अक्षय तृतीया का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन भगवान परशुराम का प्रकटोत्सव भी मनाया जाता है। तृतीया की संपूर्ण घड़ी शुभ मानी जाती है इसलिए इस दिन शुभारंभ विवाह इत्यादि का आयोजन किया जाता है। गुड्डे गुड़िया का विवाह करने की परंपरा का निर्वहन कर बच्चे खूब आनंद लेते हैं
इस बार अक्षय तृतीया 30 तारीख को मनाई जा रही है। अंचल में अक्षय तृतीया को अक्ती पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। अक्ती पर्व पर बच्चे गुड्डा गुड़िया की शादी के लिए साज सज्जा में जुट गए हैं। इस बार भीषण गर्मी की वजह से छत्तीसगढ़ शासन ने स्कूलों में ग्रीष्मकालीन अवकाश 25 अप्रैल को ही दे दिया है । इस वजह से बच्चे भी अक्षय तृतीया को गुड्डा गुड़िया की शादी को लेकर ज्यादा ही उत्साहित नजर आ रहे हैं। अक्ती पर्व के दौरान मिट्टी के घड़े की पूजा अर्चना करने की परंपरा है और इसी दिन से घड़े का पानी पीने की परंपरा है। प्रदेश के। बाजारो में वैवाहिक समानों की खरीदी के लिए परिवार के लोग बच्चे सहित पहुंचने लगे हैं। इसके लिए 50 रूपये से 100 रूपये की रेंज में मंडप के सामान का पैकेट दुकानदारों के पास उपलब्ध है। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त के रूप में स्वीकार किया जाता है।इस दिन, दिन भर शादी के विशेष मुहूर्त रहता है। जिसमे लोग वैवाहिक आयोजन करते हैं। रस्मो रिवाज से होने वाली शादियो में रेडीमेड बांस का सुपा, पर्रा, टोकनी, मौर, नांदी ,चुकिया, कलसी,तोरण, कटार, रंग बिरंगी पंखों, सितारों से बने, दूल्हा दुल्हन के मोर मुकुट दुकानों में मांग है। बाजार में चहल पहल बच्चो के उल्लास को दर्शाता है। अक्ती के दिन विवाह की रस्मे पारंपरिक विधि विधान से पूरी की जाएगी। सात फेरो और विदाई की रस्मों के साथ यह आयोजन बच्चों को आनंद देने के साथ ही उन्हें संस्कृति की जड़ों से भी जोड़ता है।यह अनूठा आयोजन नन्हे बच्चों की रचनात्मकता सामाजिक सहभागिता और संस्कृति समझ को निखारता है। गुड्डा गुड़िया की यह विवाह की परंपरा न केवल मनोरंजन का माध्यम है बल्कि यह लोक जीवन की समृद्ध विरासत को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम भी है।