की पूजा विधि
1. एकादशी व्रत के एक दिन पहले से ही यानी दशमी की रात में ही खाना न खाएं।
2. एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद व्रत का संकल्प लें।
3. भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें फूल, जल, धूप, दीप और चावल चढ़ाएं।
4. भगवान को केवल फलों का ही भोग लगाएं और भगवान विष्णु की आरती करें।
5. भोग में तुलसी पत्र जरूर चढ़ाएं और प्रसाद सभी में वितरित करें।
6. अगले दिन द्वादशी को पारण करें। जरूरतमंद को भोजन करवाएं और दक्षिणा दें।
देवी उत्पन्ना ने मारा था मुर राक्षस को
मुर नाम का राक्षस था। वो महाबली और विलक्षण विद्वान था। उसने अपनी ताकत और देवताओं को धोखा देकर स्वर्ग भगा दिया। देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब उन्होंने राक्षस से युद्ध किया। लड़ाई के दौरान अचानक भगवान के शरीर से एक देवी प्रकट हुईं। उनको देखकर मुर मोहित हो गया और आक्रमण करने लगा। तब देवी ने मुर को मार दिया।
ये देखकर भगवान ने देवी को वरदान दिया कि आप मेरे शरीर से प्रकट हुई हो, इसलिए आपका नाम उत्पन्ना होगा और आप देवताओं की परेशानियां खत्म कर सकती हो। इसलिए जो आपका व्रत करेंगे, उनकी मनोकामना पूरी होगी और उन्हें सिद्धि मिलेगी। इसके बाद देवी फिर भगवान विष्णु में समा गईं।
मान्यता यह भी है कि कैटभ देश यानी काठियावाड़ के महा दरिद्र सुदामा ने पत्नी सहित उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया था। इससे वह सब दुखों से छुटकर संतानवान, सुखी और धन-वैभव से पूर्ण हुए।
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