भूविस्थापितों के गुस्से का मुजाहिरा एसईसीएल प्रबंधन ने देख लिया बावजूद इसके अभी भी प्रबंधन जिस तरह के बयान दे रहा है वह आग में घी का काम कर सकता है। प्रबंधन की ओर से मीडिया को जानकारी प्रदान की गई है कि सिर्फ 10% उत्पादन प्रभावित हुआ है जबकि कोल डिस्पैच अन्य दिनों की अपेक्षा कल ज्यादा किया गया।
कोरबा जिले के भूस्थापितो ने बुधवार को एससीईएल की दीपिका कुसमुंडा और गेवरा जैसी मेगा माइंस के साथ ही सरायपाली खदान में भी जबरदस्त आंदोलन किया। इस आंदोलन से सभी खदानों का कोयला उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ। कोल डिस्पैच में भी बाधा आई बावजूद इसके प्रबंधन दावा कर रहा है कि उसका सिर्फ 10% के आसपास ही उत्पादन प्रभावित हुआ है। वही यह दावा भी किया जा रहा है एसईसीएल ने कल यानी बुधवार को 5 लाख टन अधिक कोयला डिस्पैच किया ।इनका दावा है की उत्पादन पर जो थोड़ा सा असर पड़ा है उसकी भरपाई आसानी से की जा सकती है। प्रबंधन की ओर से बताया गया है कि एससीईएल के पास कई मिलियन टन का स्टॉक उपलब्ध है जिससे कई दिनों तक उपभोक्ताओं को निर्बाध रूप से कोयला दिया जा सकता है ।कुछ मेगा प्रोजेक्ट्स डेडीकेटेड रूप से पावर प्लांट को कोयला भेजा जाता है यह पावर प्लांट स्वयं भी कुछ सप्ताह का स्टॉक रखते हैं
प्रबंधन भू स्थापितों की समस्याओं के निराकरण की बजाय उन्हें बता रहा है की खदान एरिया सीबीए एक्ट माइन्स एक्ट अधिसूचित क्षेत्र व प्रतिबंधित क्षेत्र है ।इनमें बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। देश के लिए कोयले का उत्पादन आवश्यक सेवा है तथा इसमें बाधा डालना ला एंड ऑर्डर को भंग करने जैसा है
गौरतलब है कि एससीईएल प्रबंधन अंग्रेजों की नीति का पालन करता है वह जिनकी जमीन से कोयला निकालकर देश की सेवा करने का दम भरता है उन किसानों के साथ घोर अन्याय किया जा रहा है । विस्थापितों का कथन है कि प्रबंधन ने अलग-अलग वर्षों में जमीन का अधि ग्रहण किया है और अब उनके विस्थापन की तैयारी कर ली गई है लेकिन अलग-अलग मुआवजा राशि और खातेदारों को नौकरी दिए जाने के मामले में की जा रही मनमानी किसानों के क्रोध का कारण बन रहा है ।लगातार विभिन्न माध्यमों से अपनी बात प्रबंधन तक पहुंचने वाले भू स्थापितों के बढ़ते आक्रोश का ही प्रतिफल है कि बुधवार को एससीईएल की तीनों मेगा माइंस भू स्थापितो ने घेर लिया और उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर दिया
बहरहाल खबर मिल रही है की 22 अप्रैल को उच्च स्तरीय बैठक मुख्यालय में आयोजित की जानी है जिसमें वह भू स्थापितों की समस्याओं व मांगों पर विचार कर कुछ सकारात्मक निर्णय लिया जाएगा यदि इस बैठक में फिर टालमटोल किया गया तो निश्चित है कि भूस्थापित इस बार यदि सड़क पर आए तो प्रशासन को कानून व्यवस्था बनाए रखना कठिन हो जाएगा