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हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता से जुड़ा है कोरबा ,महाराष्ट्र से आये पुराविदों का अध्ययन, कई बिंदुओं पर खोज , अनेक पैरामीटर्स के आधार पर होता है आंकलन

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ACN18.COM कोरबा / कोयला, एल्युमिनियम और बिजली के नाम से देश विदेश में पहचाने जाने वाले कोरबा को दूसरे प्रतीक से भी पहचाना जा रहा है। यह क्षेत्र है पुरा संपदा और सभ्यता का, । अनुमान है कि हजारों वर्ष पहले की सभ्यता यहां पर मौजूद है। ऐतिहासिक भीमबेटका की गुफाओं की खोज करने वाले पद्मश्री हरीभाऊ वाकणकर शोध संस्थान से जुड़े चार सदस्यों ने कोरबा के मामले में पुरातात्विक स्थानों पर फोकस किया। इनका मानना है कि कोरबा जिला के लोगों को इन स्थानों के बारे में गहराई से जानना चाहिए।

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कोरबा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में हजारों वर्ष पुराने मंदिर , किले, गुफा से लेकर शैलचित्र मौजूद है जो यहां के पुरातात्विक इतिहास की तरफ इशारा करते हैं और दूरदराज के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित भी। कहने का मतलब यह है कि कोरबा में कोयला की खदान, एलुमिनियम और बिजली घर के अलावा बहुत कुछ भी है। पिछले वर्षों में पुरातात्विक दिशा में हुई खोज से जो कुछ हासिल हुआ उसके बाद इसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है। कला और संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन संस्कार भारती के पुरातत्व विभाग ने इस और विशेष दिलचस्पी ली। महाराष्ट्र कि एक 4 सदस्यीय टीम कोरबा की ऐसी विशेषताओं पर शोध कर रही है। प्रांतीय महामंत्री हेमंत माहुलीकर ने बताया कि आप्रचलित विधा पर संगठन काम कर रहा है और इसके हिसाब से विभिन्न स्थानों की विशेषताएं सामने लाई जा रही हैं।

टीम लीडर और हरीभाऊ वाकणकर शोध संस्थान की निदेशक विनीता देशपांडे बताती है कि कोरबा जिला पुरातात्विक संपदा के मामले में काफी धनी है। पुरातत्व पर काम करने वाले हरि सिंह छतरी से हुई बातचीत के बाद उनकी टीम यहां पहुंची है और काफी अहम काम कर रही है।

टीम के सदस्य और पुरातत्वविद नरेंद्र कुमार बताते हैं कि पुरातत्व में कई सोपान शामिल किए गए हैं। किसी भी क्षेत्र की सभ्यता और पूरा संपदा का अध्ययन करने के लिए कई तत्व समाहित होते हैं। इस आधार पर हम जान पाते हैं कि उस क्षेत्र का अतीत कितना मजबूत हुआ करता था। कोरबा में देवपहरी के शैलचित्र शोध का विषय है। इसलिए युवाओं की जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र से संबंधित ऐतिहासिक चीजों को जरूर जाने।

किलों के निर्माण और उनके सामरिक व ऐतिहासिक महत्व को लेकर प्रवीण योगी की अपनी खास दृष्टि रही है। उन्होंने अपने विवेचन से बताने का प्रयास किया कि कोरबा जिले में कोन से पहलू अहमियत रखते है। जबकि इंद्रनील बनकापुरे बताते है कि मंदिर हमारे समाज के मुख्य घटक है और मूर्तियां प्रेरक तत्व। ये हमे अपनी ओर आकर्षित करती है। मूर्तियों के शिल्प और उसके तकनीकी पक्ष को भी उन्होंने उभारा।

हरीभाऊ वाकणकर शोध संस्थान से जुड़ी या टीम कोरबा जिले की पुरा संपदा को लेकर लगातार अध्ययन करेगी और प्राचीन इतिहास का लेखन करने के साथ सबके सामने लाएगी। उद्देश्य है कि लोग अपने गौरवशाली इतिहास को जानने के साथ-साथ उसे दूसरों तक पहुंचाने का काम करें। आशा की जा रही है कि आने वाले समय में प्रदेश और भारत सरकार कोरबा जिले की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और इसे नई पहचान दिलाने के लिए भरपूर प्रयास करेगी

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