कभी ‘साडा’ के CEO रहे के के श्रीवास्तव ने खड़ा किया अपना विशाल साम्राज्य… अब धोखाधड़ी के कारण पहुंच गए सलाखों के पीछे…
0 कौन है अर्जुन रावत, जिसके एफआईआर के चलते गिरफ्तार हुआ है केके..?
कोरबा। कोई ऐसा शख्स, जिसे आप एक सामान्य से व्यक्ति के रूप में जानते हों, और अगर उसकी एकाएक रसूखदार लोगों के रूप में गिनती होने लगे तो आपका आश्चर्य में होना स्वाभाविक है। केके श्रीवास्तव की शख्सियत भी कुछ ऐसी ही रही है। बिलासपुर जिले के रतनपुर में तब विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (SADA) हुआ करता था, वहां के के श्रीवास्तव मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) हुआ करते थे। उस दौर में उन्हें जानने वालों को तब आश्चर्य हुआ जब पता चला कि के के श्रीवास्तव के खिलाफ 15 करोड़ की धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ है।
आर्थिक अनियमितता के चलते हुए थे सस्पेंड
तब अखंड मध्यप्रदेश था और मूलतः चिरमिरी के रहने वाले के के श्रीवास्तव सन 1992 में साडा रतनपुर में बतौर CEO पदस्थ हुए थे। उनके अधीन काम करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि मार्च 1995 को कलेक्टर द्वारा कराई गई जांच में वित्तीय अनियमितता उजागर हुई। तब कलेक्टर साडा के पदेन अध्यक्ष हुआ करते थे। गड़बड़ी का खुलासा होने पर के के श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया गया। बताते हैं कि इस बीच उनका तबादला साडा पचमढ़ी कर दिया गया। इसी दौरान या तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया या फिर उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
इस कंपनी के बने संकट मोचक
नौकरी छोड़ने के बाद केके एक ‘लाइजनर’ या कहें कि ‘दलाल’ के रूप में स्थापित हो गए। इन्हें जमीनों के बारे में काफी जानकारी थी। उनके संपर्क छोटे से लेकर बड़े प्रशासनिक अधिकारियों से रहे। इसी दौरान केके ने कोरबा की एक कंपनी के लिए काफी काम किया। चाहे प्लांट स्थापित करना हो या उसके लिए जमीन का इंतजाम करना हो, केके ने सभी कामों में सहयोग किया। आलम यह था कि केके ने दूसरे जिले में एक और प्लांट के लिए प्राइवेट जमीनों की खरीदी कराई, जमीन के अधिग्रहण का काम किया। फिर प्लांट का निर्माण भी करवाया। इस कंपनी और प्रशासन के बीच कड़ी के रूप में काम करने वाले केके ने पिछले कांग्रेस के शासनकाल में जब कंपनी के प्लांट और कोल वाशरी को प्रशासन ने बंद कराया तब उन्होंने तारनहार की भूमिका निभाई और सभी यूनिट को प्रारंभ करवाया।
आश्रम, बाबा और राजनेताओं के बीच की कड़ी
बिलासपुर के महाराणा प्रताप चौक इलाके में केके श्रीवास्तव का काफी बड़ा बंगला है। उनका निवास एक समय तंत्र-मन्त्र का केंद्र बना रहा। उनका अनुरागी बंगला काफी मशहूर हुआ, जहां बड़े-बड़े बाबा, अधिकारी और राजनेताओं का आना-जाना लगा रहता। लोग उनके पास अपनी समस्या और काम लेकर आते थे। पूर्व मुख्य्मंत्री भूपेश बघेल का भी इनके निवास पर अक्सर आना-जाना लगा रहता। दरअसल अनुरागी आश्रम चलाने वाले केके श्रीवास्तव की पहचान का दायरा बढ़ता चला गया। बताते हैं कि वे तंत्र-मन्त्र के जरिये किसी को भी प्रभावित करने का दावा करने लगे और लोग इस काम के लिए भी उनके पास आने लगे।
एक जानकारी यह भी सामने आयी है कि केके श्रीवास्तव के बेटे ड्रोन का बिजनेस करते हैं और खबर यह है कि वे सेना में भी ड्रोन की सप्लाई करते थे।
पूर्व सीएम की नजदीकी का मिला बड़ा फायदा
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार के बनते ही केके श्रीवास्तव ने ब्लैकस्मिथ कंपनी खड़ी की और राजनितिक रसूख का इस्तेमाल करते हुए बालको के पॉवर प्लांट से निकलने वाले FLY ASH के परिवहन का काम लिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद दूसरी बिजली कंपनियों के FLY ASH परिवहन का ठेका भी ले लिया और मोटी कमाई करने लगे। रसूख के चलते केके को FLY ASH के परिवहन के काम में खुली छूट मिली। आलम यह रहा कि इस काम के दौरान FLY ASH ढोने वाले कहीं भी उसे फेंकने लगे और पूरा कोरबा शहर राखड़ से प्रदूषित हो गया। इसके बावजूद ब्लैकस्मिथ कंपनी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। वहीं हसदेव नदी के किनारे राख फेंकने और लोगों की जमीन को प्रदूषित करने के खिलाफ आंदोलन के बाद भी इसका कोई बाल-बांका नहीं हुआ।
