आज ‘फुरसत का रविवार’ है। ईश्वर को याद किया क्या? नहीं, तो कोई बात नहीं। हम आपको घर बैठे मंदिरों, भक्तों और चढ़ावे की कहानी पढ़ाते हैं। वैसे तो धार्मिक आस्था के नाम पर दान देना किसी इंसान का निजी मामला होता है, लेकिन जब यह मामला देश के मंदिर, मस्जिद, चर्च और तमाम धर्मस्थलों की प्रसिद्धि और समृद्धि की तरफ बढ़ता है तो ये सरकारी नियम-कानूनों के दायरे में आने लगता है।
क्या आप जानते हैं कि राम मंदिर को मिलने वाला अब तक का चंदा कोरोना वेक्सीनेशन को इस बार मिले फंड से ज्यादा है। यही नहीं देश की टेंपल इकोनॉमी 3 लाख करोड़ के पार हो चुकी है। जो घरेलू डिफेंस बजट से कुछ ही कम है। साथ ही देश के छह मंदिरों में इतना चढ़ावा आता है जो इस बार मिड डे मील को मिले पैसों से भी दोगुना है। हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी 5 जी लॉन्च होने से पहले तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंचे थे। उन्होंने मंदिर को 1.5 करोड़ रुपए दान दिया।
ऊपरी तौर पर देखा जाए तो यह मामला किसी तरह से उलझाऊ नहीं लगता, मगर जब तह तक पहुंचेंगे तो इसमें कई तरह के पेंच नजर आने लगेंगे। यही वजह है कि धार्मिक चंदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय और कई धार्मिक संगठनों ने करीब 15 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म से जुड़े पूजा स्थलों के फंड पर सरकारी कंट्रोल है, जबकि मस्जिद, मजार और चर्च सहित दूसरे धार्मिक स्थलों पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसा क्यों?