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रायपुर : जनजातीय समाज को अधिक संगठित होकर अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने और युवाओं को जोड़ने की आवश्यकता: सुश्री उइके

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राज्यपाल सुश्री उइके आदिवासी जनसंपर्क एवं जनजागृति पदयात्रा के समापन कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से शामिल हुईं  

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acn18.com रायपुर / राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके आज मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम जिले में आदिवासी समाज संगठनों के तत्वावधान में आयोजित आदिवासी जनसंपर्क एवं जनजागृति पदयात्रा के समापन कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से शामिल हुईं। राज्यपाल ने पदयात्रा की सफलता के लिए सभी समाज प्रमुखों और प्रतिनिधियों को बधाई दी।

सुश्री अनुसुईया उइके

वर्चुअल रूप से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल सुश्री उइके ने कहा कि यह पहला अवसर है, जब आदिवासी संगठनों ने अपने समाज के दूरस्थ अंचलों में रहने वाले लोगों की समस्याओं को सामने लाने के लिए पदयात्रा की। लगभग 300 किलोमीटर की लंबी पदयात्रा के माध्यम से जनजातीय समाज की समस्याओं को निकटता से समझने और शासन-प्रशासन को अवगत कराने की यह पहल सराहनीय है। उन्होंने कहा कि आजादी के 75 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं किन्तु जनजातीय समुदाय आज भी अपने वास्तविक अधिकारों के लिए संघर्षरत् हैं। जनजातीय समाज को अधिक संगठित होकर अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और समाज के युवाओं को भी इससे जोड़ने की आवश्यकता है, ताकि समाज का उत्थान संभव हो सके। उन्होंने कहा कि दूरस्थ बसाहटों में रहने वाले आदिवासियों के पास मूलभूत सुविधाओं में उपलब्धता का अभाव देखा जाता है, जिसे दूर करने में पदयात्रा ने बड़ी भूमिका निभाई है।

राज्यपाल सुश्री उइके ने कहा कि आदिवासियों के आय का प्रमुख स्रोत लघु वनोपज है। छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता संग्राहकों की राशि न मिलने के बारे में जानकारी मिलने पर उनके द्वारा किये गये प्रयासों की जानकारी दी। फलस्वरूप आदिवासी संग्राहकों की राशि का भुगतान हुआ। उन्होंने पेसा कानून के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में पेसा सर्वमान्य है। पेसा कानून के प्रावधानों के बारे में युवाओं को भी जानकारी दें और समाज के अन्य लोग भी जागरूक हों। पेसा कानून के द्वारा जनजातियों के अधिकारों व हितों की रक्षा सुनिश्चित हो पाएगी। राज्यपाल सुश्री उइके ने अपने जनजातीय आयोग के कार्यकाल का स्मरण करते हुए, उस दौरान आदिवासियों के कल्याण के लिए किए गए प्रयासों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में जनजातीय समाज से आने वाली महिला देश की राष्ट्रपति हैं। इससे भी समाज को संबल मिला है। राज्यपाल ने कहा कि इस पूरी पदयात्रा में आदिवासी बहनों की भी भूमिका अग्रणी रही है। उन्होंने महिलाओं की हौसला अफजाई की और उनके नेतृत्व पर खुशी व्यक्त किया। राज्यपाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के राजभवन में कोंटा से लेकर बलरामपुर के लोग कभी भी आकर अपनी समस्याएं रखते हैं और उसका निराकरण किया जाता है। राज्यपाल ने कहा कि मध्यप्रदेश मेरी कर्मभूमि रही है, समान रूप से वहां से मेरा भावनात्मक जुड़ाव है। उन्होंने कहा कि नर्मदापूरम के आदिवासियों को मेरी जरूरत पड़े तो मैं सदैव उनका सहयोग करूंगी। इस दौरान राज्यपाल ने जनजातीय संस्कृति और प्रकृति के साथ संबंधों पर भी अपने विचार व्यक्त किए। संबोधन के अंत में उन्होंने कहा कि समाज के लोगों को मुख्य धारा से जुड़कर समाज के उत्थान में अपनी भागीदारी निभानी होगी, निश्चित ही उनको उनका अधिकार मिलेगा।

इस अवसर पर पूर्व राज्यसभा सांसद श्रीमती सम्पतिया उइके, आदिवासी महिला संगठन नर्मदापुरम की प्रदेश संरक्षक श्रीमती मंजू धुर्वे, महिला संगठन नर्मदापुरम की अध्यक्ष श्रीमती राजकुमारी धुर्वे सहित बड़ी संख्या में पदयात्रा में शामिल आदिवासी समुदाय के लोग उपस्थित थे।

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