पाला बदलने में हैं माहिर
इस बीच जब कांग्रेस की सरकार चुनाव हार गई और भाजपा सत्ता में आ गई। तब बताते हैं कि केके श्रीवास्तव ने अपने संबंधों का इस्तेमाल करते हुए पाला बदल दिया और उन्होंने भाजपा के आकाओं से नजदीकियां हासिल कर ली। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि कोरबा में ब्लैकस्मिथ का FLY ASH परिवहन का काम सत्ता परिवर्तन के बाद भी जारी रहा। अमूमन सत्ता बदलने के बाद इस तरह के काम छिन जाते हैं और सत्ता पक्ष के लोग अपने संबंधितों को काम दिला देते हैं, चर्चा यह है कि बालको ने कुछ दिनों तक यह काम रोकने के बाद दोबारा ब्लैकस्मिथ से ही करवाना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि बाद में जब केके के खिलाफ एफआईआर की बरी आयी तो उससे फ्लाई ऐश परिवहन का काम छीन लिया गया।
जब धोखाधड़ी का मामला हुआ उजागर
पिछले साल धोखाधड़ी के एक मामले ने केके श्रीवास्तव को फिर से चर्चा में ला दिया। मामला था दिल्ली के एक ख्यातिलब्ध व्यवसायी से 15 करोड़ की ठगी का। इस संबंध में रायपुर में दर्ज FIR में इस बात का उल्लेख है कि केके श्रीवास्तव ने रावत एसोसिएट के मालिक अर्जुन रावत को रायपुर स्मार्ट सिटी का 500 करोड़ का ठेका दिलाने के लिए परफॉर्मेंस सिक्योरिटी और गारंटी मनी के नाम पर 15 करोड़ रूपये ले लिए। लेकिन न तो काम मिला और न ही रूपये वापस हुए। इस बीच जो चेक दिए गए वह भी बाउंस हो गए।
आचार्य से मुलाकात और नक्सलियों की धमकी के क्या हैं मायने..?
अर्जुन रावत ने अपनी शिकायत में उल्लेख किया है कि आध्यात्मिक गुरु आचार्य प्रमोद कृष्णम ने उनकी केके श्रीवास्तव से यह कहते हुए मुलाकात कराई थी कि यह आपके कारोबार में काम आएंगे। इनके कहने और केके के रसूख और जान पहचान को देखते हुए ही रावत ने केके को विभिन्न खातों में 15 करोड़ रूपये ट्रांसफर कर दिए। मगर जब काम नहीं मिला और बार-बार मांगने पर भी रूपये देने की बजाय केके ने यह कहते हुए पवार को धमकी दी कि उसके नक्सलियों और सरकार के राजनितिक लोगों से बहुत बड़े-बड़े संबंध हैं, वह उसे रायपुर में ही मरवा देगा और उसके परिवार और उसे जान से मरवाने में उसे वक्त नहीं लगेगा।
जानिए, कौन हैं अर्जुन सिंह रावत..?
अर्जुन सिंह रावत चार बड़ी कंपनियों के मालिक हैं, साथ ही उन्होंने इन्स्पीरिशनल स्पीकर के रूप में भी अपनी पहचान बना ली है। एक छोटे से परिवार में जन्मे अर्जुन रावत ने किस तरह अपना अम्पायर खड़ा किया है, उसकी कहानियां सोशल मीडिया में देखने को मिल जाती हैं। उन्होंने खुद अपना यूट्यूब चैनल बनाया है और वे इसके जरिये अपने बारे में बताते है और लोगों को सफल व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करते हैं।
अर्जुन सिंह रावत की फर्म रावत एसोसिएट इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम करती है, वहीं दूसरे फर्म कई उत्पादों का निर्माण भी करते हैं। अर्जुन सिंह की फर्म ने छत्तीसगढ़ में भी सरकारों के कई बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर का काम करने का दावा किया है।
कौन-कौन से राज खोलेगा के के…?
बहरहाल केके श्रीवास्तव महीनों तक फरार रहने के बाद भोपाल से गिरफ्तार कर लिया गया। स्वाभाविक है कि उसका अगला ठिकाना जेल ही होगा। फिर एक एजेंसी से दूसरी जांच एजेंसियां उसे अपनी गिरफ्त में लेकर उसके ठगी और कारोबार के राज खुलवाने के साथ ही कुछ ऐसे भी राज जानने की कोशिश करेगी, जिसकी मदद से पिछली सरकार के चंद रसूखदारों की घेरेबंदी की जा सके।